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ज्योतिष में जय योग/ Jaya Yoga in Astrology

छठे भाव का स्वामी कमजोर और दशमेश के उच्च का होने पर, जय योग बनता है। जहां, छठा भाव शत्रु, रोग, ऋण और अवरोधों को दर्शाता है, वहीं, दसवां भाव व्यावसायिक कार्यों तथा व्यवसाय द्वारा अर्जित धन को दर्शाता है।

अंततः, छठे भाव के स्वामी के दुर्बल अवस्था में होने का अर्थ यह होता है कि व्यक्ति के शत्रु उचित नुकसान नहीं कर पाएंगे तथा स्वास्थ्य संबंधी दिशानिर्देशों का पालन करने से व्यक्ति स्वस्थ रहेगा और आसानी से ऋणों का भुगतान करने में सक्षम होगा। 

दूसरी ओर दसवें भाव की मजबूत स्थिति, व्यक्ति को अच्छी नौकरी मिलने में सक्षम बनाएगी तथा उनकी नौकरी में वृद्धि होने के कारण, अंततः पदोन्नति और वेतनवृद्धि देगी।

इस प्रकार, नकारात्मक ऊर्जाओं में कमी होगी तथा सकारात्मक ऊर्जाओं में वृद्धि होगी, जिससे व्यक्ति को स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से लाभ होगा।

इस योग का प्रयोग देह पुष्टि योग के समान होता है, जिसमें व्यक्ति को अचल संपत्ति और अच्छे स्वास्थ्य के रूप में आर्थिक लाभ होता है तथा यहां भी व्यक्ति व्यावसायिक दृष्टि से आर्थिक रूप से मजबूत होने के साथ ही, अपने प्रयासों से अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करता है।

परिणाम/ Results

व्यक्ति संपन्न, प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त करता है। इसके अलावा, वाद-विवाद में सफल होने के साथ ही, विरोधियों को परास्त करता है। 

टिप्पणियाँ/ Comments

उच्च दशमेश का अर्थ है सभी प्रयासों में सफलता। फिर भी, दसवें भाव को अशुभ प्रभावों से अलग होना चाहिए। शत्रुओं पर विजय पाने के लिए अन्य सहायक स्थितियां मजबूत होनी चाहिए। मजबूत लग्नेश, मंगल और तीसरे भाव का स्वामी शत्रुओं पर विजय दिलाते हैं। छठा भाव सट्टेबाजी, संक्रामक रोगों और विरोधियों को दर्शाता है तथा कमजोर छठे भाव का स्वामी इसमें सहायता करना स्वीकार नहीं करता। साथ ही, ऐसा करने की थोड़ी सी भी संभावना होने पर, दशमेश उस पर रोक लगाकर व्यवस्थित कर देता है।

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