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अहम् और उससे होने वाले नुकसान

आज इस लेख में हम देखेंगे कि किसी व्यक्ति का अहं उसे किस प्रकार हानि पहुँचा सकता है। इसके साथ ही, यह भी जानेंगे कि शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष क्यों होता है और इसका क्या कारण है? इसके अलावा, हम जानेंगे   अहं को कम करने के उपाय क्योंकि अहं के कम नहीं होने पर, व्यक्ति को बड़ा नुकसान हो सकता है। ज्योतिष के इस कर्म सुधार संबंधी लेख में हनुमान जी का आवाहन और आशीर्वाद प्राप्त करके, ज्योतिष के एक ऐसे अनूठे विषय पर चर्चा करेंगे जिससे आप सभी कहीं ना कहीं जुड़े हुए हैं। आइए, बात करते हैं इस अहं या मैं मैं करने वाली प्रवृत्ति की कि यह आपके अंदर कितनी है और इससे आपको कितना नुकसान हो रहा है।

अहं और उससे होने वाले नुकसान

स्वयं ईश्वर भी इस अहं और मैं मैं की प्रवृत्ति से नहीं बच  पाए। 27 नक्षत्रों को चंद्रमा की पत्नियां माना जाता है जिनमें से रोहिणी के, चंद्रमा की सबसे ज्यादा प्रिय होने के कारण, चंद्रमा अधिकांश समय रोहिणी के साथ बिताया करते थे। इस पर, बाकी समस्त पटरानियों ने कुपित होकर दक्ष के पास जाकर उनकी शिकायत की कि चंद्रमा, अपना सारा समय रोहिणी के साथ बिताते हैं। तब, चंद्रमा के इस अहं से कुपित होकर दक्ष ने उनको श्राप दिया। इसी श्राप के कारण, चंद्रमा 15 दिन अर्धचंद्र से पूर्ण चंद्रमा तक वृद्धि करते हैं और 15 दिन क्षय करते हैं जिस कारण, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि अहं बहुत अनिष्टकारी होता है जो व्यक्ति की कुंडली के, बहुत सारे भावों को खराब करना आरंभ कर देता है। सर्वप्रथम, इसका पहला हमला लग्न के ऊपर होता है उसके बाद, साहस दर्शाने वाले तृतीय भाव के ऊपर होता है। व्यक्ति जो बल प्राप्त करता है वो, लग्न की वजह से ही तृतीय भाव से दिखाई देता है। तत्पश्चात् यह छठे, अष्टम, एकादश और द्वादश भाव को प्रभावित करता है यानि यह मंगल से भी ज्यादा अनिष्टकारी होता है। किसी व्यक्ति के अंदर, किसी भी मात्रा में अहं या मैं की प्रवृत्ति, मंगल से भी ज्यादा अनिष्टकारी होती है। ऐसे में, बिना कुंडली देखे हम यही कहेंगे कि लोगों को अपने अहम का त्याग करना चाहिए क्योंकि जितनी, सफलता के साथ व्यक्ति अहम को त्यागता है उतना ही, वह सफलता की   सीढ़ियां चढ़ना शुरू कर देता है।

उदाहरण के लिए हम, हमारे पास आई एक छोटी सी फोन कॉल का उल्लेख करना चाहते हैं जिससे आप अहं से हो रहे नुकसान को जान पाएंगे। एक महिला ने फोन कॉल पर कहा- मुझे अपने विषय में जानना है क्योंकि मैं अपने बच्चों को लेकर बहुत चिंतित हूं। मेरे घरवालों और मेरे पति ने तो मुसीबत ही कर रखी है। मेरे पति जितना भी कमाते हैं, सारा अपनी मां और बहनों पर लुटा देते हैं जिससे हमारी कोई बचत भी नहीं होती जिस कारण मैं बहुत परेशान रहती हूं। उनकी बात सुनकर हमने दिलासा देते हुए कहा, चलिए कोई बात नहीं। सबसे पहले हम आपके पति की कुंडली देखते हैं कि वो आखिर ऐसा क्यों करते हैं। 

