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कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, को तुलसी-वृक्ष और शालिग्राम का विवाह संस्कार किया जाता है। मान्यता है कि इस अनुष्ठान को करने से भगवान विष्णु और भगवती लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं। पद्म पुराण के अनुसार, देवी तुलसी भगवती लक्ष्मी का अवतरण या अवतार हैं तथा शालिग्राम भगवान विष्णु की अभिव्यक्ति हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्राचीन लेखों में उनके अवतार का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, पवित्र तुलसी-पौधे और शालिग्राम का विवाह संस्कार करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है इसलिए सनातन धर्म में अत्यंत श्रद्धा के साथ भगवती तुलसी और शालिग्राम का विवाह करने की परंपरा का पालन किया जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व/ The significance of Tulsi Vivah
हिंदू धर्म में पवित्र माने जाने के कारण तुलसी का अपना विशेष महत्व है। धार्मिक महत्व के साथ ही, तुलसी को उसके वैज्ञानिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, तुलसी का पौधा अपने समृद्ध औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में, भगवती तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना गया है जिनका विवाह शालिग्राम से हुआ है। शालिग्राम को भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण के अवतरण के रूप में दर्शाया गया है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का दिन क्षीरसागर में भगवान विष्णु का चार महीने की योगनिद्रा अवधि का प्रतीक है। अपनी चार महीने लंबी निद्रा से भगवान विष्णु देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन जागृत होते हैं। तुलसी अत्यधिक प्रिय होने के कारण, भगवान विष्णु नींद से जागने पर तुलसी की प्रार्थनाएं सुनना पसंद करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन देवी तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ किया जाता है। किसी व्यक्ति की पुत्री नहीं होने पर यदि वह कन्यादान (विवाह में पुत्री का दान) का पुण्य अर्जित नहीं कर सकता है तो वह तुलसी-पौधे का विवाह संस्कार करा कर कन्यादान का पुण्य अर्जित कर सकते हैं।
माना जाता है कि तुलसी की पूजा करने वाले लोगों के घरों में हमेशा धन की प्रचुरता रहती है। तुलसी विवाह के साथ ही चार महीने के अंतराल के बाद, विवाह जैसे शुभ समारोह आदि फिर से शुरू होते हैं। कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी का दिन भगवती तुलसी और शालिग्राम के विवाह संस्कार को समर्पित होता है।
तुलसी विवाह भगवान के प्रस्तर रूप से क्यों किया जाता है?/ Why is Goddess Tulsi married off to a stone?
हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी के दिन चार महीने बाद, भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागृत होने पर सभी समारोहों की फिर से शुरुआत होती है तथा देवउठनी एकादशी के ही दिन देवी तुलसी और शालिग्राम का विवाह संस्कार भी होता है। विवाह संस्कार के दौरान तुलसी के पौधे को हिंदू दुल्हन की तरह साड़ी पहना कर और सजाकर पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ, दूल्हे शालिग्राम के साथ विवाह की सभी रस्में कराई जाती है।
श्राप के कारण भगवान विष्णु का प्रस्तर रूप (शालिग्राम) में अवतरण/ Due to a curse, Lord Vishnu turned into a stone (Shaligram)
