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ज्योतिष में ब्रह्म योग

वैदिक ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति का जन्म जन्म तिथि, वार, करण, राशि व योगों के द्वारा होता है। जो व्यक्ति जिस योग में जन्म लेता है, उसे उसी के अनुसार परिणाम देखने को मिलते हैं। इस लेख के जरिए हम ब्रह्म योग के बारे में बात करने वाले हैं। हम जानेंगे कि इस योग में जन्मे व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है और उसकी जीवनशैली कैसे रहने वाली है। ब्रह्मा का दूसरा अर्थ संतुलन हैं क्योंकि वह इस पर अधिक निर्भर करते हैं।

नीचे दिए गए बिंदु से ब्रह्म योग के बारे में जानते हैं।

  • दूसरे भाव के स्वामी से संबंधित दूसरे, बारहवें और पांचवें भाव में अलग-अलग लाभकारी ग्रहों को स्थित होना चाहिए।
  • बृहस्पति, चंद्रमा और बुध व्यक्तिगत रूप से सप्तमेश से संबंधित चौथे, नौवें और आठवें भाव में होने चाहिए।
  • सूर्य, शुक्र और मंगल को स्वतंत्र रूप से लग्नेश से संबंधित चौथे, दसवें और ग्यारहवें भाव में संयुक्त रूप से होना चाहिए।

उपरोक्त क्रम-व्यवस्था से बने योगों को हरि, हर और ब्रह्म योग के नाम से जाना जाता है।

परिणाम/ Results

इन योगों के अंतर्गत जन्मे व्यक्ति धार्मिक विद्या के जानकार, स्पष्ट वक्ता, संतोषी स्वभाव, शांत, साहसी, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले, प्रत्येक जीव के प्रति दयालु और धार्मिक होते हैं।

टिप्पणियाँ/ Comments

हिंदू तीन देवताओं की त्रिमूर्ति को संबोधित करते हुए बृहत पाराशर होरा शास्त्र में, इस योग को त्रिमूर्ति योग नाम दिया गया है। ब्रह्म योग में ग्रहों का अनुक्रम, भावों  के समूह के साथ होता है क्योंकि सूर्य से शुक्र की अत्यधिक दीर्घता केवल 48° ही हो सकती है। जैसे कि, सूर्य चौथे भाव में हो और शुक्र कैसे भी करके दसवें भाव में हो लेकिन उच्चतर अक्षांशों को कभी प्राप्त करने योग्य नहीं हो सकता, चाहे हम योग की गणना राशियों और भावों से करें या ना करें।

आप ज्योतिष में विभिन्न प्रकार के योगों, विभिन्न कुंडली दोषों, सभी 12 ज्योतिष भावों, ग्रहों के गोचर और इसके प्रभावों के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।

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