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भारत में मनाए जाने वाले सभी पर्व किसी न किसी रूप में बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देते हैं, लेकिन वास्तव में दशहरे का त्यौहार इसके लिए जाना जाता है। यह पर्व दीपावली से ठीक बीस दिन बाद मनाया जाता है। पंचाग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को पूरे देश में विजयदशमी या दशहरा मनाया जाता है। दशहरा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार भगवान श्री राम की कथा बताता है, जिन्होंने नौ दिनों के युद्ध के पश्चात लंका में अभिमानी रावण को पराजित किया और माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया। उसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था। इसलिए, इसे विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन देवी दुर्गा की भी आराधना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने भी देवी दुर्गा की पूजा कर उनसे शक्ति की याचना की। श्री राम की परीक्षा लेने के लिए, देवी ने पूजा के लिए रखे फूलों में से एक कमल का फूल हटा दिया। श्री राम राजीवनयन के नाम से जाने जाते हैं , जिसका अर्थ है कमल के सामान नयनों का स्वामी। इसलिए, उन्होंने अपनी एक आंख देवी को अर्पण करने का निर्णय किया। जैसे ही वह अपनी आंख निकालने वाले थे , देवी दुर्गा प्रसन्न हो गईं; वह उनके समक्ष प्रकट हुई और श्री राम को विजय का आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि इसके पश्चात दशमी के दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। रावण पर भगवान राम और महिषासुर दानव पर देवी दुर्गा की जय का यह पर्व सम्पूर्ण देश में बुराई पर अच्छाई तथा अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है। इसे मनाने की विभिन्न शैलियाँ देश के अलग-अलग भागों में भी विकसित हुई हैं। कुल्लू का दशहरा देश भर में प्रसिद्ध है; पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा सहित कई राज्यों में दुर्गा पूजा भी भव्यता से मनाई जाती है।
विजयदशमी / दशहरा का महत्त्व/Importance of Vijayadashami/Dussehra
विजयदशमी / दशहरा का त्योहार बदी पर नेकी की जीत को दर्शाने के लिए मनाया जाता है। दशहरे के इस पर्व को विजय उत्सव के रूप में मनाया जाता है, परन्तु उत्सव के पीछे की मान्यताएं भिन्न हैं। उदाहरण हेतु , किसानों के लिए, यह नई फसलों के लहलहाने का उत्सव है। प्राचीन काल में इस दिन औज़ारों और शस्त्रों का पूजन किया जाता था , क्योंकि पौराणिक काल में लोग औजारों और शस्त्रों को युद्ध में विजय के तौर पर देखते थे। फिर भी, इन सबके पीछे का मुख्य कारण "बुराई पर अच्छाई की जीत" है। वर्तमान समय में यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। बुराई किसी भी रूप में हो सकती है जैसे क्रोध, झूठ, घृणा, ईर्ष्या, उदासीनता आदि। हमें अपने भीतर की बुराई को नष्ट करके विजयदशमी / दशहरा का पर्व मनाना चाहिए ताकि एक दिन हम अपनी सभी इंद्रियों पर शासन पा सकें।
विजयादशमी: जानिए रामचरित मानस में क्या लिखा है?/ Vijayadashmi: Know What is Written in Ramacharitra Manas
हर वर्ष धूम- धाम के साथ मनाया जाने वाले विजयदशमी के त्योहार को केवल राम-रावण युद्ध से सम्बंधित नहीं माना जाना चाहिए। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस पर्व में छिपे संदेश समाज के लिए एक दिशा प्रशस्त कर सकते हैं। महापंडित दशानन स्वयं भली-भांति जानते थे कि राम के द्वारा उनकी जीवन लीला का अंत निर्धारित है। वहीं मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी रावण की बुद्धि और कौशल को नमन किया।
रामचरित मानस में राम का चरित्र बेहतरीन तरीके से वर्णित किया गया है, वहीं हम रावण के जीवन में अपने ज्ञान और नेतृत्व क्षमता पर गर्व का अवलोकन भी देखते हैं। रावण बुद्धिमान होने के साथ-साथ अत्यंत पराक्रमी भी था, लेकिन वानर राज बाली ने इस अभिमानी का दमन किया और लंकेश को उसे छह माह तक अपनी काख में दबा कर रखा।
लंका पर शासन करने वाले रावण ने भी अपने सौतेले भाई कुबेर को धोखा दिया और उसके पुष्पक विमान पर आधिपत्य जमा लिया। इन सब बुराइयों के कारण वह मृत्यु को प्राप्त हुआ । हम हर वर्ष रावण रूपी अहंकार का पुतला जलाकर पर्व मनाते हैं, लेकिन हम अपने अहंकार का त्याग करने को तैयार नहीं हैं। इस प्रकार विजयादशमी का पर्व मनाने से क्या लाभ?
