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March, 2023
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क्या, कब और कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा | जानिए महत्व और इतिहास
13th April
गुड़ी पड़वा समय
क्या, कब और कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा | जानिए महत्व और इतिहास
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गुड़ी पड़वा समय
हिंदू नववर्ष की शुरुआत और चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। जहां 'गुड़ी' शब्द विजय पताका से संबंध रखता है वहीं, संस्कृत शब्द 'पड़वा' चन्द्रमास के पहले दिन को दर्शाता है। इस दिन घरों के बाहर विजय, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीकस्वरूप बांस की छड़ी पर रेशमी कपड़ा बांधकर, उसके ऊपर तांबे या चांदी के पात्र को माला पहनाकर फहराते हैं जिसे गुड़ी कहा जाता है। गुड़ी पड़वा का महत्व हिंदू पुराणों पर आधारित है जिसके अनुसार, इस दिन ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की थी और इसी दिन भगवान राम, रावण को हराकर अयोध्या लौटे थे इसलिए भगवान राम की विजय पताका के रूप में, घरों के बाहर गुड़ी ध्वज फहराया जाता है। इस दिन घरों को रंगोली और फूलों से सजाया जाता है। जहां, महिलाएं पारंपरिक साड़ी और पुरुष कुर्ता-पायजामा या धोती पहनते हैं वहीं पूरन पोली, श्रीखंड, और पूड़ी-भाजी जैसे पकवान बनाए जाते हैं। साथ ही, आगामी वर्ष की सफलता और समृद्धि का आशीर्वाद पाने के लिए, लोगों द्वारा मंदिरों में जाकर ईश्वर की पूजा की जाती है। यह त्योहार महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे भारत के अन्य हिस्सों में भी उत्साह के साथ मनाया जाता है। एक नई शुरुआत, आशा और सकारात्मकता का प्रतीक यह त्योहार, लोगों को एक-दूसरे के पास लाकर प्रेम, सम्मान और एकता के बंधन को मजबूती भी प्रदान करता है।
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गुड़ी पड़वा का महत्व/ Importance of Gudi Padwa
हिंदू कैलेंडर में, गुड़ी पड़वा को एक महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है और इसके पीछे कई पौराणिक महत्व छिपे हैं, जैसे:
नववर्ष का दिन/ New Year's Day: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गुड़ी पड़वा हिंदू नववर्ष की शुरुआत के साथ ही, जीवन का नया चक्र मनाने का उत्सव है। इस समय, लोग पिछले वर्ष का चिंतन करके आने वाले नववर्ष का नए संकल्पों, आशाओं और उत्साह के साथ एक नई शुरुआत करते हैं।
विजय और सौभाग्य/ Victory and Good Luck: बुराई पर अच्छाई की जीत से संबंधित इस पर्व को लेकर यह माना जाता है कि इस दिन भगवान राम, रावण को हराकर अयोध्या लौटे थे और लोगों ने गुड़ी फहराकर उनका स्वागत किया था इसलिए गुड़ी को विजय, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए लोग बुराई को दूर करने और जीवन में सौभाग्य और समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए, घरों के बाहर गुड़ी फहराते हैं।
सांस्कृतिक महत्व/ Cultural Significance: हिंदू पुराणों और संस्कृति पर आधारित यह एक ऐसा अवसर होता है जब लोग अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को मनाने के लिए एक साथ आते हैं। इस दिन, लोग अपने घरों को रंगोली और फूलों से सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और विशेष पकवान बनाते हैं तथा आगामी वर्ष की सफलता के लिए, मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा करते हैं।
