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देवी शैलपुत्री 2023
देवी शैलपुत्री in 2023
22
March, 2023
(Wednesday)

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हिन्दू धर्म में नवरात्रि का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। नवरात्रि शक्ति की उपासना का प्रतीक है। समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त जो ऊर्जा है वही शक्ति है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। उनके आने की खुशी में ही नौ रातों और दस दिनों का दुर्गा उत्सव देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान देवी के नौ रूपों की पूजा पूरे भक्ति भाव से की जाती है। माता के इन 9 रूपों को 'नवदुर्गा' के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के 9 दिनों में मां दुर्गा के जिन 9 रूपों का पूजन किया जाता है, उनमें पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री है।
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प्रथम नवरात्रि पर देवी शैलपुत्री की पूजा का महत्त्व
इन नौ दिनों में देवी मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं और हिमालय पर्वतों का राजा है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने कारण देवी शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। देवी का यह स्वरूप इच्छाशक्ति और आत्मबल को दर्शाता है। उनके इस स्वरुप को पार्वती, हेमवती और सती के नाम से भी जाना जाता है।
क्या आप जानते हैं कि देवी शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में कौन थीं?
माँ शैलपुत्री ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्री पूजन के पहले दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में राजा दक्ष की बेटी और भगवान शिव की पत्नी सती थीं। सती अपने पिता द्वारा किये गए अपने पति भगवान शिव-शंकर के अपमान को सहन ना कर सकीं, इसलिए उन्होंने यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया। अपने अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। 'शैलपुत्री' देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
देवी शैलपुत्री की सवारी क्या है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी शैलपुत्री की सवारी बैल है जो धर्म या धार्मिकता की शक्ति को दर्शाता हैं। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है जो धर्म का प्रतीक है। उनके बाएं हाथ में कमल-पुष्प है जो हमें सिखाता है की किस तरह हम इस बुराइयों से भरे जग में रहकर भी कमल की तरह खिल सकते हैं। शास्त्रों में मां शैलपुत्री के रूप का सुंदर वर्णन किया गया है। माता शैलपुत्री को संपूर्ण हिमालय पर विराजमान दर्शाया गया हैं। उन्हें मूलाधार चक्र की देवी के रूप में भी जाना जाता है, जो मानव अस्तित्व की जड़ या नींव का प्रतिनिधित्व करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार देवी शैलपुत्री का रूप राजसी है। उनका शांत चेहरा और शांत व्यवहार मन मोह लेने वाला है। उनके हाथ में कमल का फूल पवित्रता और वैराग्य को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर उनके हाथ का त्रिशूल पूरे ब्रह्माण्ड में अस्तित्व के तीन पहलुओं- निर्माण, संरक्षण और विनाश को दर्शाता है।
लोगो की ऐसे मान्यता है की देवी शैलपुत्री का वास काशी नगरी वाराणसी में है। यहां शैलपुत्री का एक बेहद प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मां शैलपुत्री के सिर्फ दर्शन करने से ही भक्तजनों की मुरादें पूरी हो जाती हैं। लोग अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और सौभाग्य लाने के लिए पूरे भक्ति भाव से मां की पूजा अर्चना करते हैं। देवी भी फलस्वरूप अपने भक्तों के जीवन में स्थिरता, संतुलन और शक्ति लाती हैं।
नवरात्रि उत्सव के दौरान, भक्त धार्मिक अनुष्ठान करते हैं और अपने-अपने रीति रिवाज़ो के अनुसार देवी की पूजा अर्चना करते हैं। यह त्योहार पूरी भक्ति और जोश के साथ नौ दिनों तक मनाया जाता है, और प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित होता है। हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले लोग इस उत्सव को बहुत ही हर्षोलास और धूम-धाम के साथ मनाते हैं।
देवी शैलपुत्री के राजसी रूप का वर्णन
