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करवा चौथ 2023
करवा चौथ in 2023
01
November, 2023
(Wednesday)

करवा चौथ 2021 व्रत | चंद्रमा पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
24th October
करवा चौथ पूजा मुहूर्त
करवा चौथ 2022 व्रत | चंद्रमा पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
13th October
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करवा चौथ पूजा मुहूर्त
करवा चौथ/Karva chauth दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' जिसका अर्थ है मिट्टी का बरतन और 'चौथ' का अर्थ है महीने का चौथा दिन। इस दिन मिट्टी का बरतन या करवे को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। करवा चौथ का पावन त्यौहार 13 अक्टूबर, गुरुवार के दिन है. इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं। इस साल करवा चौथ के शुभावसर पर एक साथ कई दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। इस दिन शुक्र और बुध के एक ही राशि कन्या में रहने से लक्ष्मी नारायण योग बना रहा है। वहीं बुध और सूर्य भी एक ही राशि में रहकर बुधादित्य योग बना रहे हैं। जबकि शनि स्वराशि मकर और गुरु स्वराशि मीन में रहेंगे। साथ ही चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। कुल मिलाकर ये सभी ग्रह स्थितियां मिलकर अनेक शुभ योगों का निर्माण कर रही है. लिहाजा ऐसी शुभ ग्रह स्थिति में की गई पूजा-पाठ पति-पत्नी के सुख-समृधि और सौभाग्य में वृद्धि करेगी।
करवा चौथ शुभ पूजा मुहूर्त
करवा चौथ शुभ पूजा मुहूर्त(दिल्ली के लिए): 13 अक्टूबर, शाम 05:54 से सायंकाल 07:09 तक
करवा चौथ व्रत समय: 13 अक्टूबर, प्रातः 06:24 से रात्रि 08:10 तक
चंद्रोदय काल (दिल्ली के लिए): 13 अक्टूबर, रात्रि 08:10 पर
उपवास का दिन/ FASTING ON THIS DAY
यह त्योहार कृष्ण पक्ष के चौथे दिन या 'चतुर्थी'/ Krishna Paksha को मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन को अपने पति के लिए व्रत रखकर मनाती हैं। भारतीय महिलाएं इसे बहुत खुशी के साथ मनाती हैं। आजकल इसे विश्व स्तर पर मनाने का चलन हो गया है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह दिन 'पूर्णिमा' के चार दिन बाद मनाया जाता है। यह ज्यादातर अक्टूबर या नवंबर में होता है।
उपवास या व्रत करने की परंपरा का सभी विवाहित महिलाओं द्वारा पालन किया जाता है जिसमें महिलाओं द्वारा भगवान गणेश से, अपने जीवनसाथी की स्वस्थ और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की जाती है। हालांकि, ज्यादातर इसे विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, लेकिन भारत के कुछ क्षेत्रों में ऐसा माना जाता है कि अविवाहिताओं को अपने भावी पति के लिए उपवास रखना चाहिए।
आसमान में चंद्र दर्शन किए बिना, कुछ भी न खाने-पीने के कठोर नियम का पालन करते हुए, विवाहित महिलाओं द्वारा करवा चौथ/ Karwa chauth का व्रत रखा जाता है। चंद्रोदय के बाद, भगवान शिव की उनके संपूर्ण परिवार सहित पूजा करके महिलाएं भोजन ग्रहण कर सकती हैं।
महिलाओं द्वारा मिट्टी के बर्तन/ करवा में जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। ब्राह्मण और अन्य विवाहित महिलाओं द्वारा जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा है। यह पर्व ज्यादातर उत्तर भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। करवा चौथ/Karwa chauth 2021 के ठीक चार दिन बाद, अहोई अष्टमी के दिन माताओं द्वारा अपने पुत्रों के लिए उपवास किया जाता है।
