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छठ पूजा 2023
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छठ पूजा मुहूर्त
भारत का लोकपर्व छठ पर्व या छठ पूजा/Chhath Puja कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व दिवाली के छ: दिन बाद मनाया जाता है। छठ पूजा विशेष रुप से उत्तर भारत के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव और छठी मैया को अर्घ्य (जल) अर्पित करना मुख्य धार्मिक संस्कार होता है। पिछले कुछ सालों से भारत के लोकपर्वों में छठ पूजा के अत्यधिक महत्ता प्राप्त करने के कारण सिर्फ बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि भारत के अन्य क्षेत्रों में भी अत्यधिक लोकप्रिय और व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।
बिहार में छठ पूजा की भव्यता और भावना सर्वव्यापी, शानदार और अतुलनीय होती है। मूल रूप से, छठ पूजा सूर्य की उपासना को समर्पित होती है। धार्मिक विश्वासों के अनुसार छठ को सूर्य की बहन माना जाता है। ऐसी मान्यता है, कि छठ पर्व पर सूर्य देव की आराधना करने से छठ माई (छठ मैया) प्रसन्न होकर पूर्ण भक्ति के साथ सूर्य की आराधना करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को धन-संपत्ति, शांति और सद्भाव जैसे वरदान देती हैं।
छठ पूजा की ऐतिहासिकता/ History of Chhath Puja
हिंदुओं का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार दिवाली, त्योहारों की एक अति सुंदर श्रृंखला के समान है। यह आकर्षक त्यौहार भाई दूज पर खत्म न होकर, छठ तक चलता रहता है। उत्तर भारत का महत्वपूर्ण त्योहार छठ पर्व मुख्यतः: उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है, लेकिन अब देशभर में उत्साह पूर्वक मनाया जाने लगा है। छठ सिर्फ एक दिन का त्यौहार न होकर चार दिनों तक लगातार चलने वाला भव्य उत्सव है। यह पहले दिन नहाए-खाए के साथ शुरू होकर चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ समाप्त होता है। हिंदू धर्म में छठ का त्यौहार अद्वितीय पौराणिक महत्व रखता है।
छठ का पौराणिक महत्व/ छठ संबंधी किंवदंतियां/ Mythological significance of Chhath/Legend of Chhath
छठ पर्व के दौरान भगवती छठी की पूजा की जाती है, जिनकी किवदंतियों का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। किंवदंतियों के अनुसार, पहले मनु स्वयं के पुत्र, राजा प्रियव्रत की कोई संतान न होने से, पूर्ण रूप से दुखी और अकेले होने पर, ऋषि कश्यप ने सुझाव दिया कि राजा को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करना चाहिए। ऋषि के आदेशानुसार, राजा द्वारा यज्ञ कराने के परिणामस्वरूप वरदान की प्राप्ति होने पर रानी मालिनी ने पुत्र को जन्म दिया; लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा मृत था। इस दुर्भाग्य ने राजा, रानी और पूरे कुल को और अधिक दुखी कर दिया।
उनकी इस हानि का शोक मनाते समय, आकाश से एक विमान देवी षष्ठी को लेकर नीचे उतरा। तब राजा द्वारा देवी के सामने श्रद्धापूर्वक नमन करने पर, उन्होंने कहा- मैं ब्रह्मदेव की दत्तक पुत्री देवी षष्ठी हूं। मैं बच्चों की रक्षक होने के साथ ही, उन सभी नि:संतान दंपतियों को उनकी स्वयं की संतान का आशीर्वाद देती हूं जो पूरी भक्ति से मेरी आराधना करते हैं। तब उन्होंने मृत बालक पर अपना हाथ रखा और उनके दिव्य स्पर्श से बच्चा फिर से जीवित हो गया। अपने मृत पुत्र को जीवित देखकर राजा अपनी प्रसन्नता रोक नहीं सके और भक्तिपूर्वक देवी षष्ठी की पूजा करने लगे। इसके बाद से, देवी षष्ठी का आशीर्वाद पाने के लिए लोगों ने उनकी पूजा करना शुरू कर दिया।
छठ पर्व का वैज्ञानिक महत्व/ The Scientific significance of Chhath Parva