देवी शैलपुत्री नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। इसलिए इनकी पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। इन्हें पार्वती या हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। "शैल" शब्द का अर्थ है पर्वत और "पुत्री" का अर्थ है बेटी। अतः शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं।
शास्त्रों में भी देवी शैलपुत्री के रूप का मनमोहक वर्णन किया गया है। उनके रूप को राजसी और विस्मयकारी दर्शाया गया है। उन्हें एक सुंदर और सशक्त महिला के रूप में चित्रित किया गया है जो चेहरे से शांत है लेकिन अत्यंत शक्तिशाली हैं। वो चार भुजाओं वाली हैं और हर भुजा में एक अलग अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके ऊपर वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है, जो उनके अदम्य साहस और शक्ति का प्रदर्शन करता है। त्रिशूल उनकी आध्यात्मिक जागृति का भी प्रतीक है। उनके ऊपरी बाएं हाथ में कमल का फूल है, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। अपने निचले दाहिने हाथ में, देवी ने एक छोटा डमरू पकड़ा हुआ है जो जीवन और मृत्यु के लयबद्ध चक्र का प्रतीक है। अपने निचले बाएँ हाथ में उन्होंने एक माला धारण की हुई है जो एकाग्रता और ध्यान का प्रतिनिधित्व करती है। उनके हाथ चूड़ियों और कंगन से सजे हैं जो जीवन में श्रृंगार के महत्त्व को दर्शाते हैं। लाल साड़ी में देवी का रूप अतुलनीय है जो शक्ति और जुनून का प्रतीक है।
देवी शैलपुत्री के माथे पर तीसरा नेत्र है, जो उनकी दिव्य शक्तियों और अंतर्दृष्टि का प्रतीक है। उनकी फूलों से सजी हुई केशसज्जा मनमोहक है। देवी ने अपने सर पर मुकुट धारण किया हुआ है जो उनके शाही अंदाज़ को दर्शाता है।
यह कहना गलत नहीं होगा की देवी का स्वरुप अनुपम और मन मोह लेने वाला है। उनके रूप में शक्ति, सुंदरता और दिव्यता का अनूठा मेल है। शैलपुत्री एक शक्तिशाली देवी हैं जिनकी लाखों लोग पूजा करते हैं, और उनका स्वरूप उनके उपासकों में भक्ति और श्रद्धा को प्रेरित करता है।
माँ शैलपुत्री की पूजा करने से मिलने वाले ज्योतिषीय लाभ?
मां शैलपुत्री, मां दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम हैं। देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से कई ज्योतिषीय लाभ भी प्राप्त होते हैं जो इस प्रकार हैं:
चंद्र ग्रह के हानिकारक प्रभावों को कम करता है: वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यदि आप देवी के शैलपुत्री रूप की पूजा करते हैं तो आपका चंद्र ग्रह मजबूत होता है। फलस्वरूप आप अपने मन और भावनाओं को बेहतर ढंग से नियंत्रित कर पाते हो। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा कमजोर या पीड़ित है, तो यह आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ख़राब कर सकता है। यह आपको भावनात्मक रूप से भी बहुत कमजोर बना सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप देवी के शैलपुत्री स्वरुप की पूजा करते हैं तो आपके जीवन पर चंद्रमा ग्रह के बुरे प्रभाव नहीं पड़ते या शांत हो जाते हैं। देवी के आशीर्वाद से आपके मन में स्थिरता और शांति आती है।
इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास बढ़ाती है मां शैलपुत्री : माँ शैलपुत्री शक्ति और साहस की प्रतिमूर्ति हैं। वह अपने भक्तों को जीवन में कभी भी हार न मानने के लिए प्रेरित करती हैं। वह अपने भक्तो को इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास का आशीर्वाद देती हैं जिससे की वह किसी भी चुनौती का डटकर सामना कर सकें। यदि आपको अपने जीवन में उचित आत्मसम्मान नहीं मिलता या फिर आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी है, तो आपको माता के शैलपुत्री स्वरुप की पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए।
बेहतर करियर की संभावनाओं में सुधार: मां शैलपुत्री का स्वरुप राजसी है। उन्हें धन और समृद्धि की देवी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है की देवी के शैलपुत्री स्वरुप की पूजा करने से आप अपने करियर में अपार सफलता पा सकते हो और आपकी वित्तीय स्तिथि भी मजबूत होती है। अगर आप नौकरी की समस्या से जूझ रहे हो या फिर आपके पास मनचाही नौकरी नहीं है तो देवी के आशीर्वाद से आपको मनचाही नौकरी मिल सकती है।
प्रजनन क्षमता और प्रसव को बढ़ाता है: नवरात्री के पहले दिन पूजे जाने वाली मां शैलपुत्री का संबंध स्त्री की प्रजनन क्षमता और मातृत्व से भी जुड़ा हुआ है। ऐसी स्त्रियां जो गर्भ धारण करना चाहती है या जो गर्भावस्था की अवधि से गुजर रही हैं उन्हें देवी शैलपुत्री की पूजा अवश्य करनी चाहिए। मां अपने भक्तों की सच्ची भक्ति से अवश्य ही प्रसन्न होती हैं। उनका आशीर्वाद गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव और बच्चे के संपूर्ण विकास को सुनिश्चित करता है।
जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है: ऐसी मान्यता है की मां शैलपुत्री के आशीर्वाद से नकारात्मक ऊर्जा आपके मन और आस-पास के वातावरण से भी दूर हो जाती हैं। देवी का आशीर्वाद आपको बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। उनकी पूजा करने से आपके अंदर सकारात्मक पूजा का प्रवाह होता हैं जो आपको जीवन में किसी भी प्रकार की चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।
माँ शैलपुत्री की कथा
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। मां शैलपुत्री को हिमालयराज पर्वत की बेटी कहा जाता है। इसके पीछे एक अत्यंत रोचक पौराणिक कथा है, एक बार सती के पिताजी प्रजापति दक्ष ने यज्ञ के दौरान सभी देवताओं को आमंत्रित किया। लेकिन उन्होंने जान बूझकर भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा। लेकिन सती अपने परिवार के मोह में बिना निमंत्रण भी यज्ञ में जाने को तैयार थी। ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें बहुत समझाने कि कोशिश की। शिव जी ने उन्हें समझाया की बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना ठीक नहीं होता। लेकिन सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी।
सती अपने पिता के यहां बिना निमंत्रण मिले ही पहुंच गई और उन्हें वहां बिना बुलाए मेहमान वाला व्यवहार ही झेलना पड़ा। उनकी माता के अलावा सती से किसी ने भी सही से बात नहीं की। सबने उनका तिरस्कार किया। उनकी अपनी बहनों ने भी यज्ञ में उनका खूब मज़ाक उड़ाया। इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान वे बर्दाश नहीं कर सकीं और क्रोधित हो गईं। अपने इसी क्रोध, अपमान और ग्लानि में आकर उन्होंने खुद को यज्ञ में भस्म कर दिया। जैसे ही यह समाचार भगवान शिव को मिला उन्होंने अपने गणों को दक्ष के यहाँ भेजा और उनके यहां चल रहा यज्ञ विध्वंस करा दिया। अपने अगले जन्म में, सती ने हिमालय के राजा शैल की बेटी के रूप में पुनर्जन्म लिया और उन्हें शैलपुत्री नाम मिला। उन्हें हेमवती के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उनके पिता को हिमवत भी कहा जाता था। उनका वाहन एक वृक्ष है, इसलिए उन्हें कभी-कभी वृक्षारूढ़ा भी कहा जाता है। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
मां शैलपुत्री की कथा की महत्वता
नवरात्री के पहले दिन माँ शैलपुत्री की कथा पढ़ना अत्यंत ही शुभ माना गया है। शैलपुत्री हिमालयराज की पुत्री हैं और शैल का मतलब होता है पत्थर या पहाड़। नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की ही पूजा इसलिए की जाती है, ताकि आपके जीवन में भी माँ के नाम की तरह विशालता और स्थिरता बनी रहे और आप अपने जीवन में आने वाली हर मुसीबत के सामने पहाड़ की तरह डट कर खड़े रहो। आप अपने जीवन में अडिग रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सको। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है। वेद-पुराणों में कलश को भगवान श्री गणेश जी का स्वरुप माना गया है इसलिए नवरात्रि में सबसे पहले कलश पूजा की जाती है।
नवरात्रि के पहले दिन का चमत्कारिक मंत्र
नवरात्रि के पहले दिन भक्त अपनी पूर्ण श्रद्धा के साथ देवी शैलपुत्री की पूजा अर्चना करते हैं और उनका आशीर्वाद लेने के लिए विभिन्न अनुष्ठान भी करते हैं। माँ शैलपुत्री को इस संसार में पवित्रता, शक्ति और प्रकृति का प्रतीक माना गया हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवी शैलपुत्री का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस सिद्ध मंत्र का जाप किया जाना चाहिए।
"वन्दे वंचित लाभाय चंद्रार्धकृत शेखराम| वृषारुधम शूलधरम शैलपुत्रीम यशस्विनीम"
इसका अर्थ है : मैं पर्वत की पुत्री शैलपुत्री की वंदना करता हूं, जो बैल पर सवार हैं और हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं। वह अपने माथे पर अर्धचंद्र धारण करती हैं और अपनी शरण में आने वाले हर भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। अगर आप इस मंत्र का जाप पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ करेंगे तो आपके जीवन में अवश्य ही सुख, शांति, समृद्धि और सफलता का आगमन होगा। माँ आपके जीवन को सौभाग्य से भर देंगी।
नवरात्रि के पहले दिन कैसे कपड़े पहन कर करें मां दुर्गा को प्रसन्न?