करवा चौथ संबंधित रीति-रिवाज / RITUALS OF KARVA CHAUTH
महिलाओं का पर्व होने के कारण, उन सभी के द्वारा उत्साहपूर्वक इस दिन की पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। कुछ महिलाओं द्वारा साड़ी-लहंगे, मेकअप, झुमके, हार, विभिन्न आभूषण और पूजा का सामान नया खरीदा जाता है और कुछ महिलाओं द्वारा अपनी शादी की चीजों का प्रयोग किया जाता है। महिलाएं अपने हाथों को हिना के विभिन्न डिजाइनों से सजाती हैं, जिसे 'मेहंदी' भी कहा जाता है।
पूरा दिन उपवास होने के कारण, पंजाब जैसे क्षेत्रों में, महिलाएं प्रातः काल 4:00 बजे से पहले जागकर खाती-पीती हैं। उत्तर प्रदेश में, पूर्व संध्या को महिलाओं द्वारा दूध से बनी फरनी को रस्म के तौर खाया जाता है।
पंजाब में, महिलाओं को अपनी सास से सजावटी सामान, मिठाई, साड़ी और अन्य महिला संबंधित सामान सरघी/ sarghi के तौर पर दिए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब कोई महिला अपना पहला करवा चौथ/Karwa chauth रखती है, तो उसकी सास द्वारा उसे सरघी दी जाती है। सरघी नवविवाहिताओं द्वारा, संपूर्ण जीवन अपनी सास के रीति-रिवाजों और परंपराओं का सम्मानपूर्वक पालन करने का प्रतीक होती है।
सूर्योदय से व्रत की शुरुआत होती है तथा महिलाओं द्वारा सामान्य रूप से कार्य करके या मित्रों के साथ अपना दिन व्यतीत किया जाता है। साथ ही, महिलाओं को पतियों और माता-पिता द्वारा भी उपहार दिए जाते हैं।
शाम को, महिलाओं द्वारा सुंदर पोशाकें पहनकर, अन्य महिलाओं के साथ इस त्यौहार का आनंद लिया जाता है और समर्पित भाव से "पूजा-थाली" को सजा कर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसी जगहों पर, महिलाएं अपनी थालियां सजा कर अन्य महिलाओं के समूहों में बैठती हैं, जहां वरिष्ठ महिलाओं या पुजारी द्वारा करवा चौथ कथा का पाठ किया जाता है। ऐसे समूहों में महिलाओं द्वारा अपनी थालियों को एक-दूसरे के साथ, सात बार बदल कर कथा पाठ किया जाता है।
समूहों में पहली छ: फेरियों में गाया जाता है- "वीरों कुण्डियॉ करवा, सर्व सुहागन करवा, ए कात्ती नाया तेरी ना, कुम्भ चकरा फेरी ना, आर पेअर पायेन ना, रुठदा मानियेन ना, सुथरा जगायेन ना,वे वीरों कुरिये करवा, वे सर्व सुहागन करवा"। जबकि सातवीं फेरी में गाया जाता है- "वीरों कुण्डियॉ करवा, सर्व सुहागन करवा, ए कात्ती नाया तेरी नी, कुम्भ चकरा फेरी भी, आर पेअर पायेन भी, रुठदा मानियेन भी, सुथरा जगायेन भी, वे वीरों कुरिये करवा, वे सर्व सुहागन करवा"।
राजस्थान में, परंपरानुसार एक महिला द्वारा अन्य महिलाओं "धापी की न धापी" पूछे जाने पर, अन्य महिलाओं द्वारा "जल से धापी, सुहाग से ना धापी" जवाब दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों में भी गौर माता की पूजा की जाती है। महिलाएं अपने हाथों में मिट्टी लेकर उस पर थोड़ा पानी छिड़ककर, गौर माता की प्रतिमा बनाकर, उस पर कुमकुम लगाती हैं। अपनी थालियों का आदान-प्रदान करते हुए उनके द्वारा ये गाया जाता है- "सदा सुहागन करवा लो, पति की प्यारी करवा लो, सात बहनों की बहन करवा लो, व्रत करनी करवा लो, सास की प्यारी करवा लो"।
पूजा के बाद, उनके द्वारा अपनी सास और भाभी को हलवा, पूरी, नमकीन आदि प्रसाद स्वरूप दिया जाता है।
