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Lohri Celebrations & Traditions: लोहड़ी 2021-22 तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त के बारे में यहाँ जानिए |
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Lohri Celebrations & Traditions: लोहड़ी 2022-23 तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त के बारे में यहाँ जानिए।
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प्रमुख रूप से पंजाब और हरियाणा में मनाई जाने वाली लोहड़ी/Lohri को दुनिया भर में भी मनाया जाता है। लोहड़ी के साथ पोंगल/Pongal का पर्व भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। चलिए पहले लोहड़ी के बारे में बताते हैं। यह पर्व देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। लोहड़ी/Lohri को किसानों के लिए नया साल माना जाता है। लोहड़ी/Lohri का त्योहार पूस माह की सर्दियों के मौसम में आता है। लोहड़ी/Lohri में अलाव जलाकर शगुन चढ़ाया जाता है। इस दौरान, गेहूं और सूरजमुखी की फसल के पूर्ण रूप से पक जाने के कारण, किसान आशाओं और सपनों के साथ फसल को लेकर खुश और उत्साहित होते हैं। लोहड़ी/Lohri पर आनंद, नई ऊर्जा, आपसी भलाई, बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।
पंजाब के साथ ही, लोहड़ी/Lohri हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में भी धूमधाम से मनाई जाती है। आज, यह पर्व भारत के अन्य क्षेत्रों में भी मनाया जाने लगा है। प्रत्येक वर्ष, लोहड़ी/Lohri का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पंजाबियों के लिए लोहड़ी/Lohri का पर्व अनिवार्य होने के कारण, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले सभी पंजाबी इसे बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्योहार को 'सिंधी लाल लोई' के रूप में भी मनाया जाता है। लोहड़ी/Lohri पंजाब का प्रमुख पर्व है, लेकिन यह हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में भी मनाया जाता है।
नियमित दिनों में, हमारे द्वारा बजरंगी धाम में चयनित अनुयायियों के लिए, हमेशा एक छोटा पूजन अनुष्ठान किया जाता है तथा ग्राहकों की समग्र समृद्धि के लिए, प्रत्येक तेरह जनवरी/13th January की शाम को लगभग सवा आठ बजे लोहड़ी/Lohri उत्सव किया जाता है।
लोहड़ी कब मनाई जाती है?/ When is Lohri Celebrated?
लोहड़ी/Lohri वसंत की शुरुआत के दौरान, ग्रीष्म, सर्दी, शरद ऋतु जैसे अन्य मौसमों की तरह ही, पूस माह की 13 जनवरी/13th January की आखिरी रात को मनाई जाती है। लोगों द्वारा माना जाता है कि लोहड़ी/Lohri इस बात का प्रतीक है कि पूस माह (हिंदू कैलेंडर के अनुसार सबसे ठंडा महीना) समाप्त होगा और माघ मास शुरू होने जा रहा है। इस कारण; कुछ लोगों द्वारा इसे लोहड़ी माघी महोत्सव/Lohri Maghi Festival भी कहा जाता है।
धार्मिक महत्व / Religious Importance
ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी/Lohri के दिन, पृथ्वी फिर से सूर्य का सामना करना शुरू कर देती है। यह पर्व चारों ओर खुशियों का प्रतीक है। यह वर्ष के प्रथम माह (जनवरी) में मनाया जाता है, जो पंजाब, हरियाणा और दिल्ली का सबसे ठंडा माह भी होता है। किसान समुदाय इसे उम्मीदों और आकांक्षाओं के साथ अद्भुत ढंग से मनाता है क्योंकि इस दौरान परिश्रम द्वारा उगाई गई उनकी फसल कटाई के लिए तैयार होती है। मौसम की पहली गेहूं की फसल के साथ रात में लोहड़ी/Lohri जलाई जाती है।
लोहड़ी पर्व का महत्व / The Importance of the Lohri Festival
लोहड़ी/Lohri सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक है। इस तरह; यह एक मौसमी त्योहार है जो सर्दियों के अंत में मकर संक्रान्ति के दौरान आने के कारण, किसानों के लिए आशाजनक होता है। हम सभी जानते हैं कि लोहड़ी एक पंजाबी त्योहार है, और इसका नाम एक पंजाबी दुल्ला भट्टी के नाम पर रखा गया है। लोहड़ी मनाने के कई कारण हैं, जिसके बारे में आगे विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। यद्यपि, यह पर्व, दिनों के छोटा होने और रातें लंबी हो जाने पर 13 जनवरी के दिन अत्यधिक आनंद के साथ मनाया जाता है। इसे तमिलनाडु में पोंगल, आंध्र प्रदेश में भोगी, उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति/Makar Sankranti, असम और कर्नाटक में बिहू कहा जाता है। सिंधी समुदाय इस त्योहार को लाल कोई के रूप में मनाते हैं, और पंजाबी इसे लोहड़ी कहते हैं।