नवरात्रि का नौ दिवसीय उत्सव हमारे जीवन में सौभाग्य लेकर आता है। इसका पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है। इस उत्सव को मनाने के लिए अधिकतर लोग रंग-बिरंगी पारंपरिक पोशाकों का चयन करते हैं। मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए, कुछ ऐसे रंगों के कपड़े पहनें:
ब्राइट और वाइब्रेंट कलर्स: नवरात्रि खुशियों का त्यौहार है। यह प्रकृति में सकारात्मक परिवर्तन का समय है। इस समय हर तरफ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो रहा होता है इसलिए इस समय आपको खिलते हुए रंगो के कपड़े पहनने चाहिए जो आपको मौज मस्ती करने के लिए प्रेरित करें। इस मौके पर लाल, पीला, हरा और नारंगी रंग पहनना बहुत ही शुभ माना जाता है।
जातीय पोशाक: नवरात्रि एक पारंपरिक त्योहार है, और लोग इसको मिल जुलकर मनाना पसंद करते हैं। आजकल तो नवरात्रि पर बड़े- बड़े सांस्कृतिक कार्यकर्मों का आयोजन किया जाता है। अपनी सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए जातीय परिधान पहनना सबसे अच्छा होता है। महिलाएं इस उत्सव को मनाने के लिए लहंगा, चनिया चोली और साड़ी पहन सकती हैं, जबकि पुरुष कुर्ता पायजामा या धोती कुर्ता पहन सकते हैं।
आभूषण: इस दिन महिलाएं पारंपरिक पोशाक के साथ -साथ पारंपरिक गहने पहनकर भी अपने रूप में चार चाँद लगा सकती हैं। रंग-बिरंगी चूड़ियां, झुमके, हार और मांग टीका महिलाओं के रूप को और आकर्षक बना सकते हैं। जबकि पुरुष पगड़ी या साफा पहन कर और आकर्षित लग सकते हैं।
आरामदायक जूते पहनना : आपको यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिए की आपके अच्छे परिधानों के साथ-साथ आपके जूते भी बहुत आरामदायक होने चाहिए। आजकल नवरात्रि के दिनों में जगह-जगह गरबा डांस का आयोजन किया जाता है। बड़े-बड़े मेले आयोजित किए जाते हैं इसलिए आपको आरामदायक जूते ही पहनने चाहिए जिससे आप गरबा और मेलों का भरपूर आनंद ले सकें। महिलाएं आरामदायक फ्लैट या पारंपरिक मोजरी चुन सकती हैं, जबकि पुरुष सैंडल या जूती पहन सकते हैं।
व्यक्तिगत शैली: इस शुभ अवसर पर पारंपरिक परिधानों को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन आपको अपनी व्यक्तिगत शैली और आराम के स्तर को भी नहीं भूलना चाहिए। सबसे ज्यादा जरूरी है की आप जो भी पहनें पूरे आत्मविश्वास के साथ पहनें तभी आप आकर्षक लग सकते हो। अपने प्रियजनों के साथ इस उत्सव का पूरा आनंद लें।
देवी शैलपुत्री की मंगलकारी आरती
नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा होती है। वह पहाड़ों की बेटी है और शक्ति, पवित्रता और प्रकृति का प्रतीक है। भक्त मां का आशीर्वाद पाने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ उनकी पूजा करते हैं। पूजा के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक आरती है। आरती एक भक्ति गीत होता है जिसे देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गाया जाता है। देवी शैलपुत्री जी की आरती इस प्रकार है:
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
देवी शैलपुत्री की मंगलकारी आरती का अर्थ
हे देवी शैलपुत्री, आप महान हैं। सभी देवी देवता आपकी जय जयकार करते हैं। आप पूरे ब्रह्मांड में पवित्रता और शक्ति का प्रतीक हैं। हम सभी भक्तगण आपका आशीर्वाद पाने की मनोकामना के साथ आपके सामने यह आरती गा रहे हैं।
हे मां शैलपुत्री, आपसे विनती है की आप अपने सभी भक्तों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद दो। कृपया सभी बुराइयों से हमारी रक्षा करें और हमें अपने प्रति अटूट भक्ति का आशीर्वाद दो।
