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मकर संक्रान्ति 2023
मकर संक्रांति in 2023
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मकर संक्रांति 2023/Makar Sankranti 2023, हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख, लोकप्रिय और शुभ त्योहार है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, इस अनोखे पर्व को प्रमाणिक रूप से मनाया जाता है। इसके साथ ही, यह पर्व विविधताओं, प्रामाणिकताओं, शाश्वत मान्यताओं और आस्था के अनुसार मनाया जाता है। सामान्यतः, यह सुंदर पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है। प्रामाणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर परायण करने के कारण, सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं/ astrological beliefs के अनुसार, इस दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। हालांकि, लगभग हर हिंदू त्योहार की चंद्र आधारित पंचांग के अनुसार गणना की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति/Makar Sankranti सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना करके व्यापक रूप से मनाई जाती है।
मकर संक्रांति/Makar Sankranti की इस अद्भुत अवधि के दौरान, इसे मौसम परिवर्तन के प्रतीक के रूप में चिह्नित किया जाता है। इस समय, पतझड़ में कमी आने लगती है जो आकर्षक बसंत के शुरू होने का प्रतीक होता है। इस प्रभाव के परिणामस्वरूप, दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने शक्तिशाली विशाल मंदार पर्वत से असुरों का सिर दबाकर युद्ध की समाप्ति की घोषणा की थी। मकर संक्रांति/Makar Sankranti को बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन माना जाता है जो शिक्षा, ज्ञान और प्रकाश का मार्ग दिखाया जाता है। इस दिन को नकारात्मक ऊर्जा पर सकारात्मकता की जीत के रूप में चिह्नित किया जाता है। सभी के द्वारा मनाए जाने वाला यह दिन, विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से लोकप्रिय है। तमिलनाडु में, यह पोंगल के रूप में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में यह अत्यधिक उत्साहपूर्ण और महत्वपूर्ण पर्व 'संक्रांति' के रूप में लोकप्रिय है। भारत के विभिन्न राज्यों में मनाए जाने के कारण, इसके कई अन्य लोकप्रिय नाम भी हैं। पारंपरिक रूप से, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में मकर संक्रांति को 'खिचड़ी' नाम से जाना जाता है। उत्तरायण एक महत्वपूर्ण प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इस दिन के सकारात्मक होने के कारण जप-तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण और कई अन्य गतिविधियां की जाती हैं। विभिन्न शुभ अवसरों और कार्यक्रमों को करने के लिए यह एक विलक्षण दिन होता है।
बजरंगी धाम में, नियमित तौर पर, हमारे द्वारा हमेशा चयनित अनुयायियों के लिए एक छोटे पूजन अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है, तथा बड़े अनुयायियों के लिए उनकी पूर्ण समृद्धि के आधार पर मकर संक्रांति उत्सव/Makar Sankranti celebration का आयोजन प्रत्येक 14 जनवरी/14th January को प्रात: काल 7:30 बजे किया जाता है।
मकर संक्रांति क्यों कहा जाता है? / Why say Makar Sankranti?