इस रस्म के बाद महिलाएं बेसब्री से चांद का इंतजार करती हैं। आखिरकार चंद्रोदय होने पर, महिलाओं द्वारा अपने पति के साथ घर के बाहर या छत पर चंद्रमा के स्पष्ट प्रतिबिंब को देखने के लिए छलनी और जल से भरा गिलास ले जाया जाता है तथा चंद्रमा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अर्घ्य देकर पूजन किया जाता है और चंद्रमा के समान ही अपने पतियों की सम्मान और भक्ति के साथ पूजा की जाती है।
इसके साथ ही, उनका उपवास समाप्त होता है। पतियों द्वारा पानी, भोजन, और मिठाई खिलाने के बाद, आखिरकार महिलाओं द्वारा भोजन किया जाता है।
करवा चौथ का आधुनिकीकरण / MODERN DAY KARVA CHAUTH
उत्तर भारत में, आज के समय में इस शुभ दिन की संस्कृति और परम्पराओं में बदलाव आ गया है।
आजकल इस दिन का महत्व दंपत्तियों के बीच प्रेम और स्नेह को दर्शाने के कारण, रोमांटिक माना जाने लगा है जिसका एक बड़ा कारण दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे या कभी खुशी कभी गम जैसी हिंदी फिल्में हैं जिनमें इस पर्व पर दंपत्तियों के दूर होने पर गीत और नृत्य द्वारा एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रदर्शित किया जाता है। आजकल, यह दिन अविवाहित महिलाओं द्वारा प्रेम की निशानी के रूप में अपने मंगेतर या भावी पति के लिए मनाया जाने लगा है।
करवा चौथ की पारंपरिक लोक कथा / The Traditional Folk Tale of Karva Chauth
एक बार की बात है, सात भाइयों की बहन राजकुमारी वीरवती विवाह के उपरांत,वफ अपने पहले करवा चौथ पर माता-पिता और भाइयों के साथ रहने के लिए घर वापस आई थी। पूरे दिन निर्जल उपवास करने के कारण, शाम को तबीयत खराब होने और बीमार महसूस करने पर, उसके भाइयों ने चिंतित होकर उसे कुछ खाने की सलाह दी। लेकिन वह अपने पति के लिए व्रत रखने पर अडिग रही इसलिए उसके भाइयों ने पवित्र 'पीपल के पेड़' के शीर्ष पर चंद्रमा का नकली प्रतिबिंब बनाया, जिसे सरलतापूर्वक चंद्रमा का वास्तविक प्रतिबिंब मानकर उसने अपना उपवास तोड़ दिया। तभी अपने पति के निधन की बात पता चलने पर वह उसे सह नहीं सकी और बेकाबू होकर रोने लगी। जब उसे भाभी से, उसकी हालत से चिंतित होकर भाइयों द्वारा चांद का नकली प्रतिबिंब बनाने की बात पता चली तो इस असहनीय दर्द से उसका दिल टूट गया। इस पर उसके सामने 'देवी शक्ति' ने प्रकट होकर रोने का कारण पूछने पर उसने पूरी कहानी सुना दी। तब देवी ने उसे अगले दिन फिर से उपवास रखने का आदेश देकर कहा, यदि वह सफलतापूर्वक ऐसा करेगी, तो यमराज उसके पति को वापस कर देंगें।
यह भी माना जाता है कि उसके भाइयों ने पहाड़ के पीछे आग लगाकर उसे बताया कि यह चंद्रमा की चमक है। इस बात से आश्वस्त होने के परिणामस्वरूप उसने अपना व्रत तोड़ दिया। फिर जब उसे अपने पति की मौत का पता चला तो वह घर की तरफ दौड़ी। मार्ग में उसने शिव-पार्वती को देखा और उन्हें अपनी कहानी सुनाई। उन्होंने उसे पति को वापस पाने के लिए फिर से उपवास रखने की सलाह दी। उसने वैसा ही किया और अपने पति को वापस पा लिया।
करवा चौथ की अन्य कथा / ANOTHER STORY ON KARVA CHAUTH