पति की जन्मतिथि- 14 मई, 1977
समय- रात्रि 10:30 
जन्मस्थान- सिरसा 

पत्नी की जन्मतिथि- 2 दिसंबर 1980
समय- शाम 5:10 
जन्मस्थान- बिजनौर

इस आधार पर उनके पति की कुंडली बनाकर, हमने उन्हें बताया कि आपके पति का धनु लग्न और मीन राशि आती है और चतुर्थ भाव के अंदर केतु, मंगल, चंद्रमा और शुक्र भी है। आप कहती हैं कि वो सारा पैसा अपने घर पर लुटाते हैं लेकिन, कुंडली से तो यह लगता है कि वो जितना भी मर्जी लुटाते हों लेकिन, उनकी मां यह सोचती होंगी कि यह कोई पैसा मुझ पर खर्च नहीं करता और सारा पैसा अपना पत्नी को देता है। क्या आपको भी ऐसी बात लगती है कि आपको अपनी सास से यह सुनने को मिलता हो कि तुम लोग सारे के सारे पैसे अपने पास रखते हो। इस पर वो महिला बोलीं- जी, बिल्कुल ऐसा ही होता है और इसी वजह से हमारी लड़ाई भी बहुत रहती है। हमने उनसे पूछा- आप कहती होंगी कि जब उन्हें लगता ही नहीं है तो आप अपना पैसा वहां लुटाते ही क्यों हो। साथ ही, आप हमें यह  बताइए कि क्या आपके पति दो भाई हैं? क्या उनका एक भाई और है? उन्होंने जबाब दिया- हां जी, यह बड़े हैं। अब हमने दूसरी सबसे बड़ी बात यह जाननी चाही कि घर में फंक्शन वगैरह होने पर, जो बड़े का मान-सम्मान होना चाहिए या जो बड़े का मान होता है क्या वो उनको मिलता है या उसमें कोई त्रुटि रह जाती है। उन्होंने कहा- जी नहीं, इनको तो कोई पूछता भी नहीं है। छोटे भाई का इनसे ज्यादा मान-सम्मान है। अब, तीसरी बात हम यह जानना चाहते हैं कि आपके पति की पैतृक संपत्ति अच्छी-खासी विशाल लगती है  क्या ऐसा है? इस पर उनका जबाब था-जी, गांव में इनकी काफी ज्यादा जमीनें हैं और स्वयं का घर भी है। 

इन सभी बातों को जानने के बाद हमने उन्हें बताया कि आपके पति के अष्टम भाव में शनि बैठा हुआ है जो दीर्घायु तो देता ही है साथ ही, पैतृक संपत्ति के बारे में भी घोषणा करता है जिसका संबंध, चतुर्थ और अष्टम भाव से भी होता है। हमें ऐसा लगता है कि यदि आपके पति अपने माता-पिता के साथ, सही प्रकार से संतुलन नहीं बनाया तो पैतृक संपत्ति में मिलने वाले अंश के अंदर आप बहुत धोखा खा जाएंगी यानि वो अंश आपको नहीं मिलेगा। आप यह सोचकर चादर तानकर सो रही हैं कि पैसा अपने आप मिल जाएगा लेकिन, ऐसा होने वाला नहीं है। आप अपने पति को अपने सास-ससुर की थोड़ी ज्यादा सेवा करने दीजिए। जहां तक पैसे की बात है हमें यह लगता है कि वो पैसा खर्च ही नहीं करते। वो एक दमड़ी भी खर्च करते हैं तो वो आपको अशर्फी नजर आती है। ऐसा आपकी कुंडली कहती है क्योंकि चतुर्थ भाव के अंदर केतु और चंद्रमा बैठा हुआ है। मां के ऊपर कोई खर्चा नहीं होता है सिर्फ, मुंह की बातें हैं वो भी बहुत कम और वो भी आपको अच्छी नहीं लगती हैं। हम आपसे यह बताना चाहेंगे कि यदि आपके पति ₹100 भी कमाते हैं और दो-चार रुपए अगर माता-पिता पर खर्च हो भी रहे हैं तो ये आपके लिए, बहुत अच्छी इन्वेस्टमेंट है इसलिए सब चीजों को भूल जाइए क्योंकि आपको जो प्रॉपर्टी मिलने वाली है यह उसकी एक इन्वेस्टमेंट है। इस कारण, आप अपने पति को ऐसा करने दीजिए अन्यथा, आप बहुत परेशानी में आ जाएंगी। जब वसीयत पढ़ने का समय आएगा तब, उसमें आपका नाम बहुत कम या चंद पैसों के लिए ही हो जाएगा। ऐसे में, अब आप थोड़ा सा यह सोच कर देखिए कि यदि यह आपके माता-पिता होते और पति की जगह आपका भाई होता और वो उतना ही कर रहा होता जितना आपके पति कर रहे हैं तो क्या यह ठीक है? आप एक बार परिकल्पना करके देखिए आपको स्वयं लगेगा कि आपके पति ज्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं बल्कि, जितना कर रहे हैं उससे ज्यादा करना चाहिए। इसके अलावा, आपको घर में एक श्रीखंड मणि रखकर, उसकी नित्य पूजा करनी चाहिए और इसी के साथ, रविवार के दिन व्रत रखना शुरू कर देना चाहिए। इससे आपको अच्छा लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। 

