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दिवाली/Diwali एक अति सुंदर पर्व है जो अपने साथ ढेरों खुशियां लाता है। रोशनी का त्यौहार होने के कारण इसे 'दीपोत्सव' भी कहा जाता है। दिवाली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की जीत के साथ ही, हमारे जीवन को आनंद से भर देता है। यह पर्व हमारे संबंधों में होने वाले छोटे-छोटे मतभेदों को दूर कर उनमें गर्मजोशी और सौहार्द भरकर संबंधों में मजबूती लाता है। दिवाली सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी मनाई जाती है। इस त्योहार पर राजपत्रित अवकाश घोषित होने के कारण सभी स्कूल, कॉलेज, बैंक और सभी सरकारी कार्यालय बंद रहते हैं। दिवाली का त्यौहार विभिन्न धर्मों के लोग मिल जुल कर मनाते हैं। इस त्यौहार से संबंधित कई दंत कथाएं और मिथक भी हैं जो सभी बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधकार पर रोशनी की जीत पर प्रकाश डालते हैं।
यह त्यौहार इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान राम पत्नी सीता के साथ, लंका के राजा रावण को हराकर, उसकी कैद से भगवती सीता को छुड़ाकर अयोध्या वापस आए थे। रावण को मारकर राम ने बुराई पर जीत हासिल की थी इसलिए अमावस्या की अंधेरी रात्रि में अयोध्या के लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। तब से यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में जाना जाता है। उस दिन से यह महान पर्व दशहरे के त्यौहार के बीस दिन बाद पूरे जोश उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
दिवाली कब मनाई जाती है?/ When is Diwali celebrated?
यह दीपोत्सव/Deepotsav कार्तिक मास की अमावस्या के दिन बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार, यह अक्टूबर या नवंबर मास में मनाया जाता है।
दिवाली का महत्व और ऐतिहासिकता/ Importance of Diwali and its History
प्राचीन काल से, दीपावली हिंदूओं द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व है। दिवाली शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है- 'दीप' और 'आवली'। दिवाली शब्द का अर्थ दियो की श्रृंखला होने के कारण, इस पर्व को दीपोत्सव या दीपों का त्योहार भी कहते है। इस त्यौहार का अर्थ ही प्रकाश-पर्व या रोशनी ही है इसलिए इस त्यौहार के दिन घरों और उसके आसपास के स्थानों की भी सफाई की जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह त्यौहार हमें हमारी परंपरा से जोड़ता है, जो हमारी अंतरात्मा को जागरूक बनाकर अवगत कराता है कि अंत में सत्य और अच्छाई की हमेशा जीत होती है। दिवाली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं इसके महत्व को और बढ़ा देती हैं। इस पर्व से हमें सत्य मार्ग पर चलने की सीख मिलती है। जैसा कि दिवाली नाम से ही पता चलता है कि यह रोशनी का पर्व है, जिसे मनाने के लिए लोग महीनों पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। रोशनी के कारण चारों ओर जगमगाहट होती है। आज तक इस त्यौहार को परंपरागत रूप से पूजा जाता है।