अपने अंदर छिपी चेतना को जागृत करना और अहंकार का त्याग करना विजयदशमी के पर्व का प्रमुख संदेश है। आज हम अपनी चेतना और ऊर्जा को सही दिशा प्रदान करने के लिए समस्याओं से ग्रसित हो गए हैं। रावण के अत्याचारों से त्रस्त लोगों को सुख प्रदान करने के लिए ही भगवान राम का जन्म हुआ था।
हम सभी इस बात से अवगत हैं कि राम का जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। जबकि, रावण ब्राह्मण कुल से था और एक महान, वेदों और पुराणों के ज्ञाता ऋषि का पुत्र था। रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य को भी भगवान के समान ही माना जाता था। राम-रावण युद्ध के दौरान राम के हृदय में कहीं न कहीं रावण के प्रति सहानुभूति थी।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम इस बात से अवगत थे एक कि ब्राह्मण को मारना पाप है। इसलिए, उन्होंने रावण को मारने के बाद ब्राह्मणों के वध का प्रायश्चित किया और प्रार्थना की, कि उनका इस पाप का भागी बनाना सर्व-साधारण की रक्षा के लिए आवश्यक था; तो ईश्वर उन्हें इस पाप से मुक्त करें।
इस युग में यह बात भी जानने योग्य है कि रावण की मृत्यु के पश्चात भगवान राम ने स्वयं अपने छोटे भाई लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्ति के लिए रावण के पास भेजा था। फिर भी अपनी अंतिम सांस ले रहे रावण ने लक्ष्मण की ओर दृष्टि तक नहीं डाली । बाद में, मर्यादा पुरुषोत्तम ने स्वयं रावण से हाथ जोड़कर ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध किया, और रावण ने अपना अहंकार त्यागकर ज्ञानोपदेश दिया।
दशहरा या विजयदशमी का पर्व हमें दस प्रकार के पापों से दूर रहने का संदेश देता है। यह पर्व हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, नशा, मत्सर, अभिमान, आलस्य, हिंसा और चोरी से दूर रहने की प्रेरणा देता है। यदि हम उत्साह के साथ रावण के पुतले को जलाते हैं, तो इन दस पापों को आग में दाह कर देना चाहिए , तभी हमारा इस विजयी पर्व को मनाने का उद्देश्य पूर्ण हो सकता है।
केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे, नाचने ,गाने, आतिशबाजी को ही विजयदशमी उत्सव का प्रतीक नहीं माना जाना चाहिए। इस पर्व की निहित संदेश लोगों तक पहुंचना चाहिए, और हर घर में शांति और खुशी होनी चाहिए। यही इस पर्व का संदेश है। दशहरे का नाम विजयदशमी होने के पीछे ग्रहों की स्थिति एक प्रमुख कारण है।
शास्त्रों के अनुसार अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को शुक्र के उदय के समय जो मुहूर्त होता है, उसे ज्योतिष की भाषा में विजय मुहूर्त कहा जाता है। ज्योतिष की मानें तो शुक्र के उत्थान का यह समय सर्व सिद्धि दयाक माना जाता है। इसलिए दशहरे को विजय दशमी के नाम से भी जाना जाता है।
दशहरे के पावन अवसर पर शमी के वृक्ष के सोन पत्र के आदान-प्रदान की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। इस परंपरा के पीछे एक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम लंका गमन के समय इस वृक्ष से होकर गुज़र रहे थे, तब इसी वृक्ष ने उनकी विजय की घोषणा की थी।
ऐसा कहा जाता है कि वनवास के चौदहवें वर्ष में अर्जुन ने इसी शमी वृक्ष पर अपना धनुष छिपा कर रखा था। आज भी दशहरे पर हिन्दू धर्म के अनुयायी रावण से शमी वृक्ष के पत्ते प्राप्त कर रावण से ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध करते हैं।