एक पौराणिक कथा के अनुसार, विष्णु जी के छल के कारण वृंदा का प्रण टूटने से युद्ध में उसका पति जालंधर मारा गया और घर के प्रांगण में उसका सिर आकर गिर गया। अपने पति का सिर देखकर वृंदा हैरान रह गई। तब उसने अपने साथी से पूछा- कि वह कौन है? तब जालंधर के वेश में छल कर रहे भगवान विष्णु ने अपनी असली पहचान बताते हुए कहा कि उन्होंने जालंधर के लिए रखे गए वृंदा के प्रण को तोड़ने के लिए उसके साथ छल किया है।
इस विश्वासघात के कारण वृंदा ने भगवान विष्णु को अपनी पत्नी से अलग होने के दर्द से गुजरने का श्राप दिया- जैसे वह अपने पति के अलग होने के दर्द से गुजर रही थी और जिस प्रकार तुमने वेश बदलकर मेरे साथ छल किया है वैसे ही तुम्हारी पत्नी का छल द्वारा अपहरण होगा और तुम अपनी पत्नी के वियोग के कारण जीने को मजबूर होगे। इसके बाद वृंदा बोली, छलपूर्वक मेरा प्रण तोड़ने के कारण तुम पत्थर के बन जाओगे। तब से भगवान विष्णु को शालिग्राम कहा जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि वृंदा के श्राप के कारण ही, भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप में अवतार लेकर पत्नी सीता के वियोग का दर्द सहा था।
वृंदा और तुलसी पौधे का संबंध/ The association between Vrinda and Tulasi plant
इससे संबंधित दंतकथा के अनुसार, तुलसी के पौधे की उत्पत्ति ठीक उसी स्थान पर हुई थी, जहां वृंदा सती हुई थी। वृंदा के मरण स्थान पर तुलसी-पौधे की उत्पत्ति होने के कारण तुलसी को वृंदा के रूप में माना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि वृंदा के श्राप देने पर भगवान विष्णु ने वृंदा को तुलसी रूप में अपनी पत्नी के रूप में सम्मान देकर अपने कर्म का पश्चाताप किया और कहा, कि वह उसकी पवित्रता का सम्मान करते हैं, अतः वह हमेशा उनके साथ पति और पत्नी के रूप में रहेगी तथा जो कोई भी कार्तिक शुक्ल एकादशी पर आपके साथ मेरा विवाह करेगा, मेरी कृपा से उसकी हर सांसारिक और गैर-सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति होगी। तब से ही, देवउठनी एकादशी के दिन से शालिग्राम और तुलसी विवाह संस्कार की परंपरा शुरू हुई। साथ ही, भगवान विष्णु जी के पूजन में तुलसी जी का विशेष महत्व होने के कारण, तुलसी-पत्र के बिना भगवान विष्णु जी का पूजन अधूरा माना जाता है।
बिना कन्या वाले व्यक्तियों के लिए मददगार है तुलसी विवाह/ Tulsi Vivah is helpful for people who don’t have a daughter.
तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्ल एकादशी का दिन, शालिग्राम के साथ देवी तुलसी के विवाह के उत्सव के समर्पित होने के कारण, अत्यधिक शुभ माना जाता है। हिंदू वैवाहिक संस्कारों का पालन करते हुए विवाह संस्कार किया जाता है इसलिए बिना कन्या वाले दंपतियों को कन्यादान का पुण्य प्राप्त करने के लिए तुलसी विवाह संस्कार करना चाहिए।
तुलसी पौधे का पौराणिक और औषधीय महत्व/ Medicinal and Puranic significance of Tulsi plant
स्वास्थ्य और औषधीय दृष्टि से, तुलसी एक महत्वपूर्ण पौधा है। तुलसी की कुछ पत्तियां चाय के साथ उबालकर पीने से न सिर्फ स्वाद बढ़ता है बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाकर पूरा दिन ऊर्जावान रहा जा सकता है। तुलसी के औषधीय गुणों के कारण, कई आयुर्वेदिक दवाइयों और सामानों में तुलसी का महत्वपूर्ण स्थान होता है। स्वास्थ्य के साथ ही, धार्मिक दृष्टि से भी तुलसी का अत्यधिक महत्व है। एक ओर, जहां तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है वहीं दूसरी ओर, भगवान गणेश से उनकी गहरी शत्रुता है। गणेश पूजन के दौरान किसी भी रूप में तुलसी पत्र का प्रयोग करना वर्जित होता है।
तुलसी विवाह संबंधित चमत्कारी दंतकथा/ This miraculous legend associated with Tulsi Vivah
