चातुर्मास में कोई भी मंगल कार्य क्यों नहीं होते

  • 2023-06-17
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चातुर्मास जिसे चौमासा के नाम से भी जाना जाता है, आध्यात्मिक साधना, उपासना एवं आंतरिक शुद्धि का समय होता है. चतुर्मास अर्थात चार माह से निर्मित समय जिसमें सावन, भाद्रपद,अश्विन और कार्तिक माह शामिल होते हैं. चातुर्मास के समय पर कोई भी मंगल कार्य क्यों नहीं होते हैं?, जिसमें मुख्य रुप से विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, निर्माण, नए कार्य स्थापना इत्यादि कामों को इन चार माह के लिए स्थगित कर दिया जाता है. किंतु पूजा पाठ, मंत्र जप एवं साधना के कामों को करना विशेष शुभ माना जाता है.

चातुर्मास के समय पर मांगलिक कार्यों को करने की मनाही का निर्देश आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टियों से महत्व रखता है. चातुर्मास/Chaturmas में किए जाने वाले कार्य और नहीं किए जाने वाले कार्यों को यदि ध्यान से देखेंगे तो हम पाएंगे की आखिर मांगलिक कार्यों को इस समय पर क्यों रोक दिया जाता है किंतु आध्यात्मिक साधना के कार्यों को करने की अनुमति विशेष रुप से प्राप्त होती है. तो चलिए जानते हैं चातुर्मास से संबंधित इन सभी बातों को और समझते हैं इसके पीछे छिपे तर्क ज्ञान को

भगवान श्री विष्णु का योग निद्रा में होना

चातुर्मास के समय को धार्मिक पक्ष की दृष्टि से देखें तो पाएंगे की धर्म ग्रंथों के अनुसार इस आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी/Ekadashi तिथि के समय पर भगवान श्री विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. इस समय के दौरान विष्णु शयन अवस्था में होते हैं जिसके परिणाम स्वरूप मांगलिक कार्यों को रोक देने का विधान रहा है. भगवान श्री विष्णु का मांगलिक कार्यों में प्रमुख रुप से आह्वान किया जाता है किंतु चार माह की इस समय अवधि में भगवान निद्रा में होते हैं इस कारण विवाह इत्यादि कार्यों को इस समय पर रोक दिया जाता है.

सूर्य एवं चंद्रमा का बल होता है क्षीण

इन चार माह के समय पर सूर्य एवं चंद्रमा के बल में कमी को देखा जाता है. पंचांग/Panchang गणना में सौर मास एवं चंद्र मास का विशेष महत्व रहता है. शुभ कार्यों में इन दोनों ग्रहों के बल एवं शुभता को विशेष रुप से देखा जाता है. ऎसे में इन चार मास के दौरान इनके गुण तत्व प्रभावित रहते हैं जिसके प्रभाव स्वरूप शुभ कार्यों को कुछ समय के लिए टाल दिया जाता है. सूर्य जो आत्मा का कारक और चंद्रमा जो मन का कारक है इन दोनों की स्थिति में कमी का प्रभाव लक्षित होने के कारण इस समय शुभ कार्यों के फल प्राप्ति में भी कमी दिखाई दे सकती है, जिसके फलस्वरूप कुछ समय के लिए मांगलिक कार्यों को रोक दिया जाता है.

आध्यात्मिक उन्नति का समय

चातुर्मास का समय हमारे आध्यात्मिक मानसिक बल हेतु महत्वपूर्ण माना गया है. इस कारण से इन चार माह के दौरान पूजा, जप एवं तप पर विशेष जोर दिया जाता है. इस समय पर सभी साधु संत अपनी यात्राओं को रोक देते हैं तथा एक स्थान पर रुक कर ध्यान एवं साधना करते हैं. इन चार मास के दौरान की जाने वाली पूजा, व्रत उपासना का शुभत्व शीघ्रता से प्राप्त होता है. इस कारण से इस समय को मांगलिक कार्यों विवाह/Marriage इत्यादि को रोक दिया जाता है.