मकर एक पवित्र शब्द है, और 'संक्रांति' का अर्थ है संक्रमण। सूर्य, केवल इस शुभ दिन पर ही, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार, विस्थापन या एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की प्रक्रिया को 'संक्रांति' के रूप में जाना जाता है।
जिस शुभ काल में, शक्तिवान और तेजस्वी सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस पूरी प्रक्रिया को संक्रांति के रूप में जाना जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने की अवधि को ही मकर संक्रांति/Makar Sankranti के रूप में जाना जाता है। प्राचीन और पारंपरिक हिंदू महीनों के अनुसार, मकर संक्रांति/ Makar Sankranti का पवित्र त्यौहार, पौष शुक्ल पक्ष/ Paush, Shukla Paksha के दिन लोकप्रिय रूप से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व / Importance of Makar Sankranti
मूल रूप से, सूर्य आधारित हिंदू धर्म में, मकर संक्रांति/ Makar Sankranti को महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रामाणिक और पारंपरिक रूप से समृद्ध 'वेद' और 'पुराणों' में इस दिन के विशेष महत्व का व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है। हालांकि होली, दिवाली, दुर्गोत्सव, महाशिवरात्रि जैसे और कई अन्य त्योहार किसी न किसी विशेष, प्रामाणिक और नैतिक कहानियों पर आधारित होते हैं लेकिन मकर संक्रांति/Makar Sankranti एक खगोलीय पर्व है जो महत्वपूर्ण स्थितियों दिशाओं या मूल पारंपरिकता के दृष्टिकोण और चेतना पर प्रकाश डालती है। हिंदुओं के लिए, मकर संक्रांति/Makar Sankranti की मार्मिकता का महत्व उसी प्रकार है, जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पर्वतों में विशाल हिमालय का महत्व होता है। सूर्य द्वारा धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को ही, व्यापक रूप से उत्तरायण के रूप में जाना जाता है। राशियों के क्रम-विकास को मकर संक्रांति/Makar Sankranti के रूप में जाना जाता है। संभवत:, यह एकमात्र ऐसा पर्व है जो संपूर्ण भारत में व्यापक और लोकप्रिय रूप से मनाया जाता है। हालाँकि, यह भी सत्य है कि प्रत्येक प्रांत में भिन्न नाम होने के साथ ही, उत्सव के प्रकार और तरीके भी भिन्न होते हैं। इसके बावजूद, यह व्यापक रूप से, सबसे अधिक मनाया जाने वाला एक अद्भुत पर्व है क्योंकि सिर्फ इस दिन से ही, पृथ्वी और सूर्य नए वर्ष में प्रवेश करके, एक नई गति के गवाह बनते हैं। इसके साथ ही, वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि 21 मार्च को पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूर्ण करती है और इसलिए इसे नए साल के रूप में मनाया जाता है। 14 जनवरी के दिन सूर्य के, दक्षिण की जगह उत्तर की ओर गतिमान होने के कारण, इसे अच्छे और पवित्र दिनों की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया जाता है। सूर्य के, पूर्व से पश्चिम की ओर गतिमान होने पर इसका अत्यधिक बुरा प्रभाव माना जाता है।
हालांकि, सूर्य के पूर्व से उत्तर की ओर गतिमान होने पर, शक्तिशाली किरणें व्यक्ति के स्वास्थ्य और शांति पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इसी दिन, पवित्र और निर्मल गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत काल में, पितामह भीष्म द्वारा सूर्य के उत्तरायण पर जाने के बाद अपना शरीर त्यागा था क्योंकि उत्तरायण के दौरान, शरीर छोड़ने वाली आत्माएं पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाकर स्वर्ग जाती हैं तथा दक्षिणायन में शरीर छोड़ने के दौरान, आत्मा को लंबे समय तक अंधकार, उदासी और निराशा का सामना करना पड़ता है। सब कुछ प्रकृति के नियमों के अधीन होने के कारण, प्रत्येक जीव और चीजें इस व्यापक और सुंदर प्रकृति से बंधी हुई हैं। पौधा प्रकाश में पूर्ण रूप से विकसित होने पर भी अंधकार में मुरझा भी सकता है और इसी प्रकार यह निर्विवादित है कि मृत्यु प्रकाश में होनी चाहिए जिससे जीव परिस्थितियों के प्रारूप और गतियों को स्पष्ट रूप से देख सकें। लेकिन मुख्य सवाल यह है कि क्या इसमें सुधार किया जा सकता है? क्या सही चयन किया जा सकता है? जैसा कि सब जानते ही हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर श्रीकृष्ण द्वारा शांति प्रदान करने वाली पवित्र 'गीता' में उत्तरायण की शक्ति को बताया गया है। उत्तरायण के छह महीने की इस अवधि के दौरान, अत्यधिक ऊर्जावान सूर्यदेव के उत्तरायण होने के समय पृथ्वी अत्यंत प्रकाशवान रहती है। इसके साथ ही, इस अलौकिक प्रकाश में शरीर का त्याग करने वाले जीवों का, ब्रह्म की प्राप्ति होने के कारण पुनर्जन्म नहीं होता है। इसके विपरीत, सूर्य के दक्षिणायन होने पर पृथ्वी पर अंधकार हावी हो जाता है। वास्तव में, यह अंधकार शरीर का त्याग होने के बाद होने वाले पुनर्जन्म को दर्शाता है। विशेष रूप से, मकर संक्रांति/Makar Sankranti का लौकिक महत्व अपार है।