एकता और मित्रता/ Unity and Togetherness: गुड़ी पड़वा का त्योहार लोगों को एक साथ लाकर प्रेम, सम्मान और एकता के बंधन को मजबूत करता है। इस पर्व पर सभी परिवार और मित्र एक साथ मिलकर अपनी खुशियां और आनंद साझा करते हैं। इसी के साथ, लोग बधाईयों और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं जिससे समुदायिक एकता और मित्रता की भावना में वृद्धि होती है।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी अन्य मान्यताएं: गुड़ी पड़वा से जुड़ी एक लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, इस दिन कुम्हार-पुत्र शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना के साथ अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त की थी जिससे शालिवाहन शक की शुरुआत हुई। कुछ लोग, छत्रपति शिवाजी की विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी ध्वज फहराते हैं। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड का निर्माण किया था इसलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज या इंद्रध्वज के नाम से भी जाना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, रामायण काल में भगवान श्रीराम ने लोगों को इस दिन वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से मुक्त कराया था जिस कारण, वहां के लोगों द्वारा अपने घरों में विजय पताका फहराई गई थी जो आज भी किया जाता है। इसी कारण, इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि गुड़ी फहराने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। गुड़ी को धर्म-ध्वज के रूप में भी माना जाता है। इसके प्रत्येक भाग का एक विशिष्ट अर्थ होता है जिसमें उल्टा बरतन, सिर और और छड़ी, मेरुदंड का प्रतिनिधित्व करती है। किसानों द्वारा, इस दिन को रबी की फसल के अंत और नई फसल के मौसम की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। वे इस दिन अच्छी फसल के लिए अपने खेतों की जुताई करते हैं। हिंदुओं में, पूरे वर्ष में साढ़े तीन मुहूर्त शुभ माने जाते हैं जिसमें गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा पूर्ण और दिवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है।
गुड़ी पड़वा से संबंधित इतिहास/ History related to Gudi Padwa
1679 में मुगल सम्राट औरंगजेब पर मराठा शासक शिवाजी की विजय, इस पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिवाजी ने मुगलों पर अपनी विजय को प्रकट करने के लिए, रायगढ़ के अपने महल पर केसरिया ध्वज फहराया था जिसे गुड़ी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि तभी से इस दिन गुड़ी फहराने की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम के लंका के राक्षसराज रावण को हराने के बाद अयोध्या लौटने से संबंधित है। दंतकथा के अनुसार, अयोध्या के लोगों ने भगवान राम की घर वापसी को, सोने और चांदी से बने ध्वज को फहराकर मनाया था जिसे गुड़ी की उत्पत्ति माना जाता है। इन ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं के अलावा, यह पर्व कृषि कार्यों से भी संबंधित है। फसलों की कटाई की शुरुआत पर आधारित इस पर्व को, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। लोग अपने घरों को साफ करके, फूलों और रंगोली से सजाते हैं और पूरन पोली, श्रीखंड और आमरय जैसे विशेष व्यंजन तैयार करते हैं।
गुड़ी पड़वा की पूजन-विधि/ Puja-Vidhi of Gudi Padwa
तैयारी/ Preparations: त्योहार से पहले लोग अपने घरों की सफाई करके, रंगोली और फूलों से सजाते हैं। इसके साथ ही, एक लंबी बांस की छड़ी को रेशम या सूती कपड़े से ढककर फूलों की माला, नीम के पत्तों और मिश्री से सजाकर गुड़ी तैयार की जाती है।
पूजा/ Puja: गुड़ी पड़वा के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद गुड़ी की पूजा करके, आमतौर पर गुड़ी को घर या बाहर किसी खिड़की या बालकनी पर स्थापित करते हैं। उसके बाद फूल, मिठाई और अगरबत्ती से उसकी पूजा की जाती है।