आहार–विहार विचार

चातुर्मास का समय प्रकृति के बदलाव का समय होता है. ये समय वर्षा ऋतु का समय भी होता है. इस समय पर नदी नाले जलाशय एवं वन्य प्राणियों में बदलाव के चिन्ह स्पष्ट रुप से देखने को मिलते हैं. वनस्पतियों पर भी इसका असर पड़ता है. ऐसे में आहार विहार पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता है. भोजन को उचित रुप से सात्विक रुप से ग्रहण करना होता है क्योंकि विष्णुओं – जीवाणुओं की वृद्धि इस समय पर तेजी से होती है ऐसे में खाने से संबंधित नियम इस समय विशेष रुप से लागू होते हैं जिसके कारण रोग इत्यादि का प्रभाव शरीर पर न हो सके. इन कारणों से भी इस समय पर मांगलिक कार्यों को रोक दिया जाता है.

स्वास्थ्य एवं आत्मिक विकास सुधार समय

चातुर्मास का समय स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होता है. इन चार माह के दौरान बताए गए नियमों का पालन करके आयुष एवं सेहत को शुभ रुप से बेहतर बना सकते हैं। इस समय पर हम अपने आत्मिक विकास में भी गति कर सकते हैं अपने मानसिक एवं शारीरिक बल को मजबूत करके जीवन को सकारात्मक रुप से जीने का आनंद भी प्राप्त कर सकते हैं. अगर आप किसी रोग व्याधि से परेशान हैं तो इस समय पर व्रत/Vrat उपवास का पालन करके अपने रोग से निजात भी प्राप्त कर सकते हैं

इस चार माह के दौरान केश नाखून काटना शेव करना मना होता है और सात्विक स्वरूप में रहने को कहा जाता है इसलिए इस माह मांगलिक कार्यों को करना मना होता है.

सूर्य का दक्षिणायन होना

चातुर्मास के समय पर सूर्य उत्तरायण (Makar Sankranti) से दक्षिणायन की ओर बढ़ने लगता है. सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश होते ही सूर्य का गमन दक्षिणायन में आरंभ हो जाता है. दक्षिणायन का समय पितरों का समय माना जाता है और उत्तरायण को देवताओं का इसलिए इस समय के दौरान मांगलिक कार्यों को रोक दिया जाता है और विवाह इत्यादि मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं.

ऊर्जाओं का उतार–चढ़ाव

चातुर्मास के समय पर प्रकृति की ऊर्जा में विशेष बदलाव देखने को मिलते हैं. इस समय पर अंधकार पक्ष अधिक प्रबल माना जाता है. ऐसे में इस समय पर ऊर्जाओं का बदलाव देखने को मिलता है जिसमें नकारात्मक शक्तियां अधिक प्रबल भी होती है. इस कारण से समय पर शादी, सगाई, गृह प्रवेश, व्यवसाय कार्य आरंभ, जातकर्म संस्कार इत्यादि नहीं किए जाते हैं.

शिव गण होते हैं अधिक प्रभावी

चातुर्मास के समय श्री विष्णु के योग निद्रा में जाने के बाद भगवान शिव पर ही सृष्टि के संचालन का दायित्व होता है ऐसे में शिव गण भी इस समय पर अधिक सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए इस समय पर शिव पूजन उपासना करना उचित होता है और मांगलिक कार्यों को रोक दिया जाता है.

ऋतुओं का बदलाव

आध्यात्मिक एवं धार्मिक कार्यों में ऋतुओं का विशेष असर पड़ता है. इसलिए शुभ कार्यों को ऐसे समय पर करना अधिक बेहतर होता है जब मौसम साफ सुथरा एवं अच्छा बना हुआ होता है. जब मौसम अधिक कठिन दिखाई देता है जैसे वर्षा ऋतु और शरद ऋतु का मौसम काफी उथल–पुथल वाला भी होता है इसलिए इस समय के दौरान मांगलिक कार्यों को रोक कर व्रत उपासना एवं साधना के काम करना ही अधिक उचित होता है.

मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण

चातुर्मास के समय को कामनाओं की पूर्ति का समय भी कहा जाता है. हर ओर बदलाव देखने को मिलते हैं जिसका प्रभाव जीवन पर भी पड़ता है. इस समय पर जो भी शुभ कार्यों को सात्विक कार्यों को किया जाता है वह जीवन में मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक बनता है.

जैन और बौद्ध धर्म में चातुर्मास

चातुर्मास के समय को जैन एवं बौद्ध संप्रदायों में भी मान्यता प्राप्त है.

इस समय पर साधु संत अपनी धार्मिक यात्राओं को रोक देते हैं और एक स्थान पर रुक कर ईश्वर का ध्यान करते हैं.

अपने गुरुजनों के सानिध्य में बैठकर धार्मिक प्रवचनों एवं ज्ञान को आत्मसात करते हैं.

इस समय के दौरान कठोर नियमों का पालन भी श्रद्धा पूर्वक किया जाता है.

सभी साधु सन्यासी एवं गृहस्थ भी इस चार माह के दौरान इष्ट की आराधना करने का पूर्ण लाभ लेते हैं.

चातुर्मास के किसी माह में करें कौन सा दान?

चातुर्मास में दान का कार्य करना शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है.

इस समय पर किया गया दान कार्य व्यक्ति के पापों का नाश करता है और शुभ फल मिलते हैं.

जाने अनजाने में किए गए गलत कार्यों का प्रायश्चित करने के लिए भी बहुत उपयोगी समय कहा गया है.

इन चार मास में अलग अलग प्रकार के दान को महत्ता दी गई है.

पर सामर्थ्य और शुद्ध चित्त मन के द्वारा किया गया कोई भी दान समान रुप से साधक को फल देने के योग्य भूमिका निभाता है.

सावन में खीर का दान संतान और परिवार का सुख प्रदान करता है.

भाद्रपद में अन्न एवं चांदी,पीतल इत्यादि धातु का दान यश में वृद्धि करता है.

आश्विन मास में तिल और जल का दान रोगों से मुक्ति प्रदान करता है. कार्तिक मास घी का दान उत्तम कुल प्रदान करता है.

इसी प्रकार हर मास में किसी न किसी रुप में दी जाने वाली दान की वस्तु से विभिन्न प्रकार के फल प्राप्त होते हैं.

चातुर्मास के नियम

इस समय पर रोजाना “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” .मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता हैं

चातुर्मास में संध्या काल के समय तुलसी के समीप दो घी के दीपक जलाने चाहिए (संध्या काल के समय मुख्य द्वार पर क्यों जलाना चाहिए दीपक?)

चातुर्मास में “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर अभिषेक करने विशेष लाभ होता है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है/Health astrology prediction

चातुर्मास घी या तिल के तेल का दीपक भगवान श्री विष्णु और माँ लक्ष्मी जी के समक्ष प्रज्वलित करना चाहिए.

चातुर्मास के समय पर भूमि शयन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

चातुर्मास समय नियमित पूजा उपासना करनी चाहिए

चातुर्मास के समय सामर्थ्य अनुसार भोजन, वस्त्र, अन्न, धन इत्यादि का दान करना चाहिए.

चातुर्मास में क्या नहीं करें और किन चीजों से करें परहेज

चातुर्मास के समय पर दूध, दही, तेल, मसाले, बैंगन, दलहन, मसूर दाल, सुपारी, मांस मछली, मदिरा या अन्य प्रकार के नशे इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए.

चातुर्मास के पहले श्रावण मास/Savan के समय हरी पत्तेदार सब्जियों सा–पालक इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए.

भाद्रपद माह के दौरान दही का सेवन करने की मनाही होती है.

आश्विन माह में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए.

कार्तिक मास में तेल, दाल, प्याज लहसुन इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए.

 

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