दिवाली का त्यौहार प्रत्येक वर्ष की शरद ऋतु में अक्टूबर या नवंबर माह में मनाया जाता है। इस अवधि में हल्की ठंडक होने से मौसम सुहाना होता है। लोगों द्वारा इसे कार्तिक मास की अमावस्या के दिन बनाने से,अमावस्या का यह अंधकार दीयों की रोशनी से दूर हो जाता है। ऐसा माना जाता है, कि जैसे दीयों की रोशनी अंधकार को दूर करके रोशनी फैलाती है, वैसे ही दिवाली का त्योहार हमारे जीवन के अंधकार को नष्ट करके नई आशाओं की रोशनी से भर देता है। यह त्यौहार अपने साथ अत्यधिक खुशियां लाकर हमारे जीवन को सही मार्ग पर चलना सिखाता है।
दिवाली के दिन ढेर सारी शुभकामनाओं सहित मित्रों, संबंधियों और पड़ोसियों को मिठाइयां और उपहार दिए जाते हैं, जो संबंधों में आए मतभेदों को दूर करके रिश्तों में मधुरता भरकर उन्हें मजबूत बनाते हैं। यही कारण है कि इस त्यौहार को मिलन-पर्व भी कहा जाता है। दिवाली के एक बड़ा त्यौहार होने के कारण इस दिन सभी सरकारी विभाग जैसे स्कूल, कॉलेज, बैंक बंद होते हैं।
न सिर्फ भारतीय, बल्कि अन्य देशों के लोगों द्वारा भी यह रोशनी का पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार की संध्या को श्रीलंका, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, सिंगापुर, म्यांमार, पाकिस्तान आदि देशों में राजपत्रित/gazetted अवकाश होता है। सिख, बौद्ध, जैन जैसे विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा भी दिवाली मनाई जाती है। इस त्यौहार से संबंधित कई मिथक होने से विभिन्न धर्मों के लोग अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं। लेकिन ये सब अंधकार पर प्रकाश की जीत और बुराई पर अच्छाई की जीत पर ही प्रकाश डालते हैं। जैन धर्म के लोगों द्वारा दिवाली इसलिए मनाई जाती है क्योंकि इस दिन चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त किया था और इसी दिन उनके पहले शिष्य गौतम गणधर ने ज्ञान प्राप्त किया था जो अज्ञान पर ज्ञान की जीत को दर्शाता है।
दीपावली की प्रचलित कहानियां/ The Most Popular Story of Deepawali
राम का अयोध्या लौटना: धार्मिक पुस्तक रामायण में यह वर्णित है कि रावण का वध करके भगवान राम चौदह वर्षों बाद अयोध्या लौटे थे। तब, उनका भव्य स्वागत करने के लिए अयोध्या के निवासियों ने अपनी प्रसन्नता और उत्साह प्रदर्शित करने के लिए दीयों से रोशनी करके भगवान राम के सम्मान में अयोध्या को रोशनी से जगमग किया था।
प्रथम कहानी/ First Story
एक बार एक राजा ने एक लकड़हारे से प्रसन्न होकर उसे चंदन का जंगल उपहार में दिया। लेकिन आखिरकार वह था तो एक लकड़हारा ही। अत: वह चंदन की कीमत नहीं समझ सका और अपना भोजन पकाने के लिए जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर प्रयोग करने लगा। जब अपने जासूसों द्वारा राजा को इस बारे में पता चला तो वह समझ गया कि केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही अपनी बुद्धि से धन खर्च कर सकते हैं। इसी कारण देवी लक्ष्मी और गणपति की एक साथ पूजा की जाती है ताकि जिस व्यक्ति पर भी धन हो वह उसको बुद्धिमानी से उपयोग कर सकें।
द्वितीय कहानी/ Second Story
नरकासुर नाम का एक असुर था, जिसका दिवाली से एक दिन पहले भगवान कृष्ण ने वध कर संसार को उसके आतंक से मुक्त किया था। इसी कारण दिवाली को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है।
इंद्र और बलि की कहानी/ The Story of Indra and Bali
