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जब बीवी को हो मायके से ज्यादा लगाव |

परिवार को समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए पत्नियों की तरह पतियों की भी बहुत खास भूमिका होती है। अगर दोनों मिलकर कोशिश करते हैं तभी परिवार में सुख-शांति बनी रह सकती है, इसलिए पति या पत्नी में से कोई भी परिवार में अपनी भूमिका से पीछे नहीं हट सकता है। विवाह ज्योतिष में, वैवाहिक संबंधों को विस्तारपूर्वक उल्लेखित किया गया है। ज्योतिष द्वारा वैवाहिक सुख एवं दांपत्य जीवन में जीवनसाथी का सहयोग, जीवनसाथी का परिवार एवं उसके भावी जीवन के अच्छे-बुरे समय को समझने में सहायता मिल सकती है। कई बार देखा जाता है की पति-पत्नी के जीवन में तालमेल की कमी और विचारों का टकराव अधिक हो सकता है या फिर पत्नी बार-बार अपने मायके जाने की जिद करती है। पति-पत्नी दोनों के संबंध चाहे कितने भी मधुर हों लेकिन, पत्नी के मन में अपने मायके के प्रति अधिक लगाव रह सकता है। ऐसे में, यह स्थिति पति-पत्नी के बीच विवाद या परेशानी का कारण भी बन सकती है क्योंकि पत्नी का मायके के प्रति अत्यधिक लगाव, ससुराल पक्ष के रिश्तों में तनाव का कारण बन सकता है। 

मायके के प्रति लगाव से संबंधित ग्रह/Planets responsible for attachment to the maternal side

ज्योतिष में, प्रत्येक संबंध के लिए अलग-अलग ग्रह जिम्मेदार होते हैं। जहां, सूर्य पिता के साथ संबंधों से सम्बन्धित होता है वहीं, चन्द्रमा माता के और मंगल भाई-बहनों से संबंधित ग्रह होता है। किसी भी संबंध में उस समय दूरी या खटास आने लगती हैं जब कुंडली में इन संबंधों के स्वामी ग्रह कमजोर होने लगते हैं। जैसे, पुरुष की कुंडली में चौथा भाव, चंद्रमा, सूर्य और मंगल होते है वैसे ही, स्त्री की कुंडली में भी समान भाव होते हैं अर्थात् उसका प्रेम माता-पिता, भाई-बहन और छोड़े गए घर से पुरुष के समान ही होता है। 

आज से कुछ दशक पहले तक, जब बड़े परिवार होते थे तो यह प्रेम तो होता था, लेकिन अभिव्यक्ति की भावना कुछ कम होती थी, क्योंकि परिस्थितियां कई भाई-बहनों के बीच बंट जाया करती थीं। लेकिन, आजकल के एकल या छोटे परिवारों में तो कहीं-कहीं सिर्फ एक ही पुत्री होती है अर्थात् चंद्रमा (मां), सूर्य (पिता) और यदि भाई-बहन हों तो वह होते हैं। ऐसे में, चौथे भाव यानि माता-पिता के भाव से मोह कम नहीं हो पाता अपितु, और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि मायके से भी प्रीतिवश, जरूरत से ज्यादा संपर्क रहता है। इस कारण, विवाह के बाद लड़की जिस परिवार में आती है उसके ढांचे में स्थिरता नहीं आ पाती। इसके परिणामस्वरूप, परिवार में आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गरम सा बना रहता है तथा ऐसे में, लड़की के मन में विस्थापन का घाव कभी नहीं भर पाता। इसके अतिरिक्त, यदि पत्नी का अब का परिवार (ससुराल पक्ष) सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर पड़ जाता है तथा पति का साधारण सा घर होने या साधारण मनुष्य की तरह ही दिखने और खान-पान आशा के अनुरूप नहीं होने पर, परेशानियां काफी हद तक बढ़ जाती हैं। 

कुंडली मिलान द्वारा ग्रह और भाव के बलाबल को समझना

वास्तविक स्थिति से सही प्रकार से लड़ना ही कुंडली का वास्तविक महत्व दिखाता है। लड़की के लग्न से चंद्रमा, सूर्य, मंगल इत्यादि का संबंध समाप्त नहीं किया जा सकता तथा लड़के के लग्न, दूसरे और चौथे भाव से  बहुत ज्यादा वलिष्ठ लड़की के साथ संबंध नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में, यह समझने की बात है कि कुंडली का मिलान करते समय ये बलाबल देखा जाना चाहिए कि क्या पुरुष की कुंडली, लड़की की कुंडली के बलाबल को प्रभावहीन कर सकती है? निश्चित तौर से इस तरीके से हुआ विवाह बेमेल नहीं होगा और उसमें एक रुझान बना रहेगा। साथ ही, लड़की की अपने घर से प्रीति भी बनी रहेगी जो लड़के को इतनी नहीं खलेगी।

अब, यहां एक प्रश्न यह उठता है कि पहले से ही जो पुरुष यह कष्ट झेल रहे हैं क्या उनके लिए भी कोई अमृतधारा है? तो इसका उत्तर है- हां, अवश्य क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में कुंडली की पड़ताल करने के बाद, इन बातों का भली-भांति पता चलता है कि व्यक्ति को अपने जीवन में क्या-क्या सुदृढ़ करना है और किन-किन बातों का त्याग करने की आवश्यकता है। साथ ही, यह भी पता चलता है कि क्या इस प्रणाली के तहत वह व्यक्ति इन बातों को अपना लेगा या नहीं। 

निष्कर्ष

यहां, इस बात के मायने कम है कि आपकी पत्नी अपने मायके से कितना प्रेम करती है बल्कि, यह बात अधिक मायने रखती है कि आप किस प्रकार उसके प्रेम को व्यवस्थित कर पाते हैं, ताकि उसका आपके घर पर बिल्कुल प्रभाव ना पड़े। पत्नी की ऊर्जा को व्यवस्थित करना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है जिससे वह केवल  अपने पीहर की तरफ ही केंद्रित ना हो बल्कि, वह आपके परिवार में भी केंद्रित रहे। लेकिन, इसकी कुंजी  पति-पत्नी दोनों की कुंडली में ही छिपी हुई होती है। आप इसका समाधान हमारे द्वारा कुंडली के पूर्ण विश्लेषण/comprehensive horoscope matching से प्राप्त कर सकते हैं।