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आचमन की प्रक्रिया के बारे में समस्त जानकारी

आचमन

पूजन के पूर्व आचमन क्यों किया जाता है?/ Why to follow the process of Aachmana before worship?

क्या घर पर पूजन से पूर्व आचमन करना आवश्यक होता है?

आचमन का अर्थ / Meaning of Aachmana

आचमन का अर्थ है- 'जल पीना'। लेकिन आचमन से पूर्व, शरीर के समस्त छिद्रों को जल से स्वच्छ किया जाता है। प्रार्थना, दर्शन, पूजन, यज्ञ/yagna आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धिकरण के लिए, मन्त्र पाठ के समय जल पीने की प्रक्रिया को आचमन/Aachmana कहा जाता है। 

आचमन में पानी की मात्रा / Quantity of water of Aachmana

आचमन करने के लिए, उतना ही जल लिया या पिया जाता है जितना ह्रदय तक पहुंच सके तथा इस जल को थोड़ी-थोड़ी देर के अंतराल पर तीन बार पिया जाता है।

आचमनी द्वारा आचमन / Aachmani for Aachmana

आचमनी का अर्थ है- तांबे के छोटा बर्तन और चम्मच को आचमनी कहा जाता है। तांबे के छोटे बर्तन में जल भरकर और उसमें तुलसी डालकर हमेशा पूजा/worship के स्थान पर रखा जाता है। इस जल को आचमन का जल या पवित्र जल कहा जाता है।

1. पहला लाभ : हृदय की शुद्धि।

२. दूसरा लाभ : यह मन को शुद्ध करता है।

3. तीसरा लाभ : पूजा से प्राप्त होने वाले परिणाम दुगने हो जाते हैं।

4. चौथा लाभ : इस विधि का पालन करने वाले व्यक्ति  शुद्ध होकर, सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।

5. पांचवा लाभ: आचमन करने वाले व्यक्ति अच्छे कर्मों के अधिकारी होते हैं,।

6. छठा लाभ : पहले आचमन से ऋग्वेद, दूसरे से यजुर्वेद और तीसरे से सामवेद तुष्ट होते हैं। आचमन करने के बाद, दाहिने हाथ के अँगूठे से मुँह को छूने से अथर्ववेद की तुष्टि होती है और सिर पर जल छिड़कने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। दोनों नेत्रों के स्पर्श से सूर्य, नासिका के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त हो जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि आचमन करने से पूजा का फल दोगुना हो जाता है।

आचमन विधि / Aachmana Vidhi:

हालांकि, आचमन के कई नियम और मंत्र होते हैं, लेकिन इस एक छोटी सी विधि के द्वारा भी आचमन किया जा सकता है-

आचमन/Aachmana उत्तर, उत्तर पूर्व या पूर्व दिशा की ओर मुख करके किया जाता है; इसके अतिरिक्त अन्य दिशाओं में इस प्रक्रिया को नहीं करना चाहिए। इसे गायत्री श्लोकों के साथ तांबे के बर्तन, पगड़ी, आचमनी, हाथ धोने का कटोरा, आसन आदि लेकर किया जाता है। इसे प्रातः काल की संध्या तारों के छिपने के बाद और सूर्योदय से पूर्व किया जाता है।

गाय के कान का आकार देते हुए, कनिष्ठा उंगली और अंगूठी को छोड़कर, हथेलियों को मोड़ने के बाद, जल  लेकर निम्न मंत्रों/mantra का तीन बार जाप करते हुए जल ग्रहण करें:

ॐ केशवाय नमः ।

ॐ नारायणाय नमः ।

ॐ माधवाय नमः ।

ॐ ह्रषीकेशाय नमः ।

इन मंत्रों/mantra को बोलते हुए, ब्रह्मतीर्थ (अंगूठे के मूल भाग) से होठों को दो बार रगड़ कर, हस्त प्रक्षालन (हाथ धोना) किया जाता है। उपरोक्त विधि को न कर पाने की स्थिति में, केवल दाहिने कान को स्पर्श करने पर भी, आचमन विधि की हुई मानी जाती है। 