मकर संक्रांति का लौकिक महत्व / The Cosmic Significance of Makar Sankranti
व्यापक रूप से ऐसा माना जाता है कि सूर्य के पूर्व से दक्षिण की ओर गतिमान होते समय सूर्य की किरणों का अत्यधिक हानिकारक प्रभाव होता है। इसके अलावा, यह भी सच है कि सूर्य के पूर्व से उत्तर की ओर गतिमान होने पर, इसका शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव होता है। विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों से संबंधित संतों और व्यक्तियों को सिद्धियों के साथ ही, हमेशा सुख और शांति की भी प्राप्ति होती है। सरल भाषा में भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि इस शुभ काल में मनुष्यों को अतीत के कड़वे अनुभवों को भुलाकर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के इन पवित्र और शुद्ध छः माह के इस शुभ काल में, सूर्यदेव के उत्तरायण के स्थिर काल में होने के कारण, पृथ्वी निराकार रूप से प्रकाशमान रहती है, इसलिए इस प्रकाश में शरीर का त्याग होने पर मनुष्य पुनर्जन्म से मुक्त होकर ब्रह्म को प्राप्त करता है। अतः, महाभारत काल में भीष्म पितामह ने साहसपूर्वक इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त करके, मकर संक्रांति/ Makar Sankranti के दिन अपने शरीर का त्याग किया था।
मकर संक्रांति पर्व का सांस्कृतिक महत्व / Cultural significance of Makar Sankranti festival
भारत के विभिन्न राज्यों में, विभिन्न शैलियों और स्वरूपों में यह पर्व मनाया जाता है। दक्षिण भारत में यह खूबसूरत पर्व 'पोंगल' नाम से मनाया जाता है तथा भारत के उत्तरी क्षेत्र में यह अनोखा पर्व 'खिचड़ी या पतंग' पर्व के रूप में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। इसके अलावा, मध्य भारत में इसे संक्रांति, मकर संक्रांति, 'उत्तरावन' या 'माघी खिचड़ी' आदि कई अन्य नामों से जाना जाता है।
प्राचीन और पारंपरिक हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, यह पवित्रता और ज्ञानोदय का दिन है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधकार पर प्रकाश की जीत का दिन है तथा यह आषाढ़ मास तक चलता है। प्राचीन और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह ने भी अपने शरीर को त्यागने के लिए मकर संक्रांति/Makar Sankranti के इस स्थिर दिन को चुना था। इसके साथ ही, इसका अन्य ऐतिहासिक महत्व यह भी है कि इसी शुभ दिन गंगाजी भगीरथ का अनुसरण करते हुए, कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जाकर मिल गईं थीं। साथ ही, इस दिन महाराजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था जिसकी याद में, मकर संक्रांति/Makar Sankranti पर गंगासागर में मेलों का आयोजन किया जाता है।
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?/ Why do you celebrate Makar Sankranti
ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य का, अपने पुत्र मकर राशि के स्वामी 'शनि' के पास जाने के कारण, इस दिन को 'मकर संक्रांति'/Makar Sankranti नाम दिया गया है। इस दिन स्थिर, शांत और अलौकिक गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरित होना भी, इस विशाल पर्व के महत्व को दर्शाता है। कहा जाता है कि उत्तरायण में शरीर त्यागने वाली आत्माएं या तो स्वर्ग जाती हैं या ब्रह्म की प्राप्ति होने से पुनर्जन्म और लाभ के चक्र से मुक्त हो जाती है इसलिए महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने सूर्य के उदय होने पर स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।