हे देवी दुर्गा, आप पर हमारी श्रद्धा अटूट है। हम पूरे हृदय से आपका नमन करते हैं। आपका आशीर्वाद पाने के लिए हम बार-बार आपसे प्रार्थना करते हैं। हम जानते है की आप पूरे ब्रह्मांड में शक्ति की अवतार हैं और आपके आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सफल हो सकता है। कृपया हमारे ऊपर हमेशा अपनी दिव्य कृपा का आशीर्वाद बनाए रखें और हमे जीवन की सभी कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति दें। आप इस ब्रह्मांड में भक्तों के विश्वास की नींव हैं।
देवी शैलपुत्री की आरती भक्त लोग पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ गाते हैं। लोगो का ऐसा विश्वास है कि इस आरती का जाप करने से उनके जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होगा।
हिन्दू धर्म में प्रसादम/भोग का महत्त्व
हिंदू धर्म में, प्रसाद की महिमा बहुत अधिक मानी जाती है। प्रसादम एक पवित्र खाद्य पदार्थ है जिसे पूजा के दौरान देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। दरअसल, भगवान को भोग लगाने के बाद साधारण भोजन अमृत प्रसाद में परिवर्तित हो जाता है।
देवी शैलपुत्री का प्रिय प्रसादम/भोग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक देवता का एक विशिष्ट पसंदीदा प्रसादम या भोग होता है, जो उन्हें पूजा के दौरान चढ़ाया जाता है। देवी शैलपुत्री का पसंदीदा प्रसाद साबूदाना खीर या टैपिओका हलवा माना जाता है।
साबूदाना खीर बहुत ही स्वादिष्ट होती है और यह टैपिओका मोती, दूध, चीनी और इलायची और केसर से मिलाकर बनाई जाती है। यह पूरी तरह शुद्ध होती है इसलिए अक्सर त्योहारों के दौरान बनाई जाती है। देवी शैलपुत्री के भक्त इस प्रसादम को नवरात्रि के पहले दिन बनाते हैं और फिर देवी का भोग लगा कर भक्तों में वितरित करते हैं।
भक्तों का ऐसा विश्वास है की देवी शैलपुत्री साबूदाने की खीर चढ़ाने से प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है की प्रसादम को हमेशा भक्ति भाव और पूरी शुद्धता के साथ तैयार किया जाना चाहिए तभी आपके जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आ सकती है।
प्रसादम के रूप में आप साबूदाने की खीर के अलावा, देवी शैलपुत्री को फल, नारियल और फूल भी चढ़ा सकते हैं। प्रसादम एक माध्यम है जिसके द्वारा आप अपने प्रेम, भक्ति भाव और कृतज्ञता को देवी या देवता के सामने दर्शाते हैं।
आइए जानते है कि क्या कहते हैं आपके सितारे नवरात्रि के पहले दिन के शुभ अवसर पर
मेष राशि - मेष राशि वालों को यह जानकार खुशी होगी की नवरात्रि का पहला दिन उनके जीवन में नई शुरुआत और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आने वाला है। अपने लक्ष्य निर्धारित कीजिए और उन्हें पूरा करने के लिए काम करना शुरू कर दीजिए। यकीन मानिए, यह समय आपके लिए बहुत अच्छा है। अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय ध्यान के लिए भी जरूर निकालेें और अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्यों को निर्धारित करने और उन्हें हासिल करने में लगाएं।
वृष राशि - वृषभ राशि वालों के लिए नवरात्रि का पहला दिन थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता हैं। आप अपने जीवन को थोड़ा बिखरा हुआ महसूस करेंगे और कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने में आपको परेशानी होगी। लेकिन आपको अपने लक्ष्यों को प्राथमिकता देने के लिए कुछ समय निकालना होगा। आपको स्मार्ट योजना बना कर कार्य करना होगा। आपके लिए अच्छा होगा की आप ज़मीन से जुड़े रहकर अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करें।
मिथुन राशि - नवरात्रि का यह पावन पर्व, मिथुन राशि वालों के जीवन में रचनात्मकता और प्रेरणा लेकर आ रहे हैं। यह समय आपके लिए अनुकूल है। आप अपनी ऊर्जा का प्रयोग नई-नई चीज़ों को जानने समझने और अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए करें। इस अवधि के दौरान आपका झुकाव अध्यात्म की ओर भी हो सकता है।