इस घटना में आपने यह बात देखी कि इन महिला को सिर्फ अपना ही अपना दिखाई देता है यानि उसके पति सिर्फ उसके लिए ही कार्य करें और यदि पति किसी के लिए बोलते भी हैं तो उन्हें वो अप्रिय नजर आता है। हमारे यह बताने पर कि पति पर जरा सा भी अंकुश लगाने पर, उनका अष्टम भाव प्रभावित होने से पैतृक संपत्ति नहीं मिलेगी तो वह बहुत परेशान हो गईं। 

आप सभी को यह समझना चाहिए कि यदि आपके अंदर भी अहं की भावना है तो वो किसी ना किसी भाव को इतनी बुरी तरीके से नेस्तनाबूद कर देती है कि फिर उसे कोई भी उपाय ठीक नहीं कर पाता है। इस बात को  भली-भांति समझाने के लिए, एक और फोन कॉल का उल्लेख करना चाहेंगे। गुरु जी, नमस्कार। मैं गिरधारी लाल बोल रहा हूं भोपाल से। गुरुजी, मैं बहुत कष्टों में हूं। उम्र के इस पड़ाव पर सबने मेरा साथ छोड़ दिया। मेरी पत्नी भी मुझसे अलग बच्चों के साथ रहती है और बच्चे मुझे नहीं पूछते। कोई मुझे नहीं पूछता सब मुझसे दूर रहते हैं। आप समझिए कि मैंने सबके लिए सब कुछ किया। सबको पढ़ाया-लिखाया, शादियां कीं सब कुछ कराया लेकिन, अब जब मेरी बारी आई और मेरी सेहत भी ठीक नहीं रहती तो सबने मुझसे मुंह मोड़ लिया। मैं बीमार रहता हूं लेकिन, कोई मुझे नहीं पूछता और मैं  अकेला रहता हूं। मैं ऐसा क्या करूं कि जिंदगी के बाकी दिन शांति से बीतें। मेरी डेट ऑफ बर्थ इस प्रकार है-