तुलसी विवाह से संबंधित कई किंवदंतियों में से ननद-भाभी की कथा विस्तृत रूप से सुनाई जाती है। कथा के अनुसार, ननद तुलसी की परम भक्त होने के कारण पूर्ण श्रद्धा के साथ उनकी आराधना किया करती थी, लेकिन उसकी भाभी को उसका तुलसी की पूजा करना पसंद नहीं था। वह गुस्से से चिल्ला कर अपनी ननद को ताना देती थी कि उसे शादी के उपहार या दहेज के रूप में केवल तुलसी का पौधा देगी और शादी में मेहमानों और बारातियों (दूल्हा-पक्ष) के स्वागत समारोह के रात्रिभोज में केवल तुलसी के पत्ते परोसेगी।
जल्दी ही, ननद की शादी की उम्र होने पर उसकी शादी का दिन आ गया। बारातियों के सामने भाभी के द्वारा तुलसी के पौधे को तोड़ने पर, भगवान की कृपा से सभी पत्ते और मिट्टी स्वादिष्ट भोजन में बदल गए। इससे भाभी ने अत्यधिक हताश होकर, अपनी ननद को सोने के आभूषणों से सजाने के बजाय उसके गले में तुलसी के दानों की माला पहना दी लेकिन अगले ही क्षण वह माला सोने के खूबसूरत हार में बदल गई। भाभी यहीं नहीं रुकी और उसने अपनी ननद को दुल्हन के वस्त्र देने की जगह जनेऊ पहनने को दे दिया। लेकिन वह जनेऊ भी एक खूबसूरत सिल्क की साड़ी में बदल गया। इन घटनाओं को देखकर ननद के पति के परिवार (नए परिवार) ने उसकी तहे दिल से प्रशंसा की। इन सब चमत्कारों को देखकर भाभी को तुलसी पूजा की शक्ति और महत्व समझ में आ गया।
कैसे भगवान तुलसी अपने सच्चे भक्तों को ही वरदान देती हैं?/ Goddess Tulsi bestows boon only to her true devotees.
सामान्य रूप से यह सर्वविदित है कि यदि मन में श्रद्धा न हो, तो सभी स्वादिष्ट मिठाइयां, फल, पुष्प आदि चढ़ाने का कोई मतलब नहीं होता लेकिन यदि ईश्वर के प्रति मन में सच्ची श्रद्धा हो, तो बिना किसी स्वार्थ के उनकी पूजा करके भगवान की कृपा के योग्य बनने के लिए एक फूल ही काफी होता है। उपरोक्त कही गई ननद-भाभी की कथा की अगली घटना से इस मत की पुष्टि होती है।
कथा के अनुसार, जब ननद विवाह के बाद अपने पति के साथ रहने चली गई, तब भाभी को तुलसी पूजन का महत्व समझ में आ गया। उसने अपनी पुत्री को तुलसी पूजन करने का निर्देश दिया लेकिन पुत्री ने अपनी माता के निर्देशों पर ध्यान नहीं दिया। तब भाभी मैं सोचा- यदि वह अपनी पुत्री के साथ भी वैसा ही व्यवहार करें जैसा उसने अपनी ननद के विवाह के दौरान किया था तो शायद देवी तुलसी उसकी पुत्री को भी वैसा ही वरदान दे। फिर उसने अपनी पुत्री के विवाह के दौरान वही कर्म दोहराए लेकिन इस बार कोई चमत्कार नहीं हुआ और टूटा हुआ तुलसी का गमला स्वादिष्ट भोजन में नहीं बदला, तुलसी की माला सोने के आभूषण में नहीं बदली और जनेऊ भी वैसे का वैसा बना रहा। भाभी के इन कर्मों ने उसे समाज में उपहास का विषय बना दिया और सभी ने उसकी आलोचना की।
ज्वार का सोने और चांदी में बदलना/ When Jowar transformed into gold and silver
ननद-भाभी की कथा आगे कुछ इस प्रकार है। विवाह के दौरान यह सब होने के बाद भी, भाभी ने अपनी ननद को एक दिन के लिए भी कभी भी घर पर आने के लिए आमंत्रित नहीं किया। एक दिन भाई ने सोचा कि उसे जाकर अपनी बहन से मिलना चाहिए। उसने अपनी पत्नी को अपने विचारों से अवगत कराकर, अपनी बहन के लिए कुछ उपहार लाने को कहा। इसके लिए, भाभी ने अपनी ननद को भेंट में देने के लिए एक मुट्ठी ज्वार थैले में रख कर पति को पकड़ा दिया था। अपनी पत्नी का यह व्यवहार देखकर भाई को बहुत बुरा लगा। उसे अपनी बहन को उपहार स्वरूप ज्वार देना बहुत अजीब और अनुचित लगा और उसने रास्ते में एक गौशाला में गायों के सामने थैला खाली कर दिया। लेकिन ईश्वर की कृपा से, सभी ज्वार के दाने सोने और चांदी में बदल गए। यह देखकर गायों के मालिक ने आश्चर्य के साथ भाई से पूछा- कि वह गायों को सोना और चांदी क्यों खिला रहा है? भाई भी यह चमत्कार देखकर अचंभित हो गया और उसने संपूर्ण वृतांत चरवाहे को बताया। तब चरवाहे ने कहा- यह सब भगवती तुलसी के आशीर्वाद के कारण हुआ है। तब भाई आनंदपूर्वक चलकर अपनी बहन के यहां पहुंचा। इतने कीमती उपहार देखकर बहन और उसका परिवार अत्यधिक प्रसन्न हुए।