कर्क राशि - कर्क राशि वालों के लिए नवरात्रि का पहला दिन आत्मचिंतन का हो सकता है। आपके लिए जरूरी है कि आप अपने व्यस्त जीवन से अपने लिए कुछ समय निकालें और अपनी आंतरिक दुनिया पर ध्यान दें। आप अपनी भावनाओं से भी जुड़ने का प्रयास करें। आपके सितारे आपके साथ हैं इसलिए इस समय का उपयोग आप अपनी नकारात्मक या बुरी आदतों को छोड़ने के लिए भी कर सकते हो।
सिंह राशि - नवरात्रि का पहला दिन सिंह राशि वालों के लिए ऊर्जा और उत्साह से भरपूर रहेगा। इस सकारात्मक ऊर्जा का भरपूर फ़ायदा आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति और अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए करें। आप पर माता रानी का आशीर्वाद है इसलिए नई चीजों को आजमाने से न डरें और अपने जीवन में पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें।
कन्या राशि - नवरात्रि का पहला दिन आपको भावनात्मक रूप से कुछ कमज़ोर बना सकता है इसलिए कोई भी मत्वपूर्ण निर्णय सोच विचार कर ही लें। अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थय पर पूरा ध्यान दें। इन दिनों वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो रहा होता है। इसलिए इस शुभ समय का उपयोग अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए करें। याद रखें कि खुश रहना ही अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है।
तुला राशि - देवी के आशीर्वाद से नवरात्रि का पहला दिन तुला राशि वालों के लिए आत्मविश्वास और सकारात्मकता से भरा हुआ होगा। हमारा सुझाव है की आप इस ऊर्जा का उपयोग अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करें। अगर आपको अपने सपने पूरे करने के लिए कुछ साहसिक कदम उठाने पड़ें, तो घबराएं नहीं। इस दिन आपका झुकाव कुछ रचनात्मक और कलात्मक गतिविधियों की तरफ भी हो सकता है।
वृश्चिक राशि - नवरात्रि के पहले दिन वृश्चिक राशि वाले अपने अंदर गज़ब की ऊर्जा महसूस कर सकते हैं। लेकिन बेहतर होगा की आप इस ऊर्जा का प्रयोग अपनी बुराइओं को ख़त्म करने और अपने झूठे विश्वासों को तोड़ने के लिए करें। हमारा सुझाव है की आप इस शुभ समय का उपयोग आप अपनी आंतरिक शक्ति को मजबूत करने के लिए करें।
धनु राशि - नवरात्रि का पहला दिन धनु राशि वालों के लिए रोमांचकारी साबित होने वाला है। इस दिन आप ऊर्जा से परिपूर्ण होंगे और अपने जीवन में नई-नई चीज़े करना चाहोगे। अपनी इस सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग अपने जीवन में नई ऊंचाइयों को छूने के लिए करें। हो सकता है कि इस दिन आपका कहीं यात्रा करने का मन करें या आप जीवन में कुछ नया करना चाहो।
मकर राशि - नवरात्रि का पहला दिन आपको सिखाता है की कभी-कभी जीवन में आत्मनिरीक्षण करना भी जरूरी होता है और आज आपके लिए आत्मनिरीक्षण का सही समय है। अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय अपने लिए भी निकालें। यह समय आपके लिए अपनी भावनाओं से जुड़े रहने का भी है। अपनी ऊर्जा का उपयोग अपनी बुरी आदतों को छोड़ने के लिए करें। आपका दिन अवशय ही मंगलकारी होगा।
कुंभ राशि- माता के आशीर्वाद से नवरात्रि का पहला दिन कुंभ राशि वालों के लिए ऊर्जा से भरपूर होगा। आपके लिए बेहतर होगा की आप अपनी ऊर्जा का उपयोग अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करें। नवरात्रि का पहला दिन आपके लिए सौभाग्य लेकर आ रहा है, इसलिए जोख़िम उठाने से ना डरें और पूर्ण विश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ें।
मीन राशि - नवरात्रि के पहले दिन मीन राशि वालों को अपना पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता है। आज आप भावनात्मक रूप से कुछ कमजोर महसूस कर सकते हो। इस बात का ध्यान रखें की खुशहाल जीवन के लिए अच्छा स्वास्थ्य परम आवश्यक हैं। इसलिए काम के साथ-साथ अपना पूरा ध्यान रखें। इस समय हर तरफ खुशहाली का माहौल होता है। इसलिए इस समय का सदुपयोग करें और प्रियजनों के साथ जुड़ने और अपने रिश्तों को सुधारने का प्रयास करें। देवी के आशीर्वाद से आपका दिन अवश्य ही मंगलकारी होगा।