जन्मतिथि- 10 सितंबर 1946 
जन्मस्थान- कटनी 
समय- दोपहर 2:30 

इस आधार पर हमने कुंडली बनाकर उन्हें बताया कि इस हिसाब से आपका 13° पर धनु लग्न आता है। आप हमें यह बताइए कि क्या आपके पिताजी का स्वर्गवास जल्दी हो गया था? उन्होंने जबाब दिया- हां जी, काफी छोटी उम्र में ही हो गया था। इसके साथ ही, हम यह भी जानना चाहते हैं कि आप जो काम या नौकरी करते थे वो आपके पिताजी के कारण लगी थी या आपके खुद के प्रयासों से लगी थी। जबाब मिला- जी, पिताजी की बदौलत ही हुआ था। कहने का तात्पर्य यह है कि उनके पिताजी के देहावसान के बाद ही, उनकी जगह आपको नौकरी मिल गई थी यानि कि उन्होंने अपने पिताजी की ही नौकरी ली थी क्योंकि वो अपने घर के जेष्ठ पुत्र थे। अब, हमने उनसे पूछा कि इस समय आपके दांतों की स्थिति कैसी है? उसमें कोई पीड़ा तो नहीं है? कहीं से टूटे-फूटे या आगे को निकले हुए तो नहीं है? उन्होंने जबाब दिया- आगे के दो दांत टूटे हुए हैं और दांत बहुत सक्षम स्थिति में नहीं हैं। इसके बाद, हमने एक बात की और जानकारी मांगी कि आपके कितने बच्चे हैं? जिस पर उन्होंने जबाब दिया- जी, मेरे तीन लड़के और एक लड़की है। उनकी कुंडली से लगता था कि उनके छोटे भाई-बहन की मात्रा भी अच्छी-खासी होगी मतलब 4-5 भाई-बहन रहे होंगे  और आपके पिताजी के जाने के बाद, आपकी माताजी काफी समय तक जीवित रही होंगी। जिस पर उन्होंने बताया कि हां जी, मेरी माता जी करीब 18-20 साल ज्यादा रहीं।

इन जानकारियों के बाद हमने उन्हें बताया कि आपकी सारी बातें सही हैं। अब, हम यह कहना चाहते हैं कि आपने अपने परिवार, अपने भाई-बहनों को पाला। आप नौकरी करके लाते थे और उनको पालते थे। आप जो पैसा कमाते थे उनके ऊपर खर्च करते थे। आपको लगता था कि आप सारा खर्चा उनके ऊपर कर रहे हैं। साथ ही, आपकी पत्नी और बच्चों को भी यह लगता होगा कि आप अपने भाई-बहनों के ऊपर पैसा खर्च करते हैं। आप उस समय बहुत रूआब में रहते होंगे कि आप सब को पालते-पोसते हैं और आपने उनकी शादी इत्यादि भी की होगी। जहां तक, आपके बच्चों की बात है आपने उनकी भी अच्छी तरह देखभाल की और अब आपको लगता होगा कि अब कोई भी आपके साथ नहीं है। जिस पर, हम आपसे यह कहना चाहते हैं कि हमारे मन में कुछ गुरूर होते हैं जिसके चलते, हम यह सोचते हैं कि हम ही सब कुछ कर रहे हैं या सब कुछ हमने ही किया है। हालांकि, जब हम स्वयं के प्रयासों से भी नौकरी प्राप्त करते हैं तब भी, वो ईश्वर की ही देन होती है। लेकिन, आपको तो आपके पिताजी नौकरी गिफ्ट देकर गए हैं और वो गिफ्ट वाली नौकरी भी आपको इसलिए मिली क्योंकि आप जेष्ठ पुत्र हैं। साथ ही, वो नौकरी भी कंपनी या सरकार ने इसलिए दी होगी कि आप पर, आपके पिताजी के आश्रित लोग हैं। उपहारस्वरूप मिली चीज के लिए, आपके मन में हमेशा यह बात रही कि सब कुछ मैं कर रहा हूं जबकि, आप सब कुछ नहीं कर रहे। 30-40 साल जब तक आपने नौकरी की आप इसी गुरुर में रहे लेकिन, अब इस समय आप परेशानी में हैं क्योंकि वो सब बातें उल्टी होकर आपके ऊपर गिर रही हैं। हम आपसे सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि यदि उस समय आपने जीवन को समर्पण भाव से जिया होता और स्वयं को ज्यादा कलेक्टर नहीं समझा होता तो शायद, आज आप जीवन के किसी अच्छे पड़ाव पर होते। अब, आपके भाई-बहन और बच्चे जिनका आपने किया वह भी आपके खिलाफ हैं। साथ ही, बच्चे जिनका आपने किया तो सही लेकिन, आपने उनको बहुत जताया कि मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या कर रहा हूं। हमें तो लगता है कि आप अब भी कहते होंगे कि इन्हें नहीं पता कि मैंने इनके लिए कितना काम किया है लेकिन, ऐसी बात नहीं है क्योंकि आपने जो कुछ भी किया वह एक कन्वेयर बेल्ट की तरह किया यानि, कहीं से लिया और कहीं दिया। अब, आपका जीवन ठीक होने में अभी थोड़ा समय लगेगा लेकिन, आपको एक छोटा सा कार्य करना शुरू कर देना चाहिए इससे आपको लाभ होगा। सुबह कम से कम 20 मिनट रोज ध्यान या मेडिटेशन करना चाहिए। साथ ही, रोज सुबह चंद्र मंत्र "ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः" की तीन मालाओं का उच्चारण भी करना चाहिए। इससे आपके मन को शांति मिलेगी और आप स्वयं का आकलन कर पाएंगे कि क्या अच्छा या बुरा किया है। आपका जीवन मधुर होना शुरू हो जाएगा। साथ ही,  बच्चों के भी लौट आने की संभावना बनेगी। 