आचमन मुद्रा / Achamana Mudra 

शास्त्रों में कहा गया है-" त्रिपवेद आपो गोकर्णवरद् हस्तेन " अर्थात् आचमन के लिए बाएं हाथ की गोकर्ण मुद्रा ही लाभदायक होती है। गोकर्ण मुद्रा बनाने के लिए तर्जनी को मोड़कर अंगूठे से दबाने के बाद मध्यमा, अनामिका और छोटी उंगली को आपस में गाय के कान के समान आकार में मोड़ना चाहिए।

भविष्य पुराण के अनुसार, पूजा/worship के समय आचमन उचित विधान द्वारा किया जाना चाहिए। हाथ-पैरों को धोने के बाद, पवित्र स्थान पर पूर्व से उत्तर दिशा की ओर मुख करके, आसन पर बैठ जाएं।

आचमन करते समय हथेली में पंचतीर्थ बताए गए हैं-

 १. देवतीर्थ, २. पितृतीर्थ, ३. ब्रह्मतीर्थ, ४. प्रजापतितीर्थ और ५. सौम्यतीर्थ।

कहा जाता है कि अंगूठे के मूल में ब्रह्मतीर्थ, छोटी उंगली(कनिष्ठा) के मूल में प्रजापतितीर्थ, उंगलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य में सौम्यतीर्थ होता है, जिन्हें देवकर्मों करने के लिए उत्तम माना जाता है। आचमन  हमेशा ब्रह्मतीर्थ से करना चाहिए। आचमन/ Aachman करने से पूर्व, उँगलियों को आपस में मिलाकर, पवित्र जल से बिना कुछ कहे तीन बार आचमन करने से उत्तम परिणामों की प्राप्ति होती है। आचमन हमेशा तीन बार करना चाहिए।

आचमन के बारे में लिखा भी गया है कि -

प्रथमं यत् पिबति तेन ऋग्वेद प्रीणाति।

यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेद प्रीणाति।

यत् तृतीयं तेन सामवेद प्रीणाति।

अर्थात् तीन बार आचमन की क्रिया करने पर, हर बार एक वेद की तुष्टि होती है। प्रत्येक क्रिया करने से तन, मन, और कर्मों में आनंद की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि आचमन करने के बाद छींक, डकार और जम्हाई आदि नहीं होती है, लेकिन इस विश्वास का  कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

"शौच ईपसु: सर्वदा आचामेद एकान्ते प्राग उदड़्ग मुख:" (मनुस्मृति)

अर्थात् पवित्रता के इच्छुक व्यक्तियों को एकांत में आचमन करना चाहिए। आचमन को, कर्मकांडों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तव में, यह सिर्फ एक प्रक्रिया न होकर, बाहरी और आंतरिक शुद्धता का प्रतीक होती है।

एवं स ब्राह्मणों नित्यमुस्पर्शनमाचरेत्।

ब्रह्मादिस्तम्बपर्यंन्तं जगत् स परितर्पयेत्॥

 प्रत्येक कार्य में आचमन का विधान है। आचमन से न सिर्फ स्वयं की शुद्धि होती है, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृण तक की भी तृप्ति हो जाती है। जब हाथ में जल लेकर आचमन/Aachman किया जाता है, तो यह मुंह से गले तक ही जाता है तथा यह इतना कम होता है कि यह आंतों तक नहीं पहुंच पाता। जल, हृदय के पास स्थित ज्ञान चक्र तक पहुंचता है और फिर इसकी गति कम हो जाती है। इसका अर्थ होता है कि वचन और विचार दोनों से शुद्ध होकर, मन:स्थिति पूजा-योग्य हो गई है। इस प्रक्रिया में, एक विशेष तांबे के बर्तन से हथेली में जल लेकर आचमन किया जाता है। तत्पश्चात्, जल छिड़ककर स्वयं को शुद्ध किया जाता है।

मनुस्मृति में कहा गया है कि नींद से जागने के बाद, भूख लगने के बाद, भोजन करने के बाद, छींक आने पर, असत्य बोलने के बाद, पानी पीने के बाद और अध्ययन के बाद आचमन करना चाहिए।

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