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सातवें भाव में मंगल/ Mars in 7th house

इस स्थिति में, वैवाहिक जीवन के नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के साथ ही, चोट लगने की घटनाएं हो सकती हैं तथा जीवनसाथी के साथ झगड़ों और अनबन की प्रबलता रहती है। अतः, सातवें और आठवें भाव से संबद्ध विवाहित दंपत्ति अनुकूल रहते हैं। ज्योतिष के अनुसार, सातवें भाव में मंगल के विवाह पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को दूर करने के लिए, एक अच्छे ज्योतिषी आचार्य से मिलना अनिवार्य होता है।

 

सातवें भाव में मंगल का व्यक्ति पर प्रभाव/ Impact of Mars in the Seventh House on Native

ऐसे लोगों के लिए, बिजनेस में सौदेबाजी करना मुश्किल होता है, क्योंकि इनमें प्रतिरोध करने की क्षमता होने के बावजूद, तर्क-वितर्क करने की कुशल नहीं होते। हालांकि अच्छी तरह से मार्गदर्शन मिलने पर, यह तोपख़ाना या आर्टिलरी और हथियारों के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। इन लोगों को, रक्त और हृदय संबंधित समस्याओं के साथ ही त्वचा रोग, टीबी, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन तथा जननांगों जैसी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

 

सातवें भाव का मंगल और छठे, आठवें या बारहवें भाव में बृहस्पति, कानूनी मामलों को जन्म देने की प्रवृत्ति रखते हैं जो आर्थिक हानि का कारण बन सकते हैं। वहीं, मंगल के मूल राशि में होने पर,यह आंतरिक और विदेशी यात्राओं का कारण बन सकता है। साथ ही, चंद्रमा या शुक्र के नौवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में होने पर, यह और अधिक अनुकूल हो जाता है तथा सप्तमेश के आठवें, तीसरे या चौथे भाव में होने पर, व्यक्ति दूसरे देश में संपत्ति उपार्जित करेगा।

 

शनि या राहु, स्वयं सातवां भाव या सातवें भाव में मंगल के प्रभावों या मंगल की महादशा और उप-अवधि के कारण, जीवनसाथी से लंबे समय के लिए अलगाव में रह सकता है। मंगल की महादशा के विवाह के दस साल के भीतर ही आ जाने पर, सातवें भाव में मंगल तलाक का कारण बनकर शारीरिक हिंसा को बढ़ाता है जो सूचित नहीं की जाती है। इसके अलावा, गंभीर दुर्घटनाएं भी अलगाव का कारण बन सकती हैं। मंगल हर वैवाहिक बंधन को नुकसान पहुंचाता है, जब तक कि जीवनसाथी की जन्मकुंडली में इसे निष्क्रिय करने वाले ग्रहों की मौजूदगी न हो। विवाह पर मंगल के प्रतिकूल प्रभाव का यहाँ विस्तार से वर्णन किया गया है। हालांकि,

इनमें से कोई भी मंगल के वैवाहिक जीवन पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को दूर नहीं कर सकता है।

सातवें भाव में मंगल के उपरोक्त प्रभावों का निम्न प्रकार  से अध्ययन किया जा सकता है:

  1. वार्षिक कुंडली का विश्लेषण (वार्षिक प्रगतिशील कुंडली) 
  2. जन्म कुंडली के साथ वार्षिक कुंडली का तुलनात्मक विश्लेषण
  3. महादशा के साथ इन दोनों तत्वों का अध्ययन करना चाहिए।
  4. संबंधित वर्ष (जिसके लिए वार्षिक कुंडली बनाई गया हो) की आयु के दौरान मंगल, बृहस्पति, शनि और राहु के गोचर की स्थिति।
  5. 'त्रिपिटक कुंडली (क्रॉसरोड चार्ट) का अध्ययन करना भी आवश्यक है। 

यदि वार्षिक-कुंडली और उसके क्रॉस रोड-चार्ट में ग्रहों की स्थिति मंगल, शनि या राहु के ज्यादा प्रतिकूल होने पर, महादशा या उप-अवधि (अंतर्दशा) वैवाहिक जीवन में नुकसान पहुंचा सकती है। जहां पति, पत्नी को प्रताड़ित कर सकता है वहीं, पत्नी भी पति को नुकसान पहुंचा सकती है।

 

ज्योतिषियों को, बिना डराएं ही ऐसे व्यक्तियों को नकारात्मकताओं के बारे में सूचित करना चाहिए। वास्तव में, यह सूचित करना उनकी जिम्मेदारी है। जिस व्यक्ति का मंगल, सातवें भाव में और राहु या शुक्र आठवें भाव में या शनि और शुक्र बारहवें भाव में हो, उसे संभोग से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त, विवाहेतर संबंध का भी संकेत दे सकता है। कंप्यूटर के द्वारा ज्योतिषीय गणना उतनी सटीक नहीं होती, जितनी एक वैदिक ज्योतिष की गणना होती है।

आप हमारी वेबसाइट से सभी भावों में मंगल के प्रभावग्रहों के गोचर और उसके प्रभावों के बारे में भी पढ़ सकते हैं।

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