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शादी के बाद होगा भाग्योदय। life after marriage

व्यक्ति की जन्मकुंडली में कुछ ग्रहों की स्थिति उसके भाग्योदय को दर्शाती है। भाग्योदय एक ऐसा शब्द है जिसके अर्थ को सफलता से जोड़ा जाता है। भाग्योदय वह समय माना जाता है जब जीवन में असफलता मिलनी बंद हो जाती है और किया गया प्रत्येक कार्य आपको सफलता की ओर लेकर जाता है। जहां, कुछ लोगों का भाग्योदय शीघ्र हो जाता है वहीं, अधिकतर लोगों का भाग्योदय विवाह के पश्चात होता है। ज्योतिष में, कुंडली के नवम भाव भाग्य और सातवां भाव वैवाहिक जीवन को दर्शाता है। कुंडली के इन्हीं दोनों भावों के विश्लेषण से पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति का भाग्योदय विवाह के बाद होगा या नहीं। इसके साथ ही, कुंडली में कुछ ऐसे ग्रह योग होते हैं, जो विवाह के बाद भाग्योदय का संकेत देते हैं।

ज्योतिष के अनुसार, व्यक्ति की जन्मकुंडली में कुछ ऐसे योग होते हैं जो विवाह के बाद भाग्योदय कराते हैं। भाग्य और परिश्रम ही वो दो चीजें हैं जो जिस किसी के भी पास होती हैं वह जीवन में कामयाबी पाते हैं जिसमें परिश्रम तो व्यक्तिगत होता है लेकिन, भाग्य हर किसी का अपना नहीं होता है। कुछ लोगों की किस्मत उनके बच्चों से तो किसी की माता-पिता से जबकि कुछ लोगों की जीवनसाथी से जुड़ी होती है। आपने देखा भी होगा कि संघर्ष कर रहे कुछ लोगों के जीवन में, विवाह के बाद अचानक से बदलाव होते हैं और भाग्य उन पर मेहरबान हो जाता है। 

विपरीत परिस्थितियां का जीवंत उदाहरण

अतुल कुमार सिंह, आज 34 वर्ष के हैं लेकिन उनका विवाह नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि उनकी आमदनी कम है या फिर वह कम अच्छे दिखाई देते हैं, लेकिन अब तक नियति को ऐसा ही मंजूर था। 36 वर्ष की अनुभवी ऑर्थोपेडिक डॉ. जसप्रीत कौर, विवाह से वंचित है लेकिन ऐसा नहीं है कि वह विवाह नहीं करना चाहती लेकिन परिस्थितियों के अनुकूल नहीं होने के कारण,  कुछ न कुछ हो जाता है। वही, 45 वर्ष के अविवाहित नरेंद्र मोहन गुप्ता अब विवाह के विषय में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि अब कोई संबंध ही नहीं आते। इसी तरह, 38 वर्ष के किशोर वर्मा अभी पिछले वर्ष ही विवाहित हुए लेकिन, इस वर्ष संबंध विच्छेद हो गया। अब, नितांत अकेले हैं और विवाह के नाम से ही घबराते हैं। ये ऐसे कुछ उदाहरण है जिनमें व्यक्ति के पास ना तो धन की कमी है और ना पद की। लेकिन, व्यक्ति फिर भी अकेले का अकेला ही है। ऐसी कुंडलियों की गहनता से जांच करने पर पता चलता है कि यह व्यक्ति एक ऐसे लग्न या लग्नेश वाले होते हैं जिन्हें अपनी प्रतिभाओं पर हमेशा संशय होता है या संशय बना रहता है। साथ ही, इन्हें अपनी उपलब्धियां भी कम से कमतर नजर आती हैं और भविष्य को लेकर मन में हमेशा उत्कंठा बनी रहती है। ये विवाह से पहले, स्वयं को सुदृढ़ बनाने में इतने मग्न हो जाते हैं कि समय के वेग को भांपना ही भूल जाते हैं। 

विवाह पश्चात भाग्योदय संभव

यदि आपके मन में भी ऐसी कोई बात है तो आपको यह पता होना चाहिए कि अधिकांश कुंडलियों में विवाह के पश्चात भाग्योदय होता है, क्योंकि तब आपके जीवनसाथी का भाग्य आपसे जुड़ जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मान लीजिए, व्यक्ति ने विवाह से पूर्व अपना कोई लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है जिसके अविवाहित रहने पर, पूरा होने में 34 वर्ष तक का समय लग सकता है तो बहुत संभव है कि विवाह उपरांत वह लक्ष्य 30 से 31 वर्ष में ही पूरा हो जाए। यदि आप भी अपने मन में ऐसे लक्ष्य निर्धारित करके, अपने विवाह को विलंबित कर रहे हैं तो आप सीधा भाग्येश या भाग्य के ईश्वर से टक्कर ले रहे हैं जो उचित नहीं है। जब आपके पास पड़ताल करने के लिए कुंडली है तो अपने साथ ऐसा अनर्थ मत होने दीजिए क्योंकि यह संभव है कि आपका भी भाग्योदय विवाह के बाद ही हो। 

वैवाहिक चक्र

विवाह होने के कई चक्र होते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए विवाह का यह चक्र एक वर्ष के लिए 22 वर्ष की आयु में जागृत हुआ या एक वर्ष के लिए 28 वर्ष की आयु में जागृत हुआ या फिर एक वर्ष के लिए 35 वर्ष की आयु में जागृत हुआ। ऐसे में, हम इन विवाह संबंधी चक्रों को निकलने देते हैं जबकि यह चक्र सीमित होते हैं यानि ये व्यक्ति के जीवन में, चार या पांच बार ही आते हैं। ऐसे में व्यक्ति स्वयं ही तीन या चार बार इस चक्र को अपने हाथ से निकाल देता है और विवाह की तरफ ध्यान ही नहीं देता। ऐसी स्थिति में, मात्र एक या दो चक्र ही बचते हैं जिनमें विवाह करना नितांत आवश्यक हो जाता है। लेकिन, कई बार परिस्थितियां इन चक्रों के अंदर भी विवाह नहीं करने देती हैं। अतः, हमारा सुझाव है कि आपको स्वयं को इतनी दूरी तक नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि इस स्थिति तक पहुंचने पर, आप स्वयं को विषम परिस्थितियों में घिरा पाएंगे।