एक बार की बात है, पति के प्रति पूर्ण समर्पित करवा नाम की एक महिला थी। इस समर्पण और भक्ति के कारण, उसे एक आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त थी। एक दिन झील में नहाते समय उसके पति को एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। करवा ने अपने पति को घातक उभयचर से छुड़ाने के लिए सूती धागे का इस्तेमाल करके यम से उस मगरमच्छ को नरक में फेंकने के लिए कहा। यम मगरमच्छ के साथ ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन स्त्री की आध्यात्मिक शक्तियों से श्राप मिलने की संभावना के कारण उनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं था। इसके बजाय वह स्वयं अपने और अपने पति को लंबा जीवन दे सकती थी। इस दिन के बाद से, सभी विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति के स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए करवा चौथ/ Karwa chauth मनाया जाता है। उनका विश्वास है कि यह उनके पति की रक्षा करता है।
करवा चौथ विधि / KARVA CHAUTH METHOD
पूजन शुरू होने से पहले, गणेश जी, अंबिका गौरी मां, श्री नंदीश्वर, मां पार्वती, भगवान शिव और श्री कार्तिकेय की प्रतिमाएं तथा बर्तन, दीपक, कपूर, काजल, चंदन, फल, मिठाई, घी का दीया, धूप आदि पूजन सामग्री का होना आवश्यक होता है।
सांयकाल, महिलाएं पोशाकें पहनकर अपने मित्रों या रिश्तेदारों के यहां जाती हैं, जहां महिलाओं द्वारा एक साथ बैठकर कथा सुनी जाती है। ज्यादातर कथा किसी बुजुर्ग महिला या पुजारी द्वारा कहीं जाती है।
भगवान गणेश के प्रतिबिंब स्वरुप बीच में गेहूँ से भरा मिट्टी का बर्तन स्थापित करके, एक बर्तन में जल और कुछ फल माता पार्वती की प्रतिमा के पास रखे जाते हैं, जिसके चारों ओर मिठाई, मट्ठी, फल और खाद्यान्न रखे होते हैं।
कथा सुनाने वाली महिला के लिए भी कुछ चीजें तोहफे के रूप में दी जाती हैं।
पहले, गौरी माता की प्रतिमा तैयार करने के लिए मिट्टी और गाय के गोबर का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन आजकल ज्यादातर महिलाओं द्वारा धातु या कागज की मूर्ति पसंद की जाती है। कथा सुनने से पहले, महिलाओं द्वारा थालियों में दीया जलाया जाता है तथा सुंदर कपड़े पहनकर सिर पर दुपट्टा ओढा जाता है। विवाहित महिलाएं दुपट्टा ओढ़ती हैं। देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए उनका पूजन किया जाता है तथा समूहों में एक साथ कथा/Karva Chauth Katha गाकर, अपनी थाली को सात बार घुमाकर फरनी नामक क्रिया की जाती है। इस कार्यक्रम के बाद, घर और पड़ोस के सभी बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
सरघी क्या है?/ WHAT IS SARGI?
सरघी एक विशेष आहार होता है जो महिलाओं को उनकी सास द्वारा दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को सूर्योदय से पूर्व प्रातः काल चार या पांच बजे सरघी का सेवन करना चाहिए। सास के न होने की स्थिति में परिवार की बुजुर्ग महिला द्वारा सरघी दी जा सकती है। सरघी में काजू, बादाम, किशमिश, फल, मिठाई, सेवइयां जैसी विभिन्न खाद्य सामग्री होती हैं जिनके सेवन से बिना कुछ खाए-पिए पूरा दिन बिताने की शक्ति मिलती है।
मेहंदी का क्या महत्व होता है?/ WHAT IS THE IMPORTANCE OF MEHNDI?
मेहंदी सौभाग्य का प्रतीक होती है। भारत में, यह माना जाता है कि मेहंदी जितनी गहरी रचेगी, पति और ससुराल पक्ष से उतना ही अधिक प्रेम मिलेगा। यह भी कहा जाता है कि मेहंदी का गहरा रंग पति के स्वस्थ और लंबे जीवन का प्रतीक होता है। त्योहारों के दौरान, मेहंदी के स्टॉल्स पर महिलाओं के पहुंचने से, मेहंदी का कारोबार बढ़ रहा है। करवा चौथ के दौरान, मेहंदी स्टाल के आस पास हमेशा भीड़ देखने को मिलती है ।
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