छठ पर्व के महत्व के पीछे गहरी वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि छिपी हुई है। दरअसल, षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय घटना है। इस दिन सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर अधिक तीव्रता और आवृत्ति के साथ टकराती हैं। षष्ठी तिथि पर किए जाने वाले धार्मिक संस्कारों में संचित पराबैंगनी किरणों के संभावित दुष्परिणामों से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने की अपार शक्ति होती है। छठ पर्व का विचार सजीव प्राणियों की सूर्य(तारा) की पराबैंगनी किरणों से बचाव करता है।
महाभारत काल में छठ के विचार की शुरुआत/ Observance of Chhath began in Mahabharata Era
मान्यताओं के अनुसार, छठ का विचार महाभारत काल में शुरू हुआ। सूर्यपुत्र कर्ण ने इस दिन सूर्य की आराधना करके छठ संस्कार को शुरू किया था। सूर्य के परम भक्त कर्ण, प्रतिदिन घंटो तक कमर तक गहरे पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। सूर्य के आशीर्वाद से कर्ण एक पराक्रमी और दुर्जय योद्धा बन गया था। इस युग में भी छठ पर अर्घ्य (अर्घ्य दान) करने की परंपरा पूर्ण श्रद्धा के साथ की जाती है।
द्रौपदी द्वारा छठ व्रत संस्कार/ Draupadi observed Chhath Vrat
छठ पर्व से जुड़ी एक और दंतकथा है। इस दंत कथा के अनुसार, पासों के खेल में पांडवों के द्वारा अपना साम्राज्य हारने के बाद द्रौपदी ने छठ व्रत का पालन किया था। व्रत की शक्ति से द्रौपदी की इच्छा पूर्ण हुई थी और पांडवों को उनका खोया साम्राज्य वापस मिल गया था। लोक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव और देवी छठी भाई-बहन हैं इसलिए छठ के दिन सूर्य की आराधना करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।
रावण वध के प्रायश्चित स्वरूप छठ संस्कार/ Observance of Chhath as a penance of killing Ravana
भगवान राम और देवी सीता से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम और देवी सीता के चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर, ऋषियों और संतों के आदेशानुसार उन्होंने रावण को मारने के पाप के प्रायश्चित स्वरूप राज सूर्य यज्ञ करने का फैसला किया। यज्ञ अनुष्ठान कराने के लिए ऋषि मुद्गल को आमंत्रित किया गया। ऋषि मुद्गल ने देवी सीता पर गंगाजल छिड़क कर सुझाव दिया कि उन्हें कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य आराधना करनी चाहिए। तब ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहते हुए देवी सीता ने छ: दिन के लिए सूर्य की आराधना की।
छठ पर्व कब मनाया जाता है?/ When is Chhath Parva celebrated?
भगवान सूर्य की पूजा को समर्पित छठ पर्व, साल में दो बार चैत्र शुक्ल षष्ठी और कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। मगर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला पर्व अधिक महत्वपूर्ण और मुख्य छठ पर्व है। कार्तिक छठ पूजा अत्यधिक धार्मिक और पौराणिक महत्व रखती है। चार दिन लंबे इस त्यौहार को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि नामों से भी जाना जाता है।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?/ Why Chhath Puja is observed?
छठ पूजा मनाने और व्रत रखने के विभिन्न कारण हैं। लेकिन छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य की आराधना करके, उनकी कृपा पाने के लिए की जाती है। सूर्य की कृपा से व्यक्ति संपूर्ण वर्ष स्वस्थ रह सकता है। सूर्य अपने भक्तों को भौतिक सुख और समृद्धि भी प्रदान करते हैं। निसंतान दंपत्ति, संतान प्राप्ति के लिए सूर्य का आशीर्वाद पाना चाहते हैं। एक गुणवान संतान पाने की इच्छा से भी छठ व्रत का पालन किया जाता है। ( इसके बारे में अधिक जानकारी नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है) यह व्रत सभी सांसारिक और गैर सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
देवी षष्ठी कौन हैं? और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई?/ Who is Goddess Shashthi, and how she originated?