उपरोक्त उदाहरणों से आपको यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि जब आप शास्त्रों के हिसाब से दान करते हैं तो वो दान आपको याद नहीं रहना चाहिए क्योंकि तभी उस दान का महत्व होता है। कहीं पर जाकर, कुछ देकर आने पर, वो बात याद रह गई तो उसका कोई प्रतिफल नहीं मिलता। ये महाशय अभी तक अहं के अंदर जीवित हैं। इन्होंने किसी के भी साथ कोई भी कार्य किया हो चाहे, लाभ के लिए या हानि के लिए या किसी को कुछ भी दिया हो, इन्हें अभी तक सारी की सारी बातें याद हैं यानि कि वो दान की श्रेणी में नहीं आया। अक्सर, ऐसा होता है कि इसका प्रतिफल हमको प्रारब्ध के हिसाब में जुड़ जाता है जो अगले जन्म में प्राप्त होता है लेकिन, इनको इसी जन्म में प्राप्त हो रहा है यानि कि इन्होंने जिनकी मदद की वो, इनसे विमुख हो गया। इन्होंने किसी को जो कुछ दिया उन्होंने, उसका मान नहीं किया। 

कर्मों को शुद्ध करने की आवश्यकता 

आपने भी देखा होगा कि बहुधा कोई व्यक्ति कहीं जाकर कुछ मदद कर देता है या कुछ पैसे दे आता है लेकिन, वो इसको इतना गाना आरंभ कर देता है कि मैंने ऐसा किया और कहीं पर भी मौका मिलने पर उसे बताने से नहीं चूकता। हालांकि, यह उसका एक आंतरिक गुण होता है जिस कारण उसको अपने किए दान का लाभ नहीं मिलता बल्कि, जिसने दान लिया होता है उसके कोप का पात्र बन जाता है। अतः हमारी आप से यह विनती है कि ऐसी कोई भी स्थिति आने पर कि किसी को कुछ देने पर, फल की इच्छा बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। जब आप फल की इच्छा नहीं करेंगे तो आपको अनायास ही फल प्राप्त होंगे तो आपका जीवन अच्छा होना शुरू हो जाएगा। इसमें दूसरी बात यह होती है कि अपने कर्मों को शुद्ध करने की चेष्टा करनी चाहिए और वैदिक नियमों के अनुरूप कर्म करने चाहिए क्योंकि वैदिक नियमों के अनुरूप कर्मों को नहीं करने पर, आप वैदिक नियमों से दूर हो जाते हैं जिससे हमें लाभ नहीं मिलता बल्कि, हमारा प्रारब्ध यानि हमारे इस जन्म के कर्मों की  पासबुक में नकारात्मक एंट्री होने लगती है। इस स्थिति को, आप सिर्फ बजरंगी धाम में कर्म सुधार द्वारा ठीक कर सकते हैं। इसके लिए, आपको एक बार हमें अपनी कुंडली दिखाने की आवश्यकता होती है जिससे हम आपके कर्मों को शुद्ध और दुरुस्त करने की कोशिश करते हैं।