हालाँकि, सत्य यह भी है कि दक्षिणायन में शरीर का त्याग करने से आत्मा को अधिक समय तक अत्यधिक अंधकार का सामना करना पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उत्तरायण के अत्यधिक महत्व को बताते हुए कहा गया है कि इस दौरान सूर्यदेव के उत्तरायण होने के कारण पृथ्वी भी प्रकाशमान रहती है और इस प्रकाश के दौरान शरीर त्यागने से पुनर्जन्म नहीं होता है, और ब्रह्म की प्राप्ति होती है। साथ ही, सूर्य के दक्षिणायन हो जाने पर पृथ्वी पर अंधकार होने से, शरीर का त्याग करने पर पुनर्जन्म लेना पड़ता है। श्री राम द्वारा भी पतंग उड़ाई जाने का धार्मिक कारण होने से, इस दिन विभिन्न स्थानों पर पतंग उड़ाने का परंपरागत रिवाज है। लोगों द्वारा, इस अनोखे पर्व को कृतज्ञता, प्रसन्नता और आनंद पूर्वक मनाया जाता है। इस दिन, गुजरात और सौराष्ट्र में कुछ दिनों का अवकाश रहता है तथा यह सभी राज्यों में आनंदपूर्वक मनाया जाता है।
मकर संक्रांति की परंपराएं / Traditions on Makar Sankranti
हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा अनुसार, लगभग हर त्योहार मिठाई के बिना अधूरा होने के कारण, इस पावन पर्व पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और अन्य व्यंजन बनाने की परंपरा है। तिल और गुड़ का सेवन करना, एक दूसरे के प्रति प्रेम और संबंधों में गर्माहट को दर्शाता है। सबके साथ मिठाइयां बांटने से, संबंधों में कड़वाहट दूर होती है और मधुरता बनी रहती है तथा यह सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने और बिना किसी सीमा या अर्थ के प्रेम का प्रसार करने में मदद करता है। मिठाइयां खाने और बांटने से जीवन में शांति, सद्भाव और खुशियां बनी रहती हैं। निश्चित रूप से पतंग उड़ाना सबसे आश्चर्यजनक परंपराओं में से एक है, जिसमें संपूर्ण आकाश बेहद खूबसूरत और सुरम्य दिखता है। पतंग सट्टेबाजी का प्रदर्शन करना भी अत्यधिक मनोरंजक होता है।
मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?/ How to celebrate Makar Sankranti?
इस दिन स्नान, दान और पुण्य का विशेष महत्व होता है और पवित्र नदियों के जल में गुड़ और तिल डालकर, अच्छे भविष्य की कामना करते हुए सर्वशक्तिमान भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद, उनसे बेहतर और उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके बाद तिल, गुड़, कंबलों और फलों का भी दान किया जाता है। हर तरफ उड़ती हुई पतंगें अत्यधिक सुंदर दिखती हैं। इसके साथ ही, कई प्रकार के स्वादिष्ट और मुंह में पानी लाने वाले व्यंजन बनाकर उनका सेवन किया जाता है। इस दिन, स्वादिष्ट खिचड़ी बनाकर परम इष्ट भगवान सूर्यदेव को अर्पित की जाती है। विभिन्न शहरों में यह पर्व आश्चर्यजनक रूप से मनाया जाता है और कई जगहों पर किसानों द्वारा फसलों की कटाई भी की जाती है।
मकर संक्रांति पर स्नान का महत्व/ Importance of Bathing on Makar Sankranti
भारतीयों के लिए मकर संक्रांति एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है, जो स्नान द्वारा, सभी संकेतों से शुद्धता और शांति प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं। वैदिक शास्त्रों में इस दिन का विशेष महत्व है। गणनाओं द्वारा, यह समारोह सर्दियों के मौसम की समाप्ति और फसलों की कटाई की शुरुआत में मनाया जाता है। यह भारत के किसानों के लिए एक पवित्र दिन है। संपूर्ण भारतवर्ष में लाखों लोग सुबह-सुबह नदियों में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं और स्वयं को शुद्ध करते हैं। ठंड के मौसम के बावजूद, भक्त उषाकाल में आते हैं और स्नान करते हैं। प्रातः काल जल्दी शुरू होने वाला यह पर्व, संपूर्ण देश में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम, राजस्थान में पुष्कर, नासिक में गोदावरी नदी, जैसे लोकप्रिय और विभिन्न अन्य पवित्र स्थानों पर, देश के अलग-अलग क्षेत्रों से लाखों की संख्या में भक्त आकर एकत्र होते हैं। इलाहाबाद में हर साल 'माघ मेला' नामक एक विशाल समारोह आयोजित किया जाता है और इस अवसर के लिए कोलकाता में गंगासागर भी अत्यधिक प्रसिद्ध है।