एक बार असुरराज बलि इंद्र से डरकर कहीं छुप गए। असुर की तलाश में देवराज इंद्र जब एक खाली घर में पहुंचे तो वहां बलि स्वयं गधे के वेश में छिपा हुआ था। दोनों एक दूसरे से बात करने लगे। जब वह बात कर ही रहे थे कि बलि के शरीर से एक स्त्री प्रकट हुई। देवराज इंद्र के पूछे जाने पर स्त्री बोली, "मैं देवी लक्ष्मी हूं और मैं अपने स्वभाव के कारण एक ही स्थान पर स्थिर नहीं रहती हूं। मैं उसी स्थान पर स्थित रहती हूं जहां सत्य, दान, उपवास, तप, पराक्रम और धर्म की प्रधानता होती है। मैं सत्यवादी, ब्राह्मणों के मित्रवत् और धार्मिक नियमों का पालन करने वाले व्यक्तियों के घर में स्थित रहती हूं।" इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि देवी लक्ष्मी सदाचारी और गुणवान व्यक्तियों के घरों में स्थाई रूप से निवास करती हैं।
राजा और महात्मा की कहानी/The Story of King and Saint
प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार एक संत ने राजा जैसी जीवनशैली जीने का विचार करके, देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करना शुरू कर दिया। तपस्या समाप्त होने पर, देवी लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उनकी इच्छाओं को पूर्ण किया। इच्छा पूर्ण होने के बाद, वह राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के मुकुट को गिराने के लिए सिंहासन पर चढ़ गया। तब राजा अपने मुकुट से एक जहरीला सांप निकलते देखकर बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि संत ने उनकी रक्षा की थी। एक बार संत ने सभी दरबारियों को राजा के महल से बाहर जाने को कहा। उनके बाहर जाते ही, राजा का स्थान मलबे में बदल गया। राजा ने उनकी बहुत प्रशंसा की। तब अपनी प्रशंसा सुनकर महात्मा को अहंकार हो गया। लेकिन जल्दी ही अपनी गलती का एहसास होने पर, राजा के क्रोध से बचने के लिए भगवान गणपति से प्रार्थना की जिससे संत को फिर से उनका प्रारंभिक स्थान प्राप्त हुआ। इसलिए कहा जाता है कि धन के साथ बुद्धि का होना आवश्यक है इसलिए धन और बुद्धिमानी के रूप में देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश/Ganesha and Lakshmi pooja की एक साथ पूजा की जाती है।
देवी लक्ष्मी और साहूकार की पुत्री की कहानी/The Story of Goddess Laxmi and Moneylender's Daughter
एक गांव में एक साहूकार रहता था। उसकी पुत्री रोज पीपल-वृक्ष पर जल चढ़ाती थी। जिस वृक्ष पर वह जल अर्पित करती थी, उस वृक्ष पर भगवती लक्ष्मी का वास था। एक दिन माता लक्ष्मी ने साहूकार की पुत्री से पूछा, 'मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूं'। लड़की बोली, 'मैं अपने पिता से पूछ कर बताऊंगी'। जब उसने पिता को यह सब कहा तो उसके पिता ने सहमति दे दी। साहूकार की पुत्री के द्वारा दोस्ती का अनुरोध स्वीकार करने के बाद, वे दोनों अच्छे मित्रों की तरह एक दूसरे से बातें करने लगीं। एक दिन देवी लक्ष्मी ने साहूकार की पुत्री को अपने घर ले जाकर उसका तहे-दिल से स्वागत किया। उन्होंने उसे विभिन्न प्रकार का भोजन कराया। आतिथ्य सत्कार होने के बाद, जब साहूकार की पुत्री अपने घर जाने लगी तो देवी लक्ष्मी ने उससे पूछा, कि वह उन्हें कब आमंत्रित करेगी। तब साहूकार की पुत्री ने देवी लक्ष्मी को आमंत्रित किया। लेकिन वह अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उदास हो गई। वह सोचने लगी कि वह कि वह उन्हें अच्छी तरह से भोजन