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ऐसे होगा वेदों अनुसार पितृ दोष का अंत

पितृ का शाब्दिक अर्थ होता है- पूर्वज या मृत प्रियजन और दोष का शाब्दिक अर्थ होता है-दोष। इन दो शब्दों को मिलाकर, पितृदोष नाम कुछ इस प्रकार के दोषों को संदर्भित करता है जो पूर्वजों से किसी न किसी तरह संबंधित होते हैं। ज्योतिष में पितृदोष का अत्यधिक महत्व माना जाता है। प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है क्योंकि इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। जिस किसी की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति की उन्नति में बाधाएं बनी रहने के साथ ही, सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। अनेक प्रकार के उपाय करने पर भी, पारिवारिक  सदस्यों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, दैनिक जीवन में पितृदोष के कई लक्षण दिखाई देते हैं जैसे- विवाह न हो पाना, वैवाहिक जीवन में अशांति, घर में क्लेश आदि।  हालांकि, इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। 

पितृदोष के कारण घटित होने वाली घटनाएं

यदि आपकी कुंडली में यह दोष है तो आप इसके बारे मे अवश्य जानते होंगे, अगर नहीं है तब भी इस दोष के बारे में कहीं ना कहीं से पता चला ही होगा। जब भी परिवार में आकस्मिक मृत्यु या लगातार मृत्यु होना, धन व सम्मान का खोना, पुश्तैनी जमीन-जायदाद का हाथ ना आ पाना, व्यापार में लगातार घाटा होना, लंबे समय तक बीमार रहना या परिवार की वृद्धि ही ना हो पाना जैसी और भी कई दिल दहला देने वाली घटनाएं या परेशानियां उत्पन्न करने वाली बातें घटित होती हैं तब अधिकांशतः, कुंडली निरीक्षकों द्वारा पितृदोष को ही इसका जिम्मेदार बताया जाता है। यह सत्य भी है कि उपरोक्त में से सभी या किसी ना किसी का संबंध पितृदोष से हो सकता है। लेकिन, यहां जरूरी बात यह  है कि इन सबका कारक पितृदोष ही हो यह आवश्यक नहीं होता।

वेदों के अनुसार पितृ दोष

अब सर्वप्रथम यह जानते हैं कि यह पितृ कौन होते हैं  जो पितृदोष देते हैं। पितृ हमारे वह पूर्वज होते हैं जो साक्षात् रुप से अब इस भूमंडल पर नहीं हैं और जिनका निवास पितृलोक में है। यहां, सबसे बड़ी बात यह है कि ये पितृ अपना संबंध भूलोक में स्थित अपने परिवार से बनाए रखते हैं। हो सकता है कि आपके पूर्वज भी आप पर अपनी दृष्टि रखते हों। जी हां, यह बात बिल्कुल सही है क्योंकि ऋग्वेद, यजुर्वेद, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि में इसका उल्लेख मिलता है। 

पितरों की श्रेणियां 

इन पितरों को श्रेणीबद्ध करके निम्न तीन श्रेणियों में रखा गया है-

1. इन तीन श्रेणियों में सबसे बड़े पितृ, गोत्र के अधिपति होते हैं जो अपनी कृपा बनाए रखते हैं।

2. दूसरी श्रेणी के पितृ मध्यम श्रेणी के होते हैं जो परिवार की वो शुभ आत्माएं होती हैं जो मोक्ष प्राप्त करके पितृलोक में स्थापित हो जाती हैं। मध्यम दर्जे के कहलाए जाने वाले यह पितृ, कभी कोई गलत सोच नहीं रखते हैं।

3. आखिरी तीसरी श्रेणी के नहीं वो होते हैं जो अधम या खराब श्रेणी में आते हैं। यह पितृ अपनी किन्हीं अपूर्ण मनोकामनाओं के चलते, प्रेत की भांति पितृलोक में स्थापित हो जाते हैं तथा अपनी मनोकामनाओं को सार्थक करने के लिए, अपने ही परिजनों को कष्टमय रखते हैं। किसी घर में कोई अतृप्त मृत्यु होने पर, वह तीसरे प्रकार की अधम श्रेणी में रूपांतरित हो सकते हैं।

पितरों का आपके प्रति मनोभाव 

अब, आपको यह जानने की आवश्यकता होती है कि आखिरकार यह पितृ आपसे क्या चाहते हैं? ये तीसरी श्रेणी के पितृ, आपसे आदर-सत्कार का मनोभाव रखते हैं और अपने छोड़े गए अपूर्ण कार्यों को, आपके द्वारा पूर्ण करने की लालसा रखते हैं। ऐसे में, व्यक्ति द्वारा उनके आदर-सत्कार में, उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने में, उनके किसी कार्य को निष्पादित करने में, उनके निकट संबंधियों को या उनके द्वारा बनाई गई संपदा में किसी प्रकार की अनदेखी या लालच किए जाने पर, उनके कोप से दो-चार होना पड़ता है परिणामस्वरूप, वे उपरोक्त बताए गए क्षेत्रों में परेशानियां उत्पन्न कर सकते हैं। यहां, आपको हमारी यह बात ध्यान से समझनी चाहिए कि यदि यही पितृ अगर लाभकारी हो जाते हैं तो आपकी कुंडली की अधिकतर समस्याओं वाले योगों को भंग भी कर देते हैं और छोटे-छोटे लाभकारी योगों में वृद्धि कर सकते हैं। इसके अलावा, वे आपका कोई नुकसान नहीं होने देते। साथ ही, आपकी आयु में भी वृद्धि कर सकते हैं।

पितृदोष से संबंधित कुछ उपाय

पितृदोष के संबंध में कुछ सटीक उपाय कुंडली देखकर ही संभव होते हैं। लेकिन, कुछ छोटे-छोटे उपाय भी होते हैं जो बिना कुंडली देखे भी लाभकारी हो सकते हैं जिन्हें आपको अवश्य ही करना चाहिए-

  1. अपने माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों का आदर-सत्कार अवश्य करें।

  2. पीपल के वृक्षों और पौधों को रोपें।

  3. श्रीमद्भागवत गीता का पाठ अवश्य करें।

  4. भगवान विष्णु का पूजन करते रहें।

  5. पुरखों की संपत्ति की रक्षा करें और उससे कोई अनुचित लाभ ना लें।

  6. अपने सहोदरों या परिवार के सदस्यों से बैर या द्वेष ना रखें और धोखा ना दें।