वास्तव में, हरिद्वार भारत का वो खूबसूरत पवित्र स्थान है, जहां दुनिया भर के लोग एकत्रित होकर पापों को धोने और पवित्र होने के लिए गंगा नदी के कंपकंपाने वाले ठंडे जल में डुबकी लगाते हैं। अयोध्या में भी, श्रद्धालु सरयू में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं और रामलीला, हनुमानगढ़ी में मां जानकी और कनक भवन में हनुमानजी की पूजा-अर्चना करते हैं। हरिद्वार में इस अवसर पर, प्रेम और सद्भाव बनाए रखने के लिए मेले का आयोजन किया जाता है; जहां भक्तों द्वारा अपने-अपने कौशल दिखाए जाते हैं और यहां दूसरे देशों से आए विदेशी भी इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। इस दिन, प्रयाग और गंगासागर में स्नान करने को महास्नान कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन, दान करना अत्यंत लाभकारी होने के कारण, मकर संक्रांति का उत्सव भी दान और जरूरतमंद लोगों की भलाई को विशेष महत्व देता है। इस प्रकार, मकर संक्रांति/Makar Sankranti का पर्व भारतीयों द्वारा अत्यंत शुभ अवसर के रूप में मनाया जाता है और दुनिया भर के लोग इस अवसर के बारे में जानने में रुचि रखते हैं। यह अवधि, गरीबों और जरूरतमंदों के लिए बड़ी मदद लेकर आती है।
स्नान के बाद, लोग गरीबों और जरूरतमंदों को धन का दान करके उनका सहयोग करते हैं। इस दौरान, खिचड़ी को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह एक पौष्टिक भोजन है जिससे सर्दियों में गर्माहट मिलती है। उड़द की दाल, चावल, मिश्रित मसालों और सर्दियों की स्वास्थ्यवर्धक हरी सब्जियों से बनने वाली खिचड़ी दिन भर बनी रहने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता और ताकत देती है। मकर संक्रांति के दिन, खिचड़ी का दान बड़े पैमाने पर किया जाता है, और सभी को खिचड़ी का प्रसाद के लिए आमंत्रित करके, पुण्य प्राप्त किया जाता है। देश भर के मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है। उत्तर प्रदेश में यह पर्व अत्यंत लोकप्रिय है, और इस शुभ दिन खिचड़ी का दान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है; यहां तक कि हर घर में खिचड़ी भी बनाई जाती है। महाराष्ट्र में यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और नवविवाहिताओं द्वारा अपनी पहली संक्रांति पर सुहागिन महिलाओं को कपास, तेल, नमक आदि दान किया जाता है। तमिलनाडु में लक्ष्मी जी का पूजन करके, इस पर्व को पोंगल के नाम से चार दिनों तक मनाया जाता है। पहला दिन कबाड़ जलाकर, दूसरा दिन लक्ष्मी जी का पूजन, और तीसरे दिन पशु धन का पूजन किया जाता है।
चंद्र राशि के अनुसार, माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष दो भाग होते हैं। इसी प्रकार, वर्ष के दो भाग- सूर्य उत्तरायण और सूर्य दक्षिणायन, सूर्य पर निर्भर करते हैं। जब पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर होता है, तब सूर्य उत्तर दिशा से उदय होने लगते हैं। उत्तर दिशा से उदित सूर्य के उत्तरायण या सौम्या कहा जाता है तथा यह अवधि वर्ष के आधे भाग तक रहती है। वहीं, बाकी के छह महीने दक्षिणायन कहलाते हैं। यही कारण है कि इस पर्व को उत्तरायण के नाम से जाना जाता है। उत्तरायण की छह महीने की अवधि मकर संक्रांति से शुरू होकर कर्क संक्रांति पर समाप्त होती है। मकर संक्रांति का महत्व इसलिए भी है क्योंकि फसलों की कटाई करके, इस दिन नई मौसमी फसलों को लगाना शुरू किया जाता है। पंजाब, यूपी, बिहार, तमिलनाडु प्रमुख राज्यों में किसान मकर संक्रांति के दिन को बहुत महत्व देते हैं। किसानों का मानना है कि खेती की प्रक्रिया भगवान और प्रकृति का आशीर्वाद है। गेहूं और धान इस नए मौसम की शुरुआत के साथ खेत में काटी जाने वाली मुख्य फसलें हैं।
तिल-गुड़, लड्डू और कुछ अन्य स्वास्थ्यवर्धक व्यंजन प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और शरीर को बीमारी से लड़ने की ताकत देने में मददगार होते हैं। इस प्रकार, पर्यावरणीय तापमान के कम होने के कारण, किसी भी प्रकार की बीमारी या कमजोरी को रोकने के लिए इन व्यंजनों को बनाया और वितरित किया जाता है। इनमें मौजूद स्वास्थ्यवर्धक तत्वों से हमारे शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। इस पर्व के दौरान, गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक और घेवर जैसे अन्य व्यंजन प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं। इस दिन, उत्तर भारत में खिचड़ी सबसे लोकप्रिय भोजन होती है।
पतंग महोत्सव / Kite Festival
