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ज्योतिष में पुष्कल योग/ Pushkala Yoga in Astrology

वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार, कुण्डली में लग्नेश की युति में स्थित चन्द्रमा  के भाव का स्वामी या तो केन्द्र भाव (पहले, चौथे, सातवें या दसवें भाव) में हो अथवा बलवान हो तो वह पहले भाव पर दृष्टि डालता है तथा पहले भाव में एक या एक से अधिक शुभ ग्रह होने पर, कुंडली में पुष्कल योग बनता है। पुष्कल योग व्यक्ति को व्यवसाय, उच्च अधिकारी, धन-संपत्ति, सफलता, मान-सम्मान, प्रसिद्धि और कई अन्य चीजों से संबंधित अच्छे परिणाम प्रदान करता है।

वास्तविक रूप से, केवल पूर्वोक्त स्थितियां मिलने पर ही पुष्कल योग को ऐसे परिणाम उत्पन्न करते नहीं देखा जाता इसलिए इस योग को, कुंडली में अधिक प्रभावी बनने के लिए और भी परिस्थितियां मिलनी चाहिए। पहली स्थिति को देखते हुए, ऐसी एक कुण्डली में चन्द्रमा और पहले भाव के स्वामी को यथोचित शुभ होना चाहिए। इसके अलावा, उनके स्थान का स्वामी भी महत्वपूर्ण ढंग से यथोचित लाभकारी होना चाहिए। किसी अपवाद को छोड़कर, कर्क लग्न की कुंडली में यह योग नहीं बन सकता क्योंकि ऐसे मामलों में चंद्रमा लग्न का स्वामी होता है।

परिणाम/ Results

पुष्कल योग में जन्मे व्यक्ति ईश्वर द्वारा धन, प्रसिद्धि, अच्छे वस्त्र और अत्यधिक आभूषणों से सम्मानित होते हैं। साथ ही, मधुर वाणी वाले ये व्यक्ति उच्च पद प्राप्त करके कई लोगों पर शासन करते हैं। इसके साथ साथ उन्हे अन्य परिणाम भी मिलते हैं जिसे आपकी कुंडली से पढ़ कर ठीक किया जा सकता है।

टिप्पणियां/ Remarks

लग्नेश और चंद्र राशि का स्वामी, चतुर्थांश में स्थित होकर शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे लग्न और चंद्रमा बल और ऊर्जा प्राप्त करते हैं। फिर से, लग्न पर एक मजबूत ग्रह की युति होनी चाहिए जिसे लग्न को दिए गए विस्तार से समझा जाता है।

आप ज्योतिष में विभिन्न प्रकार के योगों, विभिन्न कुंडली दोषों, सभी 12 ज्योतिष भावों, ग्रहों के गोचर और इसके प्रभावों के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।

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