आरती/ Aarti: पूजा के बाद, दीपक जलाकर गुड़ी की आरती की जाती है और ईश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए, भजन गाए जाते हैं और मंत्रों का जाप किया जाता है।
प्रीतिभोज/ Feast: इस पर्व पर लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ प्रीतिभोज का आनंद उठाते हैं। इस पर्व पर पूरन पोली, श्रीखंड और आमरस जैसे व्यंजन तैयार करके, गुड़ी को प्रसाद के रूप में अर्पित करने के बाद मेहमानों को परोसा जाते हैं।
शुभकामनाओं का आदान-प्रदान/ Exchange of greetings: इस दिन लोग एक-दूसरे को "गुढीपाडव्याच्या हार्दिक शुभेच्छा" या "नववर्ष आणि गुढी पाडव्याच्या हार्दिक शुभेच्छा" कहकर बधाई और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान प्रदान करते हैं जिसका अर्थ होता है कि "गुड़ी पड़वा की शुभकामनाएं" या "नववर्ष की शुभकामनाएं"।
इस दिन नए साल की शुरुआत पर लोग विभिन्न अनुष्ठान और समारोह करते हैं जिसमें फल श्रवण भी सम्मिलित होता है। इसमें आगामी वर्ष का राशिफल पढ़ना, तेल अभ्यंग लेना या तेल से स्नान करना और निम्बा या नीम के पत्तों का सेवन करना शामिल होता है। यह दिन ध्वजारोहण, चैत्र नवरात्रि का पालन करने के लिए घट स्थापना करने के लिए भी जाना जाता है। पूजा के दौरान, ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए कुछ विशिष्ट मंत्रों का जाप भी किया जाता है तथा इस शुभ दिन पर, कुछ लोग उपवास भी करते हैं।
प्रात: व्रत संकल्प/ Morning Vrat Sankalp: "ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजः श्रीब्रह्मणः प्रसादाय व्रतं करिष्ये।"
गुड़ी पड़वा की पूजा की शुरूआत इस मंत्र के जाप से की जाती है। चैत्र माह के पहले दिन इस मंत्र को पढ़ने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। इसके अलावा, उपवास करने वालों को इस मंत्र का जाप करना चाहिए
"ॐ चतुर्भिर्वदनैः वेदान् चतुरो भावयन् शुभान्।
ब्रह्मा मे जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत्।।"
ब्रह्मा जी की स्तुति करने वाले इस मंत्र से जीवन में शांति और समृद्धि बनी रहती है।
गुड़ी पड़वा मनाने की विधि/ The Vidhi of Observing Gudi Padwa
लोगों के जीवन में आशा और सकारात्मकता लाने और नए साल की शुरुआत में मनाया जाने वाले इस त्योहार को मनाने की विधि में घर की सफाई और सजावट से लेकर गुड़ी तैयार करना, पूजा करना, मंदिरों में जाना, मिठाईयां बांटना और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना शामिल होता है। प्रातःकाल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है। लोग घरों की सफ़ाई करते हैं और गाँवों में घरों को गोबर से लीपा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए। सूर्योदय के तुरंत बाद गुड़ी की पूजा का विधान है इसलिए इसमें अधिक देरी नहीं करनी चाहिए। चटख रंगों से सुन्दर रंगोली बनाकर, घर को ताज़े फूलों से सजाया जाता है। इस दिन लोग नए और सुंदर वस्त्र पहनकर तैयार होते हैं जिसमें आमतौर पर, मराठी महिलाएँ 9 गज लंबी नौवारी साड़ी पहनती हैं और पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा या धोती-कुर्ता पहनते हैं। सभी परिजन इस पर्व को इकट्ठे होकर मनाते हैं और एक-दूसरे को नव संवत्सर की बधाई देते हैं। इसके अलावा, इस दिन नए साल का राशिफल सुनने और सुनाए जाने की भी परंपरा होती है। पारंपरिक तौर पर, मीठे नीम की पत्तियाँ प्रसाद के तौर पर खाकर इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत की जाती है। आमतौर पर, इस दिन नीम की पत्तियों, गुड़ और इमली की चटनी बनायी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे खून शुद्ध होता है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है तथा यह चटनी अपने खट्टे-मीठे स्वाद की ही तरह, जीवन के उतार-चढ़ावों को भी दर्शाती है। इस दिन श्रीखण्ड, पूरन पोली, खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं तथा शाम के समय लोगों द्वारा लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी किया जाता है।