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को खिचड़ी, पोंगल, उत्तरायण आदि अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। हालांकि, यह पर्व पतंग महोत्सव के रूप में भी व्यापक रूप से मनाया जाता है। कहा जाता है कि सर्दियों के दौरान, सूरज की रोशनी द्वारा विभिन्न लाभ प्राप्त होने के कारण, यह हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है और धूप में मौजूद विटामिन 'डी' त्वचा की मदद करता है और सूरज की किरणें कीटाणुओं को खत्म करती हैं। इस कारण, इस दिन सुबह के कुछ घंटे पतंग उड़ाने में व्यतीत किए जाते हैं इसलिए इस दिन को काइट फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत अच्छा होता है।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह माह बहुत ही समृद्ध शाली होते है; सूर्यदेव के उत्तरायण का सामना करने से पृथ्वी प्रकाशमान रहती है। इस अवधि के दौरान, शरीर त्यागने पर पुनर्जन्म से मुक्ति होती है और ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि भीष्म पितामह ने सूर्य के अस्त होने तक अपना शरीर नहीं त्यागा था।
मकर संक्रांति की कथा / Story of Makar Sankranti
पौराणिक श्रीमद् भगवद् पुराण और देवी पुराण के लेखों के अनुसार, बाल्यकाल से ही शनि को अपने पिता सूर्यदेव से वैर भाव था क्योंकि सूर्यदेव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था। इस बात से क्रोधित होकर सूर्यदेव ने छाया और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे क्रोधित होकर, शनिदेव और उनकी छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग होने का श्राप दिया और वहां से चले गए। अपने पिता को कुष्ठ रोग से परेशान देखकर यमराज ने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिसके बाद सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। इसके बाद भी, वह शनि देव पर क्रोधित रहे और इसलिए वह शनि देव के घर गए और उसे जलाकर काला कर दिया। जिसके बाद शनिदेव और यहां तक कि उनकी मां को भी काफी कष्ट उठाने पड़े। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्टों में देखकर, उन दोनों की मदद करने की पूर्ण कोशिश करते हुए सूर्यदेव को फिर से उनसे मिलने के लिए भेजा। उसके बाद, जब सूर्यदेव वहाँ पहुँचे, तो घर में सब कुछ जल जाने के कारण, केवल बचे हुए काले तिलों से शनि देव ने उनका पूजन किया था।
भगवान शनि के पूजन से प्रसन्न होकर, सूर्य देव ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि 'जब भी मैं आपके घर अर्थात मकर राशि में आऊंगा, तो आपका घर धन से परिपूर्ण होने के कारण आनंद और संतुष्टि से भर जाएगा। इस खास कारण से, मकर संक्रांति/ Makar Sankranti के पावन दिन सूर्यदेव का पूजन तिलों के साथ किया जाता है और दूसरे दिन इसका सेवन किया जाता है।
मकर संक्रांति की पूजन विधि / Makar Sankranti Puja Method
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मकर संक्रांति/Makar Sankranti के दिन, शुद्धि के लिए शांत और पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। माना जाता है कि किसी पवित्र नदी में स्नान करना संभव न होने पर, गंगाजल में थोड़े तिल डालकर स्नान करना चाहिए। इसके साथ ही, वस्त्रों को भी साफ करना चाहिए।
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एक स्वच्छ चौकी पर गंगाजल छिड़क कर, उस पर एक लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद, उस चौकी पर लाल चंदन से एक उचित 'अष्टदल कमल' बनाना चाहिए।
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इसके बाद, सूर्य देव का चित्र स्थापित करके ताम्र कमल में जल भरकर चौकी पर रखना चाहिए।
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इसके बाद, जल हाथ में लेकर सूर्यदेव की अक्षुण्णता का आह्वान करके, सूर्य देव को लाल चंदन का तिलक करें।
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तत्पश्चात, उन्हें लाल पुष्पों के साथ ही 'नैवेद्य' या लाल फल भी अर्पण करना चाहिए।
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इसके अतिरिक्त, ध्यान केंद्रित करके 'सूर्यदेव' के मंत्रों का जाप करना चाहिए और 'आदित्यहृदय स्रोत' का पाठ भी करना चाहिए।
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इन सभी अनुष्ठानों को करने के बाद, विधिवत पूजन करके धूप और दीप द्वारा आरती करनी चाहिए।
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फिर, पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन करते हुए तिल और गुड़ से बने लड्डूओं का भोग लगाना चाहिए।
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भोग लगाने के बाद, सर्वशक्तिमान सूर्यदेव को ताम्र कमल का जल अर्पित करते हुए 'घुर्य सूर्य नम' मंत्र का भी जाप करना चाहिए।