कराने के योग्य नहीं है। साहूकार अपनी पुत्री को देखकर सब समझ गया। उसने अपनी पुत्री को मिट्टी से रसोई घर साफ करके चार बाती का दिया जलाकर एक जगह बैठकर देवी लक्ष्मी को स्मरण करने को कहा। उसके ऐसा करने पर, उसी समय एक चील उसको गले का हार देकर उड़ गई। साहूकार की पुत्री ने उस हार को बेचकर भोजन का प्रबंध कर लिया। कुछ देर बाद, देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश के साथ उसके घर पधारीं। साहूकार की पुत्री ने उन दोनों का बहुत अच्छे से स्वागत-सत्कार किया। भगवती लक्ष्मी उसके आथित्य-सत्कार से अत्यधिक प्रसन्न हुईं और साहूकार बहुत अमीर बन गया।
दिवाली के लिए विशेष तैयारियां/ Special Preparation for Diwali
दिवाली से कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घरों और इमारतों में रंग-रोगन किया जाता है। पुरानी और काम में न आने वाली चीजों को कबाड़ में डाल दिया जाता है। घर के प्रत्येक कोण और कोनों की सफाई की जाती है। इस दृष्टि से, यह साफ-सफाई का भी त्यौहार है। जोश और उत्साह के त्योहार दिवाली का हम सब बेसब्री से इंतजार करते हैं। इसलिए लोग इस दिन के लिए कई महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। ऐसा माना जाता है, कि देवी लक्ष्मी हमेशा स्वच्छ और साफ स्थान पर वास करती हैं इसलिए इस त्यौहार की तैयारी साफ-सफाई से शुरू होती है। घर के प्रत्येक कोने को बेहतर करने के लिए श्रेष्ठ तरीकों से सफाई की जाती है। दुकानों की भी सफाई की जाती है। साल भर का कबाड़ बाहर किया जाता है। खराब वस्त्र, टूटे-फूटे बर्तन या अन्य न सुधारी जा सकने वाले सामानों जैसी अनुपयोगी चीजों को घर से बाहर निकाल दिया जाता है। दरारों और टूट-फूट आदि को ठीक कराने के लिए घरों की मरम्मत कराई जाती है। उसके बाद घरों और दुकानों पर रंग-रोगन किया जाता है। घरों को दिवाली के चार-पांच दिन पहले से विभिन्न तरीकों से सजाया जाता है।
इसके बाद लोग खरीदारी करते हैं तथा पारिवारिक सदस्यों के लिए नए वस्त्र, मित्रों और संबंधियों के लिए उपहार, रसोई के बर्तन और सोने के आभूषण, वाहन आदि जैसे अन्य सामान खरीदते हैं। इसके अलावा, भगवान की पूजा संबंधी आवश्यक सामग्री जैसे- दिया-बाती, गणपति और लक्ष्मी जी की मूर्तियां, देवताओं के वस्त्र और घर की सजावट के लिए रंग-बिरंगी रोशनी या लाइट, दीये और मोमबत्तियां आदि खरीदते हैं। इन सामानों के साथ ही मिठाईयां मंगाई जाती हैं। मालिकों द्वारा अपने-अपने कर्मचारियों के लिए भी नए वस्त्र और उपहार खरीदे जाते हैं। दिवाली के दिन घरों को अच्छी तरह साफ करके कमल-पुष्पों, आम के पत्तों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है। घर की दहलीज पर रंगोली बनाकर पूरा दिन दीपक की रोशनी की जाती है जिससे घर में खुशियां बनी रहे
छोटे बच्चे अपने बड़ों से इस त्यौहार के महत्व से संबंधित कहानियां सुनते हैं। महिलाओं द्वारा विभिन्न प्रकार की मिठाइयां बनाई जाती हैं। इसके बाद शाम को परिवार के सभी सदस्य एक साथ धन की देवी लक्ष्मी और बाधाओं को दूर करने वाले गणेश जी की पूजा करते हैं और अपनी सुख-शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके बाद, घर के छोटे सदस्यों द्वारा बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है और उसके बाद वह बधाई देने के लिए आस-पास के घरों में जाते हैं। पूजा के बाद घर को दीयों से सजाया जाता है। इन दीयों की रोशनी अमावस्या की रात के अंधकार को दूर करके उसे रोशन करती है। इसके बाद आतिशबाजी की जाती है। फिर परिवार के सभी सदस्य, मित्र और पड़ोसी सब एक साथ रात्रिभोज का आनंद लेते हैं।