गुड़ी की स्थापना कैसे करनी चाहिए/How to Install Gudi
गुड़ी को स्थापित करना इस त्योहार का एक अनिवार्य हिस्सा है। आइए, जानते हैं कि गुड़ी की स्थापना करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
सामग्री एकत्रित करना/ Gather Materials: गुड़ी को स्थापित करने के लिए एक बांस की छड़ी, चमकीला रेशमी कपड़ा, नीम के पत्ते, फूलों की माला और एक मिश्री के टुकड़े की आवश्यकता होती है। साथ ही, गुड़ी को शीशे और मोती जैसे अन्य सजावटी सामानों से भी सजाया जा सकता है।
बांस की छड़ी तैयार करना/ Prepare the Bamboo Stick: इसके लिए, बांस की 5-6 फीट लंबी और 1-2 इंच मोटी छड़ी लेकर, सैंडपेपर से चिकना करके अच्छी फिनिशिंग के लिए पॉलिश करनी चाहिए।
कपड़ा बांधना/ Wrap the Cloth: लगभग 2-3 फीट लंबे और 1.5 फीट चौड़े चमकीले रेशमी कपड़े को, शीर्ष पर लगभग 6 इंच कपड़ा खाली छोड़कर बांस की छड़ी के चारों ओर कसकर बांधना चाहिए।
नीम के पत्ते और माला बांधना/ Tie the Neem Leaves and Garland: अब, बांस की छड़ी के ऊपर नीम के पत्तों का गुच्छा और फूलों की माला बांधें। अतिरिक्त सजावट के लिए माला में थोड़े आम के पत्ते भी बांधे जा सकते हैं।
चीनी क्रिस्टल लगाना/ Add the Sugar Crystal: नीम के पत्तों के शीर्ष पर मिश्री का टुकड़ा बांधकर, उसका सुरक्षित होना सुनिश्चित कर लेना चाहिए।
गुड़ी लगाना/ Display the Gudi: गुड़ी को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर किसी खिड़की या बालकनी में लगाना चाहिए जहां यह आसानी से दिखाई दे। ऐसा माना जाता है कि गुड़ी को इतनी ऊंचाई पर स्थापित करना चाहिए जो कम से कम किसी व्यक्ति की लंबाई से ऊंची हो।
पूजा करना/ Perform Puja: एक बार गुड़ी स्थापित हो जाने के बाद, पूजा या प्रार्थना समारोह करके मंत्र और श्लोकों का पाठ करते हुए, गुड़ी को फूल, फल और मिठाई अर्पित करना चाहिए।
उत्सव मनाना/ Celebrate: पूजा के बाद, परिवार और मित्रों के साथ गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। नए कपड़े पहनने के साथ ही, विशेष पकवान और मिठाइयां बनाई जाती हैं और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लिया जाता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाए जाने वाले गुड़ी पड़वा के इस अवसर पर, घर में पताका और तोरण स्थापित करने की परंपरा होती है। "गुड़ी" शब्द विजय का प्रतीक है इसलिए लोगों द्वारा विजय और सौभाग्य के प्रतीकस्वरूप, अपने घरों में झंडे और अन्य सजावटी सामान लगाए जाते हैं। हालाँकि, लोग इन वस्तुओं को घर में किसी भी दिशा या स्थान पर लगा सकते हैं लेकिन, धार्मिक और वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार, इन्हें दक्षिण-पूर्व कोने यानि आग्नेय कोण में लगाना उचित होता है। अतः, इस दिन पताका स्थापित करने के लिए उचित क्रिया का पालन करना महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए, पांच हाथ ऊँचे खंभे पर डेढ़ हाथ की लाल पताका लगाई जानी चाहिए। इसके अलावा, कुछ लोग तीन कोनों वाली पताका के विकल्प के रूप में, चार कोनों वाले ध्वज को भी स्थापित करते हैं। अंततः, गुड़ी पड़वा के इस अवसर पर, इनमें से किसी की भी स्थापना की जा सकती है।
पताका लगाते समय किस नाम का ध्यान करना चाहिए?/ In whose name should you meditate while installing Pataka?