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इस दिन खिचड़ी का भी दान करना अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। अतः किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को खिचड़ी का भी दान करना चाहिए।
मकर संक्रांति के मंत्र / Mantra of Makar Sankranti
ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य ।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणाय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ ।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।
सूर्यदेव की आरती / Aarti of God Sun
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
त्रिभुवन - तिमिर - निकंदन, भक्त-हृदय-चंदन।
tribhuvan - timir - nikandan, bhakt-hrday-chandan
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
सप्त-अश्वरथ रजित, एक चक्रधारी।
sapt-ashvarath raajit, ek chakradhaaree
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी।
du:khahaaree, sukhakaaree, maanas-mal-haaree
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
सुर-मुनि-भूसुर-वंदित, विमल वैभवशाली।
sur - muni - bhoosur - vandit, vimal vibhavashaalee
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली।
agh-dal-dalan divaakar, divy kiran maalee
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
sakal - sukarm - prasavita, savita shubhakaaree
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी।
vishv-vilochan mochan, bhav-bandhan bhaaree
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
कमल-समुह विकासक, नाशक त्रय तापा।
kamal-samooh vikaasak, naashak tray taapa
सेवत सहज हरत अति मनसिज-संतापा।
sevat saahaj harat ati manasij-santaapa
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
नेत्र-व्याधि हर सुरावर, भू-पीड़ा-हारी।
netr-vyaadhi har suravar, bhoo-peeda-haaree
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी।
vrshti vimochan santat, parahit vratadhaaree
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
sooryadev karunaakar, ab karuna keejai
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै।
har agyaan-moh sab, tattvagyaan deejai
जय कश्यप-नंदन, ओम जय अदिति नंदन।
jay kashyap-nandan, om jay aditi nandan
मकर संक्रांति पूजन के लाभ / Benefits of performing Makar Sankranti Puja
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निश्चित रूप से, इस शुभ पूजन से चेतना में वृद्धि होने के साथ ही, अलौकिक ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
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चैतन्य रुप से जागरूकता विकसित होती है।
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आध्यात्मिकता में वृद्धि होने से आत्मा की शुद्धि होती है।
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व्यवसायिक रूप से लगातार बेहतर परिणामों की प्राप्ति होती है।
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धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों में कुछ समय व्यतीत करना चाहिए।
मकर संक्रांति के दिन, कई देवताओं का पूजन किया जाता है लेकिन सूर्यदेव के पूजन का विशेष विधान होता है। इस दिन भगवान शिव, गणेश, विष्णु और देवी महालक्ष्मी का भी पूजन करना चाहिए। इसके अलावा, विभिन्न प्रामाणिक और प्राचीन ग्रंथों में सूर्यदेव के पूजन करने का विवरण वर्णित है।
मकर संक्रांति के सुंदर पर्व पर, 'पंच शक्ति' के अभ्यास द्वारा ग्रहों को अनुकूल किया जा सकता है तथा स्नान, दान, प्रार्थना और 'पंचदेवों' के पूजन के प्रभाव द्वारा सोए हुए भाग्य को भी जगाया जा सकता है।
तीर्थ और मेला / Pilgrimage and Fair
मकर संक्रांति/Makar Sankranti के अवसर पर देश के कई शहरों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लाखों भक्तों द्वारा गंगा और अन्य पवित्र नदियों के तट पर स्नान, दान और धर्म किए जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है कि मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
भारत में मकर संक्रांति त्यौहार और संस्कृति
भारत वर्ष में मकर संक्रांति हर प्रान्त में बहुत हर्षौल्लास से मनाया जाता है. लेकिन इसे सभी अलग अलग जगह पर अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है.
उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहते है. इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है. इस अवसर में प्रयाग यानि इलाहाबाद में एक बड़ा एक महीने का माघ मेला शुरू होता है. त्रिवेणी के अलावा, उत्तर प्रदेश के हरिद्वार और गढ़ मुक्तेश्वर और बिहार में पटना जैसे कई जगहों पर भी धार्मिक स्नान हैं.
पश्चिम बंगाल: बंगाल में हर साल एक बहुट बड़े मेले का आयोजन गंगा सागर में किया जाता है. जहाँ माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की रख को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र डुबकी लगाई गई थी. इस मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री भाग लेते हैं.
तमिलनाडु: तमिलनाडु में इसे पोंगल त्यौहार के नाम से मनाते है, जोकि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है.
आंध्रप्रदेश: कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा नाम से मानते है. जिसे यहाँ 3 दिन का त्यौहार पोंगल के रूप में मनाते हैं. यह आंध्रप्रदेश के लोगों के लिए बहुत बड़ा इवेंट होता है. तेलुगू इसे ‘पेंडा पाँदुगा’ कहते है जिसका अर्थ होता है, बड़ा उत्सव.
गुजरात: उत्तरायण नाम से इसे गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है. इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है, जिसमे वहां के सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है. गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है. इस दौरान वहां पर 2 दिन का राष्ट्रीय अवकाश भी होता है.
बुंदेलखंड: बुंदेलखंड में विशेष कर मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति के त्यौहार को सकरात नाम से जाना जाता है. यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी मिठाइयों के साथ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.
महाराष्ट्र: संक्रांति के दिनों में महाराष्ट्र में टिल और गुड़ से बने व्यंजन का आदान प्रदान किया जाता है, लोग तिल के लड्डू देते हुए एक – दूसरे से “टिल-गुल घ्या, गोड गोड बोला” बोलते है. यह महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है. जब विवाहित महिलाएं “हल्दी कुमकुम” नाम से मेहमानों को आमंत्रित करती है और उन्हें भेंट में कुछ बर्तन देती हैं.
केरल: केरल में इस दिन लोग बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते है, जोकि सबरीमाला में समाप्त होता है.
उड़ीसा: हमारे देश में कई आदिवासी संक्रांति के दिन अपने नए साल की शुरुआत करते हैं. सभी एक साथ नृत्य और भोजन करते है. उड़ीसा के भूया आदिवासियों में उनके माघ यात्रा शामिल है, जिसमे घरों में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता है.
हरियाणा: मगही नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह मनाया जाता है.
पंजाब: पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है, जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते है.
असम: माघ बिहू असम के गाँव में मनाया जाता है.
भले विश्व में मकर संक्रांति अलग अलग नाम से मनाते है लेकिन इसके पीछे छुपी भावना सबकी एक है वो है शांति और अमन की. सभी इसे अंधेरे से रोशनी के पर्व के रूप में मनाते है.
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