इस तरह, पूर्ण उत्साह और जोश के साथ यह भव्य पर्व मनाया जाता है, जो हमारे जीवन को अत्यधिक खुशियों से भर देता है। यह हमारे जीवन के सभी छोटे-छोटे मतभेदों को दूर करके, आपसी संबंधों को मधुर बनाता है। दिवाली के दिन लोगों द्वारा अपने-अपने घरों को विभिन्न सजावटी सामग्रियों से सजाया जाता है। लोग अपने-अपने घरों को विभिन्न प्रकार के दीयों, लाइटों से सजाकर, देवी लक्ष्मी का पूजन करके आतिशबाजी करते हैं। महिलाएं अपने घरों के प्रांगण में रंगोली बनाती है। शाम को लोग मेवा और मिठाइयों के साथ एक-दूसरे को मिलकर बधाइयां देते हैं।
दिवाली पर लक्ष्मी और गणपति पूजन की परंपरा/The tradition of worshipping Laxmi and Ganesha on Diwali
दिवाली के दिन धन की देवी लक्ष्मी जी और भगवान गणेश जी की मूर्तियों को पूर्व दिशा में स्थापित करके पूजा करने से, लोगों के जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं और उन्हें धन और यश की प्राप्ति होती है।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का महत्व/ Importance of worshipping Laxmi on Diwali
हम सभी जानते हैं, कि धन की देवी माता लक्ष्मी की कृपा से ही, हमें विलासिता और वैभव दोनों प्राप्त होते हैं। कार्तिक अमावस्या की शुभ तिथि पर, धन की देवी को प्रसन्न करने से व्यक्ति को उनका आशीर्वाद और समृद्धि दोनों प्राप्त होते हैं। दिवाली से पहले आने वाली शरद पूर्णिमा पर्व को, माता लक्ष्मी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। फिर दिवाली पर उनका पूजन करके धन और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।
दिवाली पर गणेश पूजन का महत्व/ Importance of Ganesha’s worshipping on Diwali
भगवान गणेश को बुद्धि का देवता कहा जाता है। हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश का पूजन किए बिना, कोई भी पूजा या धार्मिक कार्य नहीं किए जा सकते हैं। यही कारण है कि दिवाली के दिन भगवान गणपति की पूजा की जाती है। धन की देवी के पूजन द्वारा समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति को अपने धन का सही उपयोग करने के लिए बुद्धिमानी की आवश्यकता पड़ती है। भगवान गणेश द्वारा बुद्धि प्रदान करने और अपना मार्ग प्रशस्त करने के लिए भगवान गणपति की आराधना की जाती है।
दिवाली के पांच महत्वपूर्ण दिन/ Five important days during Diwali
- धनतेरस
- नरक चतुर्दशी
- लक्ष्मी पूजा/Lakshmi Pooja
- गोवर्धन पूजन
- भाई दूज
दिवाली की पूजन सामग्री/ Diwali’s Worshipping Materials
देवी लक्ष्मी के पूजन के लिए जिस पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है वह निम्न प्रकार हैं- केसर, रोली, चावल, पान के पत्ते, सुपारी, फल, फूल, खीलें, बताशे, सिंदूर, मेवा, मिठाइयां, पंचामृत, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, रूई की बाती, कलावा, नारियल, कलश के लिए तांबे का बर्तन।
दिवाली पर पूजा की तैयारी कैसे करें?/ How to do Preparation for Worshipping on Diwali?