हिंदू धर्म में, पताका शब्द उस झंडे या बैनर के लिए प्रयोग किया जाता है जो आमतौर पर, धार्मिक पर्व या कार्यक्रमों के दौरान स्थापित किया जाता है। पताका की स्थापना के दौरान, अक्सर आध्यात्मिक ऊर्जाओं का आह्वान किया जाता है। अगर बात इस सवाल की हो कि पताका स्थापित करते समय किसके नाम का ध्यान करना चाहिए तो इसका जबाब, अलग-अलग मान्यताओं और परंपराओं के आधार पर अलग-अलग होता है। हिंदू धर्म में, कई देवताओं की पूजा की जाती है जिसमें प्रत्येक देवता के अलग-अलग गुण और विशेषताएं होती हैं इसलिए पताका की स्थापना के दौरान, आह्वान किए जाने वाले देवता का चयन विशेष पर्व या अवसर के साथ ही, व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, देवी दुर्गा के पूजन को समर्पित नवरात्रि के त्योहार के दौरान, पताका स्थापित करते समय उनके नाम का ध्यान किया जा सकता है और रोशनी के पर्व दीवाली के दौरान, पताका स्थापित करते समय भगवान राम या देवी लक्ष्मी के नाम का ध्यान किया जा सकता है। कुछ मामलों में, लोग अपने किसी सम्मानित गुरु या आध्यात्मिक शिक्षक या किसी विशेष संत या पवित्र व्यक्ति के नाम का चयन भी कर सकते हैं। कहने का अर्थ यह है कि पताका स्थापित करते समय, ध्यान करने के लिए नाम का चयन व्यक्तिगत मान्यताओं और आध्यात्मिक कार्यों पर निर्भर करता है।
गुड़ी पड़वा पर बनने वाले व्यंजन/ Dishes made on Gudi Padwa
हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है गुड़ी पड़वा। आमतौर पर मार्च या अप्रैल माह में महाराष्ट्र और देश के कुछ अन्य हिस्सों में मनाया है। गुड़ी पड़वा का पर्व पारंपरिक पकवानों के बिना अधूरा है। इस शुभ दिन पर कुछ पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं जो इस पर्व के आनंद को दुगुना कर देते हैं:
पूरन पोली/ Puran Poli: प्रसिद्ध और पारंपरिक महाराष्ट्रीयन व्यंजनों में से एक पूरन पोली को पीले चने, इलायची, गुड़ और नारियल का प्रयोग करके बनाया जाता है जो अक्सर, गुड़ी पड़वा जैसे त्योहारों के दौरान बनाया जाता है।
श्रीखंड/ Shrikhand: श्रीखंड दही से बनने वाली एक मिठाई है जो महाराष्ट्रीयन परंपरा के अनुसार, गुड़ी पड़वा पर बनने वाला आवश्यक व्यंजन है। केसर, इलायची और अन्य मसालों के स्वाद के साथ बनने वाले इस व्यंजन को पूड़ी या चपाती के साथ परोसा जाता है।
पूड़ी भाजी/ Poori Bhaji: पूड़ी भाजी महाराष्ट्र का एक लजीज व्यंजन है। इस मसालेदार डिश को तैयार करने के लिए उबले हुए आलू की आवश्यकता होती है जिसे बनाने के लिए मसले हुए आलू में सरसों, करी पत्ते, और हींग का उपयोग मसालों के रुप में किया जाता है। साथ में, पूड़ी एक गहरी तली हुई रोटी होती है जिसे गेहूं के आटे से बनाया जाता है।
खीर/ Kheer: खीर, चावल से बनने वाला व्यंजन है जो दूध, चीनी, इलायची और केसर के साथ बनाया जाता है। यह भारत में एक लोकप्रिय मिठाई है जो अक्सर, त्योहारों के दौरान बनाई जाती है।
आमरस/ Aamras: ताजे पके आमों से तैयार किया जाने वाला आमरस एक मीठा व्यंजन है जिसे पके हुए आम के गूदे को चीनी, और दूध के साथ मिलाकर बनाया जाता है।
इसके अलावा, एक विशेष थाली भी तैयार की जाती है जिसमें ताज़े फल और सब्जियों के साथ तरह-तरह के मीठे और नमकीन व्यंजन शामिल होते हैं। कुल मिलाकर, गुड़ी पड़वा नव संवत्सर मनाने और प्रियजनों के साथ आनंद और खुशियां साझा करने का समय होता है जिसमें पकवान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गुड़ी पड़वा भारत के किन राज्यों में मनाया जाता है?/ In which states of India is Gudi Padwa celebrated?
मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला यह पर्व, भारत के कुछ अन्य हिस्सों में अलग-अलग नामों और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जैसे -
महाराष्ट्र/ Maharashtra: गुड़ी पड़वा, बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाने वाला महाराष्ट्र का एक प्रमुख त्योहार है जिसमें लोग अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं और अपने घरों के बाहर एक विशेष ध्वज गुड़ी फहराते हैं तथा परिवार और मित्रों के साथ विशेष व्यंजनों का आनंद उठाते हैं।
गोवा/ Goa: गोवा में गुड़ी पड़वा को संवत्सर पड़वो के रूप में जाना जाता है और महाराष्ट्रीयन रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुरूप ही मनाया जाता है। लोग पूरन पोली जैसी विशेष मिठाइयां बनाते हैं और भगवान ब्रह्मा की पूजा करते हैं।
कर्नाटक/ Karnataka: कर्नाटक में यह पर्व युगाडी के रूप में मनाया जाता है जिसका अर्थ है "एक नए युग की शुरुआत"। इसमें घरों को आम के पत्तों से सजाते हैं और मीठी रोटी होलीगे और एक तरह का मीठा भरवां पैनकेक ओबट्टू जैसे विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना/ Andhra Pradesh and Telangana: कर्नाटक के युगाडी के समान ही, इन राज्यों में यह पर्व उगाड़ी के रूप में मनाया जाता है। इसमें इमली के बने चावल पुलीहोरा और मीठी भरवां रोटी बोबटलू जैसे व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
तमिलनाडु/ Tamil Nadu: तमिल नववर्ष की शुरुआत के प्रतीकस्वरूप, गुड़ी पड़वा को पुथंडु के रूप में मनाया जाता है। इसमें कच्चे आम से बनने वाली खट्टी-मीठी मांगा पचड़ी जैसा विशेष व्यंजन बनाया जाता है और भगवान ब्रह्मा की पूजा की जाती है।
गुड़ी पड़वा पर सभी राशियों का भविष्यफल/ Predictions for all zodiac signs on Gudi Padwa
मेष/ Aries: मेष राशि वाले गुड़ी पड़वा पर ऊर्जावान और आशावादी बने रहेंगे। यह समय नए लक्ष्य निर्धारित करने और नई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अच्छा रहने वाला है। साथ ही, इस राशि वालों को अपने कठोर परिश्रम और उपलब्धियों के लिए पहचाना जा सकता है।
वृषभ/ Taurus: वृषभ राशि वालों को जीवन में स्थिरता और सुरक्षा की भावना का अनुभव होगा क्योंकि यह घर और परिवार पर ध्यान देने और भविष्य के लिए योजनाएँ बनाने के लिए अच्छा समय है। इसके अलावा, इस राशि वालों को कोई खुशखबरी या निमंत्रण प्राप्ति हो सकता है।
मिथुन/ Gemini: मिथुन राशि वाले व्यक्ति रचनात्मकता से प्रेरित रहेंगे क्योंकि यह कला, लेखन या संगीत के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए एक अच्छा समय है। साथ ही, प्रियजनों के साथ कुछ महत्वपूर्ण चर्चाएं भी हो सकती हैं।
कर्क/ Cancer: इस पर्व के दौरान, कर्क राशि वालों को गहन भावनात्मक और आत्मनिरीक्षण की भावना का अनुभव हो सकता है जिसके चलते, ऐसे व्यक्ति एकांत में अपने रिश्तों और व्यक्तिगत लक्ष्यों पर विचार करने में समय व्यतीत कर सकते हैं। आत्म-सुधार के लिए यह एक अच्छा समय है।