तुलसी-शालिग्राम विवाह की किवदंती/ The legend of Tulsi-Shaligram marriage
शालिग्राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पौराणिक किवदंती के अनुसार, भगवान गणेश और कार्तिकेय के अलावा भगवान शिव का जालंधर नाम का एक और पुत्र था। लेकिन जालंधर में आसुरी गुण थे। वह सभी देवताओं और असुरों में स्वयं को सबसे शक्तिशाली, पराक्रमी और अजेय योद्धा मानता था। वह देवताओं को परेशान करने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया करता था। जालंधर का विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से हुआ था। लेकिन जालंधर द्वारा देवताओं का राज्य छीनने के लिए लगातार कोशिश करने से और उनको परेशान करने के कारण भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव ने उसका वध करने की योजना बनाई, लेकिन वृंदा के सदाचार और भक्ति के कारण कोई भी जालंधर को नहीं मार सका। इस समस्या का समाधान पाने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगने का निर्णय किया। तब भगवान विष्णु ने वृंदा के प्रण को भंग करने के लिए योजनानुसार जालंधर का वेश बनाया और वृंदा के साथ छल करके उसकी प्रतिज्ञा को तोड़ दिया। इस तरीके से ब्रह्मदेव, भगवान विष्णु और शिव जी जालंधर का वध करने में सफल हुए।
जिन भगवान विष्णु की वह परम भक्त थी, उनके विश्वासघात को जानकर वृंदा को अत्यधिक दुख हुआ। अपनी वेदना में वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। सभी देवताओं द्वारा वृंदा से अपना श्राप वापस लेने की विनती करने पर उसने उनकी बात मान ली। अपने विश्वासघात का पश्चाताप करने के लिए, भगवान विष्णु द्वारा स्वयं ही प्रस्तर रूप में अवतरित होने पर वह शालिग्राम रूप में माने जाने लगे।
तुलसी विवाह की पूजन-विधि/ Puja Vidhi of Tulsi Vivah
परंपरा के अनुसार, तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल की एकादशी के दिन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन से शुरू होने वाली अपनी चार महीने की योग निद्रा के बाद जागृत हुए थे और इस समय के अंतराल के बाद से ही हिंदू धर्म में यह एकादशी विवाह जैसे शुभ कार्य फिर से शुरू करने का प्रतीक है।
मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु का शालिग्राम रूप में तुलसी के साथ विवाह संस्कार करने वाले व्यक्तियों को कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है।
संध्या काल में, विवाह से पहले गेरू के चूर्ण से आठ पत्तियों वाले कमल पुष्प की सुंदर सी रंगोली बनाई जाती है तथा गन्नों का प्रयोग करके मंडप बनाया जाता है।
मंडप के अंदर दो चौकियां रखी जाती हैं। अब, एक चौकी पर तुलसी जी और दूसरी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम को स्थापित किया जाता है। तुलसी-पत्र को शालिग्राम जी के दाईं ओर स्थापित किया जाता है।
शालिग्राम जी की चौकी पर आठ पत्तियों वाला कमल बनाकर कलश स्थापित किया जाता है तथा कलश पर स्वास्तिक बनाया जाता है।
आम के पत्तों पर रोली का तिलक लगाकर कलश के किनारों पर सजाया जाता है।
अब एक नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर कलश के ऊपर स्थापित किया जाता है।
तुलसी-पत्र के सामने घी का दीपक जलाकर वैवाहिक समारोह शुरू करते हैं।
अब फूल को गंगाजल में डुबाकर "ॐ तुलसाय नमः" का मंत्रोच्चार करते हुए तुलसी-पत्र और शालिग्राम पर गंगाजल छिड़ककर तुलसी जी को रोली और शालिग्राम जी को चंदन का तिलक किया जाता है।