विजय दशमी मनाने का मुख्य कारण चाहे जो भी हो, परन्तु यह निश्चित है कि यह पर्व अभिमान को नष्ट करने और संस्कृति के अनुसार आचरण करने का प्रतीक है। अच्छे व्यवहार को अपनाकर और खुद में व्याप्त बुराई को तिलांजली अर्पित करने को विजयदशमी कहा जा सकता है।
दशहरे का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है/Dussehra Has Huge Importance From Religious Point of View
ऐसा माना जाता है कि इस समय कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। दशहरे के दिन क्षत्रिय वंश में शस्त्रों का पूजन किया जाता है। इस दिन ब्राह्मण ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। वैश्य अपने बही खातों की पूजा करते हैं। बुराई के प्रतीक लंकेश रावण के पुतले को भी देश के विभिन्न हिस्सों में जलाया जाता है। भगवान राम ने रावण का वध किया था। हालाँकि, रावण अभी भी समाज में मुद्रास्फीति, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, लालच , हिंसा, भेदभाव, ईर्ष्या, पर्यावरण प्रदूषण, यौन हिंसा और यौन शोषण जैसे रूपों में विद्यमान है। इसलिए इस दिन हमें अपने अन्दर निहित इन सभी बुराइयों को दूर करना चाहिए।
इसलिए, इस पर्व को विजय दशमी और दशहरा के रूप में जाना जाता है/Hence, it is known as Vijaya Dashami and Dussehra
एक पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण किया था। जब रावण सीता का हरण कर सकता था, उस समय महिलाओं की दुर्दशा की कल्पना करना मुश्किल नहीं है । भगवान राम ने अधर्मी और अन्यायी रावण को युद्ध की चुनौती दी और नारी जाति के सम्मान की रक्षा के लिए दस दिनों तक रावण से युद्ध किया। अश्विन माह की शुक्ल दशमी को भगवान राम ने मां दुर्गा के दिव्य अस्त्र से उसका वध किया था। रावण का अंत दशानन का अंत था। इस पर्व को असत्य पर न्याय और सत्य की विजय के उत्सव के रूप में मनाया गया। इस संग्राम में रावण पर राम की विजय हुई थी। इसलिए इसको विजयदशमी कहा गया। इस दिन दशानन रावण पराजित हुआ था, इसलिए इस दिन को आम भाषा में दशहरा भी कहा जाता है।
देवी दुर्गा ने इस तिथि को विजयदशमी बनाया है/Goddess Durga has made this Tithi as Vijayadashami
दुर्गा सप्तशती का मध्य चरित्र में देवी दुर्गा और महिषासुर वध की कथा है। इस दैत्य ने देवताओं का स्वर्ग से भी पलायन करा दिया। उसके अत्याचारों से पृथ्वी पर त्राही-त्राही मच गई। देवी ने अश्विन मास शुक्ल दशमी तिथि को महिषासुर का वध कर पृथ्वी को पाप के भार से मुक्त किया। देवी की विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने विजया देवी की पूजा की और इसी कारण इस तिथि को विजयदशमी कहा जाता है।
महाभारत काल में सत्य की विजय/The victory of truth in the time of Mahabharata
महाभारत से पहले एक और युद्ध हुआ था, जिसे अकेले अर्जुन ने लड़ा था। एक ओर कौरवों की विशाल सेना थी और दूसरी ओर अर्जुन अकेला था। यह युद्ध इतिहास में विराट युद्ध के नाम से विख्यात है। अपने अज्ञात वास के अंतिम दिनों में, अर्जुन ने राजा विराट के लिए यह युद्ध लड़ा, जिनके राज्य में उन्होंने अपना अज्ञातवास बिताया था। यह कौरवों के असत्य पर पांडवों के धर्म की विजय थी। पांडवों की सफलता के कारण दशहरा को विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है।
इसी देवी के कारण दशहरे का नाम विजयादशमी पड़ा/Dussehra got its name as Vijaya Dashami because of this Goddess.
नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजन होता है। लेकिन योगिनियों की पूजा के बिना देवी की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। इसलिए विजय नक्षत्र में दशमी तिथि को देवी की योगिनी जया और विजया का अश्विन नक्षत्र के शुक्ल पक्ष में आगमन होता है। यह दो योगिनियां अजेय हैं; उन्हें कोई परास्त नहीं कर सकता, इसलिए इन्हें अपराजिता के रूप में भी पूजा जाता है। दशमी तिथि पर विजया देवी के पूजन के कारण दशहरे को विजय दशमी कहा जाता है।
यह पर्व प्राचीन काल से मनाया जा रहा है/Festival is being celebrated since ancient times
पुराने समय में राजघन दशहरा विजय उत्सव के रूप में मनाया जाता था। इस दिन, राजा ने देवी से प्रार्थना की और वह यात्रा के लिए चल पड़ा। विजयदशमी के दिन राजाओं ने अपने शासन क्षेत्र का विस्तार करने को दूसरे देशों पर आक्रमण किया।
दशहरा का महत्व/Importance of the day of Dussehra
ऐसी मान्यता है कि यदि दशहरे के दिन अगर कोई नया कार्य प्रारम्भ किया जाता हैं, तो यह अक्सर फायदेमंद साबित होता है, और इस दिन वाहन, आभूषण और अन्य सामान खरीदना भी शुभ माना जाता है; इससे घर में समृद्धि आती है। यही नहीं, इस दिन शिव पूजन करने से बहुत लाभ मिलता है। इस दिन की गयी प्रार्थना से आपको जीत और सफलता प्राप्त होती है।
दशहरे की पूजन सामग्री/Dussehra Puja Essentials
- दशहरे की मूर्तियाँ
- गाय का गोबर, नींबू
- तिलक, मौली,अक्षत, पुष्प
- नवरात्रों में उगाई गयी जोँ
- केले, मूली, ग्वार फली, गुड़
- खीर, पूड़ी और आपकी पुस्तकें
दशहरा पूजन विधि/Dussehra Puja Vidhi
प्रात:काल स्नान करके गेहूं या चूने से दशहरे की मूर्तियाँ बना लें। इसके बाद गाय के गोबर के नौ गोले बनाएं। अब गाय के गोबर से दो कटोरी बना लें और एक कटोरी में कुछ सिक्के रख दें; दूसरी कटोरी में रोली, चावल, फल और जौ रखें। इसके पश्चात :
पूजा का प्रारभ जल से करें/Start the Puja with water
रोली, चावल, फूल और जौ चढ़ाएं।
मूर्ति पर केला, मूली, ग्वारफली, गुड़ और चावल अर्पित करें ।
इसके बाद:
मूर्ति को धूप और दीप अर्पण करें और किताबों पर पुष्प, जौ, रोली और चावल भी चढ़ाएं।
यह करने के बाद गाय के गोबर के कटोरे में से सिक्के निकाल कर किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें।
ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं, दक्षिणा दें और रावण, दहन के बाद सोन पत्र बांटें और घर के बड़ों और रिश्तेदारों को प्रणाम करें और एक-दूसरे से भेंट करें ।
श्री राम रक्षा स्तोत्र पाठ/Sri Rama Raksha StotraPaath
अगर आप किसी राक्षसी प्रभाव से पीड़ित हैं या कोई अधर्मी आपको सता रहा है तो इस दिन श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। यदि आपके मन में कोई भय है तो इस दिन बगलामुखी अनुष्ठान करें। आपको लाभ होगा। राम मर्यादा की सीमा हैं, इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है । वह शक्ति में विष्णु और क्षमा में पृथ्वी है। वास्तव में, वह साक्षात धर्म की प्रतिमूर्ति है। आज का दिन राम की पूजा के साथ ही उनके चरित्र से कुछ सीखने के लिए शुभ है।
शस्त्र पूजा का महत्व/Importance of Shastra Puja
विजय दशमी पर शत्रु पर विजय पाने के लिए शस्त्र पूजन भी किया जाता है। इस दिन वेदों, गीता और रामायण की पूजा करें क्योंकि यह वह शस्त्र हैं जो आपके आंतरिक और बाहरी शत्रुओं दोनों को परास्त करेंगे। नवरात्र के तुरंत बाद विजयदशमी आती है। इसका दार्शनिक अर्थ है कि नारी पूजा। मातृ शक्ति की पूजा के बिना हम शत्रु पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते। विजयदशमी के इस महापर्व पर श्री राम की पूजा करें। श्री रामचरित मानस का अखंड पाठ करें। सीता राम का कीर्तन करें।
इस दिन कई अन्य पूजाएँ भी की जाती है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है।
सूर्यास्त के बाद जब आकाश में कुछ तारे चमकने लगते हैं, यह समय विजय मुहूर्त कहलाता है। इस समय कोइ भी कार्य अथवा पूजन करने से अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं। ऐसा कहा जाता है की श्री राम ने रावण को परास्त करने के लिए युद्धनाद इसी मुहूर्त में किया था।
दशहरे को वर्ष के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है।यह समय कोई भी काम प्रारम्भ करने के लिए उपयुक्त है। हालाँकि, कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी उपयुक्त हो सकते हैं।