सिंह/ Leo: गुड़ी पड़वा के इस पर्व पर, सिंह राशि वाले उत्साह और आत्मविश्वास से भरे रहेंगे। साथ ही, यह समय अपने जुनून को आगे बढ़ाने और जोखिम उठाने के लिए अच्छा रहने वाला है। इसके अलावा, किसी शुभ समाचार या नए अवसरों की भी प्राप्ति हो सकती है।
कन्या/ Virgo: कन्या राशि वालों के जीवन में सामंजस्य और संतुलन की भावना बनी रहेगी। स्वास्थ्य और सेहत पर ध्यान देने के साथ ही, भविष्य संबंधी योजनाओं को बनाने का यह एक अच्छा समय है। वहीं, आर्थिक लाभ होने की भी संभावनाएं बनी हुई हैं।
तुला/ Libra: इस पर्व के दौरान, तुला राशि वालों में सामाजिक मेल और सद्भाव की भावना बनी रहेगी तथा मित्रों और परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत होगा। इसके साथ ही, कुछ अप्रत्याशित निमंत्रण या अवसरों की प्राप्ति भी हो सकते है।
वृश्चिक/ Scorpio: इस दौरान, वृश्चिक राशि वालों की आत्मशक्ति में बदलाव आ सकता है। यह लक्ष्यों और महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने का उचित समय है। इसके अलावा, किसी महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत करने के लिए अच्छा समय है।
धनु/ Sagittarius: धनु राशि वालों के जीवन में नए जोश और रोमांच की भावना उत्पन्न होगी जिससे नई चीजों को आजमाने और अपनी सीमाओं को व्यापक बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही, कुछ शुभ समाचार या अवसर भी मिल सकता है।
मकर/ Capricorn: इस दौरान, मकर राशि वालों में व्यवहारिकता और अनुशासन बना रहेगा जिससे यह करियर और आर्थिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें हासिल करने के लिए अच्छा समय रहने वाला है। वहीं, अपने प्रयासों के लिए किसी ईनाम की भी प्राप्ति हो सकती है।
कुंभ/ Aquarius: कुंभ राशि वालों में स्वतंत्रता और नवीनता की भावना बनी रहेगी जिसके चलते, नई सोच के साथ अपने अनूठे विचारों को आगे बढ़ाने का यह एक अच्छा समय है। साथ ही, किसी का अप्रत्याशित सहयोग या पहचान भी मिल सकती है।
मीन/ Pisces: इस दौरान, मीन राशि वालों में अंतर्ज्ञान और करुणा की भावना बनी रहेगी। आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही, आत्मज्ञान से जुड़ने का यह एक अच्छा समय है जिसमें इन लोगों को किसी गुरु या शिक्षक से, मार्गदर्शन या सहयोग भी मिल सकता है।
क्या करें / Do's
1. इस पर्व पर पूजा का शुभ संकल्प लेने के बाद, नवनिर्मित चौकी या रेत की वेदी पर एक साफ सफेद कपड़ा बिछाकर, उस पर केसरिया रंग की हल्दी से अष्टदल का कमल बनाना चाहिए और उस पर ब्रह्माजी की सुवर्णमूर्ति स्थापित करनी चाहिए।
2. गणेशम्बिका का पूजन करने के बाद 'ॐ ब्रह्मणे नम:' मंत्र से ब्रह्माजी की पूजा और षोडशोपचार करना चाहिए।