लोहड़ी का इतिहास / The History of Lohri
विभिन्न मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी/Lohri मनाने के कई कारण हैं। पुराणों के अनुसार, यह पर्व सती के बलिदान का प्रतीक है। इस कहानी के अनुसार, सती के पिता, राजा दक्ष द्वारा उनके पति भगवान शिव को महायज्ञ में आमंत्रित नहीं करने पर, सती आत्म-बलिदान के संकेत स्वरूप स्वयं उस महायज्ञ की अग्नि में जल गईं। इस प्रकार, लोहड़ी/Lohri मनाई जाने लगी और विवाहित महिलाओं को भोजन के लिए घर पर आमंत्रित किया जाता है। इसे दुल्ला भट्टी भी कहा जाता है।
लोहड़ी/Lohri मनाने की एक अन्य ऐतिहासिक कथा अकबर के शासन से संबंधित है। जब अकबर ने पंजाब और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया तब पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति रहता था। माना जाता था कि वह गरीब लोगों के रॉबिनहुड थे जो गरीबों की मदद के लिए, अमीर लोगों की संपत्ति लूटकर जरूरतमंदों की जरूरत के अनुसार बांट देते थे तथा गुलाम बाजार में जबरदस्ती बेची जाने वाली हिंदू महिलाओं को भी वह बचाते थे। सभी हिंदू परंपराओं का पालन करते हुए इन महिलाओं का हिंदू पुरुषों के साथ विवाह करा दिया जाता था और दहेज भी दिया जाता था। हालाँकि दुल्ला भट्टी लूटपाट करते थे, लेकिन दूसरों के जीवन में योगदान करने के कारण, वे गरीबों के नायक बन गए। इसलिए लोहड़ी के गीतों में उनका नाम, उनके किए गए प्रयासों की याद दिलाता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लोहड़ी की उत्पत्ति कवि कबीर की पत्नी के नाम लोई शब्द से हुई है और लोहड़ी को दीया बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली लोई शब्द से भी लिया माना जाता है।
लोहड़ी कैसे मनाई जाती है?/ How is Lohri Celebrated?
हालांकि, लोहड़ी/Lohri एक पंजाबी त्योहार है, लेकिन यह पूरे भारत में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हर दूसरे त्योहारों की तरह, लोहड़ी/Lohri भी आनंदपूर्वक मनाई जाती है जिसमें सभी परिवार और मित्र एक साथ खुशियां मनाते हैं। गुड़, रेवड़ी, मिश्री और तिल जैसी मिठाइयों का वितरण और आदान-प्रदान किया जाता है तथा इन वस्तुओं को लोहड़ी की अग्नि में अर्पण किया जाता है। इस दिन, ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, घरों में धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। परंपरानुसार, सरसों का साग, गुड़, गजक, तिल, मूंगफली आदि प्रसाद रूप में खाया जाता है। लोग इस दिन नए वस्त्र पहनते हैं और भांगड़ा करते हैं। फसल का मौसम होने के कारण, किसान इस दिन को अपना नया साल मानते हैं। पंजाब और हरियाणा में इसका प्रमुख रूप से पालन किया जाता है तथा यह नए साल का प्रतीक भी है।
1. अग्नि के समीप उत्सव/ Celebration Near Fire
लोहड़ी की पूर्व संध्या पर, लकड़ी से बने अलाव जलाकर, उसके चारों ओर चक्कर लगाते और नाचते -गाते हैं तथा अग्नि में रेवड़ी, मूंगफली, मकई चढ़ाकर, अलाव के पास बैठकर आनंद लिया जाता है।
2. विशेष खाद्य पदार्थ / Special Eatables
लोहड़ी/Lohri के दिन गजक, रेवड़ी, मूंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मकई की रोटी और सूरजमुखी के पत्ते जैसे आवश्यक खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है। लोहड़ी से पूर्व ही इस पर्व की तैयारी करने के लिए, बच्चों द्वारा लोहड़ी के गीत गाकर इस्तेमाल होने वाली लकड़ियां, सूखे मेवे, रेवड़ियां, और मूंगफली आदि इकट्ठा की जाती हैं।
3. नवविवाहित दुल्हनों, बहनों और बच्चों का त्योहार / Festival of Newly-Wed Bride, Sister, and Children
लोहड़ी का पंजाबी समुदाय के लिए विशेष महत्व होता है। नवविवाहिताओंं और नवजात शिशुओं के लिए लोहड़ी पर्व अनिवार्य होता है। लोहड़ी/Lohri पर महिलाओं को घर पर आमंत्रित करके आदर-सत्कार किया जाता है।