१) थाली या जमीन को शुद्ध करके उस पर स्वास्तिक बना सकते हैं या कोई यंत्र स्थापित किया जा सकता है। अब तांबे के बर्तन का कलश बनाकर उसमें पंचामृत, गंगाजल, सुपारी, सिक्के, लौंग रखकर काले कपड़े से ढक देते हैं फिर एक कच्चे नारियल के चारों ओर कलावा (एक प्रकार का लाल धागा) लपेटकर कलश स्थापित किया जाता है।
२) बनाए हुए यंत्र की जगह पर सोने-चांदी के सिक्के, रुपए, देवी लक्ष्मी की मूर्ति या मिट्टी से बनी लक्ष्मी-गणेश और सरस्वती की मूर्तियां या अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी जाती हैं।
३) भगवान की धातु की मूर्ति होने पर उसे ईश्वर का अवतार मानकर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन, फल और फूलों से सजाना चाहिए। इसके साथ घी या तिल के तेल का पंचमुखी दीपक जलाना चाहिए।
४) दिवाली की विशेषता लक्ष्मी पूजन से संबंधित होती है। इस दिन प्रत्येक घर, परिवार, कार्यालयों आदि में माता लक्ष्मी की पूजा/Lakshmi Pooja करके उनका स्वागत किया जाता है। दिवाली के दिन गृहस्वामियों और व्यवसायिक व्यक्ति, धन की देवी लक्ष्मी से धन और समृद्धि की अपेक्षा करते हैं।
दिवाली की पूजन विधि/ Worshipping Methodology on Diwali
१) नियमित रूप से पूजा करने वाले व्यक्तियों और बुजुर्गों द्वारा घरों में भगवती लक्ष्मी के लिए उपवास रखा जाता है। भगवती लक्ष्मी के पूजन के दौरान सभी पारिवारिक सदस्य घर में उपस्थित होते हैं। संबंधित परिवार के सदस्य को स्नान करके तथा आसन (एक प्रकार की बैठने की पवित्र गद्दी) पर बैठकर आचमन और प्राणायाम करके संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद गणेश जी का स्मरण करते हुए अपने दाहिने हाथ में गंध, अक्षत, फूल, कुशा, मिठाई और गंगाजल लेकर गणपति महालक्ष्मी, महाकाली, कुबेर आदि को अर्पित करके उनकी पूजा करनी चाहिए।
२) दिवाली के दिन कुबेर जी की भी आराधना करने का अत्यधिक महत्व होता है। कुबेर जी का पूजन करने के लिए, धन सुरक्षित रखने वाली तिजोरी या तहखाने पर स्वास्तिक बनाकर कुबेर जी का स्मरण करना चाहिए।
३) सबसे पहले भगवान गणेश और महालक्ष्मी जी का पूजन करने के लिए, कलश स्थापित करके महालक्ष्मी जी और अन्य देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है पूजन के बाद, सभी पारिवारिक सदस्यों द्वारा पार्टी/party करके पटाखे फोड़े जाते हैं।
४) अब हाथ में अक्षत, फूल, जल और पैसे लेकर संकल्प मंत्र का जाप करते हुए संकल्प लिया जाता है कि मैं फलां फलां व्यक्ति इस समय फलां फलां स्थान पर बैठकर, पुण्य प्राप्त करने की इच्छा से आपकी पूजा करना शुरू कर रहा हूं। इसके बाद, सबसे पहले गणेश जी और महालक्ष्मी जी क्या पूजन किया जाता है।
५) हाथ में जल लेकर भगवान का स्मरण करते हुए, उन्हें पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। अंत में, पूजन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, हाथ में अक्षत और फूल लेकर महालक्ष्मी जी की आरती की जाती है जिससे घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
६) दिवाली की पूजन विधि के बाद, महालक्ष्मी जी की आरती के लिए घी का जलता दीपक लेते हैं। आरती के लिए थाली में रोली से स्वास्तिक बनाकर, थोड़े अक्षत और फूल रखकर गाय के घी का चार मुखी दीपक जलाकर शंख, घंटी, डमरु आदि बजाकर माता लक्ष्मी की आरती की जाती है।
७) आरती के समय घर के सभी सदस्य एक साथ उपस्थित होते हैं। परिवार के सभी सदस्यों द्वारा सात बार माता लक्ष्मी की आरती करनी चाहिए। सात बार आरती करने के बाद, आरती की थाली लाइन में खड़े दूसरे पारिवारिक सदस्य के हाथ में दे देनी चाहिए। प्रत्येक पारिवारिक सदस्यों द्वारा ऐसा ही किया जाना चाहिए।
८) दिवाली पर मां सरस्वती के पूजन का भी प्रावधान होता है इसलिए देवी लक्ष्मी के पूजन के बाद मां सरस्वती की भी पूजा करनी चाहिए।
९) महालक्ष्मी जी के पूजन के साथ ही, धन के स्वामी कुबेर जी की भी दिवाली और धनतेरस पर पूजा की जाती है। कुबेर जी की पूजा करने से घर में धन का प्रवाह बना रहता है।
बहीखाता की पूजा कैसे करते हैं?/How to worship Ledger Account?