आइये जानते है की नवरात्रि के शुभ अवसर पर आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
ऐसी बातें जो जीवन में सौभाग्य ला सकती हैं
अपने लक्ष्य तय करें: नवरात्रि के दिन बहुत ही शुभ होते हैं। इसलिए इन दिनों का सदुपयोग करने के लिए जरूरी है की आप पहले ही अपने लक्ष्य निर्धारित कर लें। आपको यह अच्छे से पता होना चाहिए की आपको जीवन में क्या चाहिए। इस शुभ समय आप अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्यों को पाने के लिए लगाएं।
साफ़-सफाई का ध्यान रखें: लोगो का ऐसा विश्वास है की इन दिनों कुछ नकारात्मक शक्तियां भी सक्रिय हो जाती हैं। इसलिए आपके लिए जरूरी है की आप अपने घर और कार्यस्थल पर साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखें। देवी को प्रसन्न करने के लिए आप धूप-अगरबत्ती जलाकर रखें या हवा को शुद्ध करने के लिए आवश्यक तेलों का उपयोग करें।
प्रार्थना करें: इन दिनों पूरे भक्ति भाव से देवी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पूरी श्रद्धा के साथ देवी को प्रसाद चढ़ाएं और अपने सुखी और समृद्ध जीवन के लिए उनसे प्रार्थना करें। एक दीपक या मोमबत्ती जलाएं और देवी को फल, फूल और मिठाई चढ़ाएं। याद रखें की प्रार्थना में बहुत शक्ति होती हैं।
पारंपरिक कपड़े पहनें: नवरात्रि उत्सव को धूम-धाम से मनाने के लिए पारंपरिक पोशाक पहनें। आप इन दिनों लाल, पीले और नारंगी रंगों का चुनाव कर सकते हो क्योंकि ऐसे रंग हमारे अंदर जोश पैदा करते हैं।
उपवास या हल्का भोजन करें: ऐसी मान्यता है कि उपवास करने से हमारे तन और मन की शुद्धि होती है। बहुत से लोग पूरे नवरात्रि व्रत रखते हैं। कुछ लोग सिर्फ पहला और आखिरी नवरात्रि व्रत रखते हैं। इन दिनों को उपवास के लिए शुभ दिन माना जाता है। यदि आप उपवास नहीं कर रहे हैं, तो आप हल्का या सीमित आहार लीजिए। इन दिनों मांसाहारी भोजन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
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नकारात्मक विचारों और कार्यों से बचें: नवरात्रि के दिन शुभ होते हैं और आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते हैं इसलिए इन दिनों का पूरा फ़ायदा उठाने के लिए नकारात्मक विचारों या कार्यों में शामिल होने से बचें, अन्यथा आप खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते हो।
गपशप में शामिल न हों: नवरात्रि आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक विकास का समय है। फ़ालतू की गपशप या दूसरों के बारे में बुरा बोलने से बचें। अपने आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करें।
शराब और मांसाहारी भोजन से बचें: यदि आप इन दिनों देवी का आशीर्वाद पाना चाहते हो तो आपको इस अवधि में गलती से भी मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
आलस्य न करें: नवरात्रि के दिनों में वातावरण में नई ऊर्जा का प्रवाह हो रहा होता है। इसलिए आप भी इन दिनों आलस में ना रहे। आपसे अनुरोध है की पहले दिन की ऊर्जा का उपयोग अपने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करें। किसी भी कार्य के प्रत्ति आलस्य या टालमटोल करने से बचें।
अपनी आध्यात्मिक साधनाओं को न छोड़ें: यदि आप कोई ध्यान, योग या प्रार्थना करते हैं तो नवरात्रि के दौरान भी आप अपनी आध्यात्मिक साधनाओं को जारी रखें। इस त्योहार के शुभ दिन और सकारात्मक ऊर्जा आपको अपने लक्ष्यों के प्रति और ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी।
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