3. 'भगवानसत्वप्रसादेन वर्षा क्षेममिहस्तु मे संवत्सरोपसर्ग मे विलायम यंतवशेषतः' बोलते हुए सनातन बाधाओं के नाश और वर्ष के कल्याण के लिए ब्रह्माजी से विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करनी चाहिए।
4. पूजा के बाद स्वयं भोजन करने से पहले, ब्राह्मणों को शुद्ध और सात्विक भोजन कराना चाहिए।
5. नए कैलेंडर से आने वाले नववर्ष से जुड़ी भविष्यवाणी सुननी चाहिए।
6. अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा और प्याऊ की स्थापना करनी चाहिए।
7. इस दिन नए वस्त्र धारण करके घर को ध्वज, पताका, वंदनवार आदि से सुसज्जित करना चाहिए।
8. साथ ही, नीम के पत्तों और फूलों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री और अजवायन डालकर भोजन करना चाहिए क्योंकि इससे स्वस्थ जीवन को बढ़ावा मिलता है और रक्त विकार नहीं होता।
9. नवरात्रि के इस दिन घट स्थापना और तिलक व्रत करना चाहिए तथा किसी नदी, सरोवर या घर की पूजा करने के साथ ही, संवत्सर की मूर्ति बनाकर 'चैत्राय नमः', 'वसंताय नमः' आदि मंत्रों से उसकी पूजा करनी चाहिए।
10. शुभकामनाओं का फल पाने के लिए, नवमी का व्रत करने के बाद मां जगदंबा की पूजा करनी चाहिए।
क्या न करें / Don’t
1. इस शुभ दिन मांसाहारी भोजन और मदिरा पान नहीं करना चाहिए।
2. अभद्र भाषा का प्रयोग या बहस करने से बचना चाहिए क्योंकि यह दुर्भाग्य लाता है।
3. गुड़ी पड़वा के दिन ना तो किसी तरह का कोई बड़ा आर्थिक निर्णय लेना चाहिए और ना ही किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहिए क्योंकि यह अशुभ माना जाता है।
4. इस दिन ना तो पैसे उधार देने चाहिए और ना ही उधार लेने चाहिए क्योंकि यह भविष्य में आर्थिक समस्याएं उत्पन्न करता है।
5. इस दिन नाखून या बाल काटने से भी बचना चाहिए क्योंकि यह दुर्भाग्य और नकारात्मक ऊर्जा लाता है।
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- कृष्ण जन्माष्टमी 2023
- गणेश चतुर्थी 2023
- गांधी जयंती 2023
- दुर्गा विसर्जन 2023
- दशहरा 2023
- करवा चौथ 2023
- अहोई अष्टमी 2023
- धनतेरस 2023
- दिवाली 2023
- नरक चतुर्दशी 2023
- भाई दूज 2023
- गोवर्धन पूजा 2023
- छठ पूजा 2023
- देव उठानी एकादशी 2023
- तुलसी विवाह 2023
- गुरु नानक जयंती 2023
- वट सावित्री व्रत पूजा 2023
- नरसिम्हा जयंती 2023
- अक्षय तृतीया 2023
- राम नवमी 2023
- देवी सिद्धिदात्री 2023
- देवी महागौरी 2023
- देवी कालरात्रि 2023
- देवी कात्यायनी 2023
- देवी स्कंदमाता 2023
- देवी कुष्मांडा 2023
- देवी चंद्रघंटा 2023
- देवी ब्रह्मचारिणी 2023
- देवी शैलपुत्री 2023
- चैत्र नवरात्रि 2023
- गुडी पडवा 2023
- होली 2023
- होलिका दहन 2023
- महा शिवरात्रि 2023
- गणतंत्र दिवस 2023
- बसंत पंचमी 2023
- पोंगल 2023
- मकर संक्रांति 2023
- लोहड़ी 2023
- संकष्टी चतुर्थी 2023
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