लेजर/बही खातों की पूजा करने के लिए पूजा के शुभ मुहूर्त के दौरान बही खातों में केसर या लाल कुसुम के साथ चंदन मिलाकर स्वास्तिक बनाकर उस पर "ओम् गणेशाय नमः" लिखना चाहिए। अब एक नई थैली में हल्दी की पांच गांठ, कमलगट्टे, अक्षत, कुशा, साबुत धनिया और थोड़े पैसे रखने चाहिए और थैली पर स्वास्तिक बनाकर मां सरस्वती को अर्पित करना चाहिए।
पटाखे और आतिशबाजी/Crackers and Fireworks
पिछले वर्ष से विकसित हुए क्रोध, ईर्ष्या और भय जैसी नकारात्मक भावनाओं को पटाखों के रूप में नष्ट करना चाहिए। हर पटाखे के साथ किसी विशेष व्यक्ति से संबंधित सभी नकारात्मक भावनाओं को जला देना चाहिए या संबंधित व्यक्ति का नाम पटाखे पर लिखकर जलाने से आप उसके खिलाफ सभी नकारात्मक भावनाओं को जला सकते हैं। इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? जैसे विचारों के बजाय उस व्यक्ति के खिलाफ अपनी सभी नकारात्मक भावनाओं को दूर करने के लिए स्वयं को नकारात्मक भावनाओं में न जला कर, अपनी सभी बुरी और नकारात्मक भावनाओं को पटाखों के साथ जलाकर, दोबारा उस व्यक्ति से मित्रता करनी चाहिए। इससे आपको प्रेम शांति और प्रसन्नता के साथ ही हल्कापन और बेहतर महसूस होगा। इसके बाद उस व्यक्ति को मिठाई देकर उत्सव मनाना चाहिए। व्यक्ति के प्रति बुराई न रखकर, उसकी बुराइयों को पटाखों के साथ जला देना चाहिए वास्तव में, दिवाली मनाने का यही सही तरीका है।
दिवाली का आर्थिक महत्व/ Economic Importance of Diwali
साल का सबसे बड़ा खरीदारी का समय दिवाली से शुरू होता है। छोटे से लेकर बड़े सभी व्यवसायक कपड़े, बर्तन, चूना, रंग, पूजन-सामग्री, सजावटी सामान, हलवाई की दुकान, मिठाई की दुकान, सोना-चांदी और वाहन के व्यवसाय में इस त्यौहार के दौरान, मांग के कारण बढ़ती हुई बिक्री देखी जा सकती है। सभी के लिए दिवाली एक महान पर्व है। यह व्यक्तियों के लिए एक विशेष त्यौहार है क्योंकि वे पिछले साल के सभी बकाया चुकाकर व्यापार को नए सिरे से शुरू करते हैं। व्यावसायिक व्यक्तियों द्वारा लेन-देन के लिए नई बही/लेजर और कलम के साथ, माता लक्ष्मी का पूजन करने के बाद नया व्यापार शुरू किया जाता है (इससे संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।), ताकि साल भर उनका व्यवसाय सुचारू रूप से चल सके। यही कारण है कि इस महापर्व का अत्यधिक आर्थिक महत्व है।
दिवाली पर क्या करें?/ What to Do on Diwali?
१) दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के पूजन के बाद, घर के प्रत्येक कमरे में शंख या घंटी बजाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता दूर होती है और घर में माता लक्ष्मी का प्रवेश होता है।
२) दिवाली के दिन जलते तेल के दीपक में लौंग रखकर हनुमान जी की आरती करनी चाहिए। आप ऐसा दीपक किसी हनुमान मंदिर में भी ले जा सकते हैं।
३) शिव मंदिर जाकर भगवान को अक्षत या थोड़े चावल अर्पित करने चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल बिना टूटे हुए पूर्ण आकार में हों। शिवलिंग पर टूटे हुए चावल के दाने अर्पित नहीं करने चाहिए।
४) महालक्ष्मी जी का पूजन करते समय, पीली कौड़ी को लक्ष्मी जी के सामने रखकर उन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप धन संबंधी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
५) भगवती लक्ष्मी का पूजन करते समय उनके सामने हल्दी की गांठ रखनी चाहिए। पूजन के बाद, इन हल्दी की गांठों को अपने धन रखने के स्थान पर रख देना चाहिए।
६) दिवाली के दिन झाड़ू/ ड्रूम अवश्य खरीदकर अपने पूरे घर की सफाई करनी चाहिए। यदि प्रयोग नहीं होती है तो एक निश्चित स्थान पर छिपा कर रख देना चाहिए।
७) दिवाली के दिन किसी मंदिर में झाड़ू दान की जा सकती है। यदि आपके घर के पास लक्ष्मी जी का मंदिर हो, तो वहां सुगंधित अगरबत्ती का दान करना चाहिए।
८) इस दिन अमावस्या होने के कारण, पीपल-वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से शनि-दोष और कालसर्प-दोष दूर होते हैं।
९) दिवाली के दिन भगवती लक्ष्मी के पूजन के लिए स्थिर लग्न उपयुक्त माना जाता है। इस लग्न में पूजा करने से भगवती लक्ष्मी आपके घर में स्थाई रूप से निवास करती हैं। पूजन के समय लक्ष्मी यंत्र/Lakshmi Yantra कुबेर यंत्र/Kuber Yantra और श्री यंत्र रखना चाहिए। स्फटिक यंत्र का प्रयोग उचित माना जाता है।
१०) घर के समीप स्थित पीपल-वृक्ष के समीप तेल का दीपक जलाना चाहिए।
११) प्रथम-पूजनीय श्री गणेश जी को कुशा के इक्कीस तिनकों/तृणों को अर्पित करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। दिवाली के दिन ऐसा करने से भगवान गणेश जी के साथ ही भगवती लक्ष्मी जी की भी कृपा प्राप्त होती है।
१२) भगवान विष्णु के चरणों के समीप बैठी भगवती लक्ष्मी जी वाली तस्वीर को पूजने से भगवती लक्ष्मी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
१३) दिवाली के दिन 'श्री सूक्त' और 'कनकधारा स्त्रोत' का पाठ करना चाहिए। 'राम रक्षा स्त्रोत', हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ भी किया जा सकता है।
१४) याद रखना चाहिए कि, महीने की प्रत्येक अमावस्या को घर की उचित रूप से सफाई की जानी चाहिए। सफाई के बाद धूप और दीप जलाने से घर का वातावरण शुद्ध होता है और घर में हमेशा समृद्धि बनी रहती है।
१५) दिवाली की रात्रि पर, घर में तुलसी के पौधे के समीप दीपक जलाकर वस्त्र अर्पित करना चाहिए।
१६) कमलगट्टे की बनी माला से, महालक्ष्मी जी के "ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः" महामंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
"भारतीय त्योहारों में ज्योतिष की प्रासंगिकता" जैसे लेखों द्वारा अन्य सभी प्रमुख भारतीय त्योहारों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
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