इस दिन क्षत्रिय, योद्धा और सैनिक शस्त्रों का पूजन करते हैं; इस पूजा को आयुध / शास्त्र पूजा भी कहा जाता है। वह इस दिन शमी-पूजन भी करते हैं। प्राचीन काल में राज परिवार और क्षत्रियों के लिए इस पूजा का विशेष महत्त्व था।
ब्राह्मण इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करते हैं
वैश्य अपने बहि-खाते की पूजा करते हैं।
कई स्थानों पर होने वाली नवरात्रि रामलीला का भी इस दिन समापन होता है।
रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाकर भगवान राम की विजय का जश्न मनाया जाता है।
इस दिन मां भगवती जगदम्बा की अपराजिता का जाप करना पवित्र माना जाता है।
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा बहुत धूम-धाम से मनाई जाती है ।
दशहरे को विजयदशमी या आयुध पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अत्यंत ही शुभ तिथि है। सर्वकार्य सर्वसिद्धि विजय मुहूर्त है। इसलिए कोई भी धार्मिक या नया कार्य इस दिन प्रारम्भ करने से अपार लाभ होता है। वहीं दशहरे पर शस्त्र पूजन भी होता है। साथ ही ऐसे कार्य घर सुख-शांति के साथ-साथ भारी आर्थिक मुनाफे का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आइए जानते हैं कौन से हैं वह कार्य :
दशहरे पर शमी की लकड़ी की मीठे दही द्वारा अपराजिता मंत्रों से पूजा करने से सफलता और उन्नति प्राप्त होती है। घर के सदस्यों पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।
दशहरे पर रावण दहन के उपरान्त आप गुप्त दान भी कर सकते हैं। इस दिन आप किसी ऐसे मंदिर में नई झाड़ू रख सकते हैं जहां आपको कोई देख ना सके। आपके द्वारा किया गया यह दान आपकी धन संबंधी सभी समस्याओं को दूर करेगा।
दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने की मान्यता है। इस दिन शाम के समय शमी वृक्ष की पूजा करना और उसके नीचे देसी घी का दीप प्रज्ज्वलित करना आपके लिए शुभ रहेगा। माना जाता है कि इससे आपको कानूनी मामलों में सफलता प्राप्त होती है।
धार्मिक मान्यताएं ऐसा कहती हैं कि दशहरे के दिन फिटकरी का टुकड़ा लेकर परिवार के सभी सदस्यों को उसका स्पर्श कराएं। फिर इसे घर की छत पर ले जाकर जहां फेंकना चाहते हैं, उसके विपरीत दिशा में खड़े हो जाएं। फिर इसे अपने इष्टदेव का ध्यान करते हुए फेंक दें। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और समृद्धि आती है। ।
दशहरे के दिन पूजा करने के उपरान्त नौकरी और व्यापार में सफलता पाने के लिए गरीबों में दस फल वितरित करें और ओम विजयाय नमः मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।
ज्योतिषियों के अनुसार रावण दहन के बाद बची हुई लकड़ी को घर में लाकर सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है। साथ ही घर में कोई भी तंत्र-मंत्र नहीं करता। दशहरे के दिन भगवान राम की रावण पर विजय हुई थी। इस दिन नवरात्रि का भी अंत होता है और देवी की प्रतिमा का विसर्जन होता है। इस दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है और विजय उत्सव मनाया जाता है। यदि इस दिन कुछ विशेष अनुष्ठान किए जाएं तो भरपूर धन की प्राप्ति हो सकती है।
दशहरे पर किसकी पूजा करनी चाहिए और क्या लाभ होगा?/ Who should be worshipped on Dussehra, and what will be the benefit?
- इस दिन महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा और भगवान राम की पूजन होना चाहिए।
- इससे सभी विघ्नों का नाश होगा और जीवन के सभी कार्यों में में विजय प्राप्त होगी।
- आज अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करने से आपकी रक्षा होगी और यह आपको कोइ भी आपको हानि नहीं पहुंचाएंगे।
- आज देवी की पूजा करके आप कोई नया कार्य प्रारम्भ कर सकते हैं।
- जब नवग्रह को नियंत्रित रखने की बात आती है तो इसके लिए दशहरा पूजन अद्वितीय होता है।
विजय के लिए कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?/ Which Mantra should be chanted for victory?
"श्रीरामराम, जयरामराम, द्विजयम राममिर्यत।
त्रयोदशाक्षरो मंत्रः सर्वसिद्धिकारःस्थितः।
नवरात्रि की समाप्ति पर दशहरा मनाएं/Celebrate Dussehra on the culmination of Navaratri
सर्वप्रथम देवी की पूजा करें और तद्पश्चात श्री राम की पूजा करें।
देवी और श्री राम के मंत्रों का जाप करें।
अगर आपने कलश स्थापना की है तो नारियल को निकाल कर, उसका प्रसाद के रूप में सेवन करें।
कलश का जल पूरे घर में छिड़कें ताकि नकारात्मकता का नाश हो सके ।
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