4. लोहड़ी मनाने के पीछे की मान्यता / Belief Behind Celebrating Lohri
ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा है। इसके साथ ही, यह भी माना जाता है कि दुल्ला भट्टी ने सुंदरी और मुंदरी नाम की महिलाओं को राजा से बचाकर, उनका विवाह सभ्य पुरुषों से करवाया था।
5. त्योहारों का त्यौहार / Festival of Festivals
बैसाखी का त्योहार भी, लोहड़ी/Lohri के समान ही पंजाब में मनाया जाता है जो पंजाब के गांवों और कृषि से भी संबंधित है। इस दौरान, रबी की फसल की कटाई करके घरों में रख दी जाती है और गाजर और गन्ने की फसल की बुवाई की जाती है। खेत सूरजमुखी से सुशोभित हो उठते हैं।
लोहड़ी का सामयिक दृष्टिकोण/Contemporary Outlook of Lohri
लोगों द्वारा लोहड़ी/Lohri मनाने का तरीका बदल गया है। पहले एक-दूसरे को दी जाने वाली गजक की मिठाईयों की जगह अब चॉकलेट और केक उपहारस्वरूप दिए जाने लगे हैं तथा आजकल एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने के लिए ईमेल और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों का प्रसोग किया जाने लगा है। पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अब, प्रकृति को संरक्षित करने के लिए लोहड़ी/Lohri का अलाव जलाने के लिए पेड़ों और लकड़ियों को न काटकर, यह पर्व दिन में भी मनाया जाने लगा है।
लोहड़ी की कहानी / The story of Lohri
लोहड़ी/Lohri पर्व से जुड़ी कई मान्यताओं में से सबसे प्रचलित कहानी दुल्ला भट्टी से संबंधित है। इस कहानी के अनुसार, मुगल शासन के दौरान दुल्ला भट्टी एक साहसी सैनिक था। पहले से ही विवाहित मुगल शासक, एक गरीब ब्राह्मण की दो खूबसूरत पुत्रियों सुंदरी और मुंदरी से जबरदस्ती शादी करना चाहता था। दुल्ला भट्टी ने इन महिलाओं को शासक से छुटकारा दिलाने में मदद की और कन्यादान करके उनकी शादी कहीं और करा दी थी। इस कहानी के विभिन्न रूपांतरओं में होने के कारण, दुल्ला भट्टी कहीं अकबर के शासन काल में एक साहसी सिपाही हैं तो कहीं एक डाकू। लेकिन इन मान्यताओं में एक समानता यह है कि उसने एक पिता की तरह दो महिलाओं की मदद करके उनकी शादी करवा दी थी। दुल्ला भट्टी की कहानी पंजाब के लोक गीतों में भी गाई जाती है।
सर्वत्र लोहड़ी की सुंदरता / The grace of Lohri Everywhere
इस दिन सभी लोग मिलकर भांगड़ा करते हैं और एक दूसरे को लोहड़ी की बधाई देते हैं। महिलाएं द्वारा नई उम्मीदों और नए सपनों के साथ खेतों पर नृत्य किया जाता है। महिलाओं द्वारा त्योहार से पूर्व ही हाथों में मेहंदी लगाकर तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। पंजाब में, यह त्योहार नवविवाहिताओं और नवजात शिशुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन रेवड़ी, मूंगफली, मक्के की रोटी और सरसों का साग खाया जाता है। प्रत्येक शहरों और कस्बों में, सुबह से ही लोग गुरुद्वारों में पूजा-अर्चना करने लगते हैं तथा शाम को पार्टियों का आनंद लिया जाता है। दिल्ली में, पंजाबी पॉप गाने बजाए जाते हैं। पखवाड़े से पूर्व ही, बाजारों में लोहड़ी/Lohri की धूम होने लगती है तथा बाजार मूंगफली, तिल के लड्डू, रेवड़ी, गजक जैसी सभी चीजों से सज जाते हैं। इन सभी वस्तुओं का उपयोग प्रसाद के रूप में किया जाता है जिसे "तिलचौली" कहा जाता है और अग्नि में जलाकर ईश्वर की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की जाती है।
लोहड़ी की परंपराएं / Tradition of Lohri
1. लोहड़ी पर्व पर दुल्ला भट्टी की कहानी कहने की परंपरा आजकल कम हो गई है।
2. घरों आए बच्चों को तिलचौली उपहार स्वरूप दी जाती है।
3. इन दिनों लकड़ियां खरीदकर और एकत्र करके, सड़कों पर अलाव के रूप में जलाया जाता है।
4. लोहड़ीi की अग्नि में "तिलचौली" को प्रसाद के रूप में जलाया जाता है।
5. लोग आपस में नाचते-गाते हैं तथा पुरुष भांगड़ा करते हैं।
लोहड़ी का पारंपरिक गीत / Traditional song of Lohri
सुंदर सुंदर मुंदरिये, होये
तेरा की विचार, होये
दुल्ला भट्टी वाला, होये
दुल्ले दी धी वायै, होये
सेर शकर पाई, होये
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