देवी तुलसी को लाल चुनरी या साड़ी पहना कर चूड़ी, मेहंदी आदि सुहाग का सामान अर्पित किया जाता है।
शालिग्राम जी का पंचामृत से अभिषेक करके पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
कलश पर फूल चढ़ाकर, तुलसी और शालिग्राम जी को फूलों की माला पहनाई जाती है।
तब एक कपड़े में सुपारी, फूल, कुछ इलायची और दक्षिणा(पैसे) रखते हैं।
परिवार का एक पुरुष सदस्य हाथों में शालिग्राम जी को उठाकर तुलसी जी के चारों ओर सात फेरे कराता है।
सातों फेरों के पूरा होने के बाद, भगवती तुलसी जी को शालिग्राम जी के बाईं ओर बैठाया जाता है।
शालिग्राम जी को तिल अर्पित कर कपूर से आरती की जाती है।
सभी रीति-रिवाजों के पूर्ण हो जाने के बाद, देवी तुलसी और शालिग्राम जी को मिठाइयों और खीर-पूड़ी का भोग चढ़ाया जाता है।
पूजन के बाद, पूजा के दौरान प्रयोग की गई सारी पूजन-सामग्री को तुलसी पत्र के साथ मंदिर में दान कर दिया जाता है।
संभव होने पर, घरों में तुलसी के साथ आंवले का पौधा लगाकर उसके साथ पंचोपचार पूजा करनी चाहिए।
सूर्यास्त के बाद किसी को भी तुलसी के पत्ते कभी नहीं तोड़ना चाहिए। हमारे शास्त्रों में अमावस्या के दिन, चतुर्दशी तिथि, रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि जैसे कुछ निश्चित दिनों और तिथियों पर तुलसी तोड़ना मना किया गया है। साथ ही, बिना किसी कारण के तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए। इन निषिद्ध दिनों के दौरान, तुलसी-पत्र की आवश्यकता होने पर गमले के चारों ओर गिरे पत्तों को एकत्रित कर सकते हैं या एक दिन पहले पत्तियों को तोड़ सकते हैं। तुलसी के एक पवित्र पौधा होने के कारण, इसके पत्तों को अनावश्यक नहीं तोड़ना चाहिए। पूजा के दौरान प्रयोग किये गए पत्तों को साफ पानी से धोकर दोबारा प्रयोग किया जा सकता है।
तुलसी विवाह करने से पुण्य फल की प्राप्ति/ Performing Tulsi Vivah confers a person with Punya Phal
ऐसा माना जाता है कि भक्तिपूर्वक तुलसी विवाह करने से आपके विवाह में आने वाली सभी समस्याओं का अंत हो जाता है। जिन व्यक्तियों के विवाह में कठिनाई हो रही हो, तो उन्हें भी भगवती तुलसी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तुलसी विवाह करना चाहिए। तुलसी विवाह करने से भी कन्यादान के समान ही उन्हें प्राप्त होता है।
मंगलाष्टक मंत्र सहित तुलसी विवाह/ Perform Tulsi Vivah with Mangalashtak Mantra
तुलसी विवाह हिंदू वैवाहिक संस्कारों के अनुसार आयोजित किया जाता है। विवाह संस्कार के दौरान किए जाने वाले मंगलाष्टक मंत्रोच्चार की ही तरह, भगवती तुलसी और शालिग्राम विवाह के दौरान भी यह मंत्रोच्चार करने चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इन मंत्रों की शक्ति संपूर्ण वातावरण को शुद्ध करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है।
तुलसी विवाह आयोजन के लाभ/ The benefits of conducting the Tulsi Vivah
तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के दिन किया जाता है। माता पिता के रूप में भगवती तुलसी का विवाह शालिग्राम से करने पर कन्यादान के समान फल मिलता है। बिना कन्या वाली दंपतियों को सभी रीति-रिवाजों के अनुसार तुलसी विवाह कराने से कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है। वैवाहिक जीवन में समस्याओं का सामना करने वाले दंपतियों को सुखी वैवाहिक जीवन के लिए तुलसी विवाह करना चाहिए। श्रद्धापूर्वक तुलसी विवाह का आयोजन करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है और बच्चों को सफलता प्राप्त होती है।
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