देवी छठ, सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। लेकिन छठ व्रत दंतकथाओं के अनुसार, देवी छठ को सर्वोच्च भगवान की पुत्री देवसेना के रूप में दर्शाया गया है। स्वयं देवसेना के अनुसार, वह आरंभिक सृष्टि के छठे भाग, प्रकृति की दिव्य शक्ति की स्त्री अभिव्यक्ति से उत्पन्न होने के कारण, उन्हें षष्ठी कहा जाता है। देवी कहती हैं कि जो कोई भी गुणी संतान चाहता है, उसे कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन धार्मिक क्रियाओं द्वारा मेरी पूजा और व्रत करना चाहिए।
धार्मिक शास्त्रों में छठ व्रत की दंतकथा भगवान राम और भगवती सीता से भी जुड़ी हुई है। चौदह साल के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद, भगवान राम और देवी सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की आराधना और षष्ठी व्रत किया था।
एक अन्य दंतकथा के अनुसार, महाभारत काल में विवाह पूर्व कुंती द्वारा भगवान सूर्य की पूजा करने के कारण उन्हें एक शक्तिशाली और दुर्जेय पुत्र कर्ण का आशीर्वाद मिला था। भगवान सूर्य के आशीर्वाद से अविवाहित मां कुंती द्वारा उत्पन्न कर्ण को, अपनी ही मां द्वारा नदी में त्याग दिया गया था, जो स्वयं सूर्य का परम भक्त होने पर पानी के अंदर खड़े होकर घंटों सूर्य की आराधना किया करता था। मान्यता है, कि सूर्य ने कर्ण को मंगल कामना और महान शक्तियों का आशीर्वाद दिया था। इस कारण, लोग कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य की आराधना करके उनका आशीर्वाद और कृपा पाना चाहते हैं।
चार दिन तक चलने वाला छठ पर्व/ Chhath Parva continues till four days
सूर्य की बहन देवी छठ का छठ पर्व चार दिनों तक चलता है। छठ का त्यौहार सूर्य आराधना को समर्पित होता है। देवी छठ (छठ मैया) को संतुष्ट करने के लिए, षष्ठी तिथि को सूर्य की पूजा की जाती है। लोग छठ देवी(छठ मैया) का ध्यान करते हुए, अपने स्थान के समीप स्थित किसी भी जल निकाय या गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों के तट पर सूर्य की पूजा करते हैं। छठ पूजा का मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण संस्कार नदी तालाब या झील जैसे किसी जल निकाय पर पवित्र स्नान करके, सूर्य को अर्घ्य चढ़ाकर सूर्य की आराधना करना होता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन घरों को विस्तृत रूप से झाड़ कर सफाई की जाती है। ग्रामीण भारत इस परंपरा का अपने घरों की व्यापक रूप से सफाई करके धार्मिक रूप से पालन करता है।
उत्सव के चार दिनों के दौरान, केवल शाकाहारी भोजन किया जाता है। दूसरे दिन खरना की रस्म की जाती है। तीसरे दिन अस्त होते सूर्य को संध्या अर्घ्य देकर सूर्य आराधना की जाती है। उत्सव के चौथे दिन उगते सूर्य को ऊषा अर्घ्य अर्पित किया जाता है। छठ के दिन व्रत रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। जो कोई भी पूर्ण भक्ति और धार्मिक संस्कारों के अनुसार छठ व्रत का पालन करते हैं, उन पर सूर्य की कृपा से धन और आनंद की प्राप्ति होती है। छठ के दिन सूर्य की आराधना करने से निसंतान दंपतियों को एक नेक संतान की प्राप्ति होती है।
नहाए-खाए- छठ पूजा का प्रथम दिवस
यद्यपि, छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है लेकिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए संस्कार के साथ उत्सव की शुरुआत हो जाती है। मान्यताओं के अनुसार, छठ व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति/व्रती जल निकाय विशेषकर नदी में पवित्र स्नान करके नए कपड़े पहनते हैं और प्रसाद के रूप में शाकाहारी भोजन गृहण करते हैं। प्रथा के अनुसार, व्रतियों के पहले भोजन करने के बाद परिवार के अन्य सदस्य भोजन गृहण करते हैं।
खरना- छठ पूजा का दूसरा दिन
कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रती पूरे दिन व्रत/उपवास रखते हैं और शाम को पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन की विधि को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरा दिन खाने-पीने यहां तक कि पानी की एक बूंद पीने से भी परहेज करते हैं। शाम को चावल और गुड़ की खीर बनाई जाती है। खीर बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है। शाम को प्रसाद के रूप में चावल पीठा और घी लगी रोटी परोसी जाती है।
संध्या अर्घ्य- छठ पूजा का तृतीय दिवस
कार्तिक शुक्ल षष्ठी उत्सव के तीसरे दिन संध्या काल के दौरान सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है। शाम के समय बांस की टोकरी में मौसमी फल रखे जाते हैं और सूपे (टोकरी) को ठेकुआ, चावल के लड्डू तथा अन्य वस्तुओं से सजाया जाता है। इन सभी का प्रबंध करने के बाद व्रती अपने परिवार के साथ पानी के अंदर खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। अर्घ्य देते समय सूर्य को जल और दूध अर्पित करके सूपे की टोकरी की सामग्री अर्पित करके छठी मैया की पूजा की जाती है। शाम को डूबते सूर्य की आराधना करने के बाद रात को देवी छठी को समर्पित लोक गीत गाए जाते हैं और व्रत की कथा सुनाई जाती है।
ऊषा अर्घ्य- छठ का चतुर्थ दिवस
छठ पर्व के अंतिम दिन भगवान सूर्य को ऊषा अर्घ्य दिया जाता है। भक्त, सूर्योदय से पूर्व ही नदी तटों पर पहुंच जाते हैं और उठते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। तब व्रती अपने संपूर्ण परिवार की शांति और समृद्धि तथा अपने बच्चों के लंबे और समृद्धशाली जीवन के लिए देवी छठ से प्रार्थना करते हैं। सूर्य को अर्घ्य चढ़ाने और पूजा करने के बाद, व्रती कच्चे दूध का काढ़ा पी कर और थोड़ा प्रसाद लेकर अपना व्रत तोड़ते हैं। व्रत खोलने को 'व्रत पारण' कहा जाता है।
छठ पूजा की विधि/ धार्मिक क्रियाएं/ Chhath Puja Vidhi/Rituals
१) छठ पूजा से पहले नीचे बताई गई वस्तुओं को इकट्ठा करके सभी महत्वपूर्ण धार्मिक क्रियाओं का पालन करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
२) तीन बड़ी बांस की टोकरियां, बांस या पीतल से बने सूपे/टोकरियां, एक प्लेट/थाली, दूध और गिलास।
३) चावल, सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, थोड़े कम रतालू, सब्जियां और शकरकंद।
३) नाशपाती या एक बड़ा नींबू, शहद, एक पान का पत्ता, साबुत सुपारी,केराव(छोटी हरी मटर), कपूर, चंदन और मिठाइयां।
४) प्रसाद को चढ़ावे के लिए ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूरी, सूजी हलवा और चावल के लड्डू लेने चाहिए।
५) छठ के दिन सूर्योदय से पहले जागना चाहिए।
६) व्यक्ति को समीप में स्थित किसी झील, तालाब या नदी में पवित्र स्नान करना चाहिए।
७) पवित्र स्नान के बाद पानी में खड़े होकर, धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ उगते सूर्य की पूजा करनी चाहिए।
८) सूर्य को शुद्ध घी का दीपक जलाकर धूप और फूल अर्पण करने चाहिए।
९) छठ के दिन, जल में सात तरह के फूल चावल चंदन और तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
१०) श्रद्धापूर्वक नमन करके, भगवान सूर्य से प्रार्थना करनी चाहिए और नीचे बताए गए मंत्रों में से किसी एक मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए- "ॐ घृणि सूर्याय नमः", "ॐ घृणि: सूर्याय आदित्य", "ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा"।
११) अर्घ्य अर्पित करने की सही विधि उपरोक्त वस्तुओं को बांस की टोकरी में रखकर, अर्घ्य देते समय प्रसाद की वस्तुओं के साथ जलता हुआ दीपक सूपे में रखना चाहिए। फिर नदी के अंदर खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिए।
१२) अपनी क्षमतानुसार, ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन सामग्री दान करनी चाहिए।
१३) गरीबों को वस्त्र, भोजन, अनाज आदि का दान करना चाहिए।
छठ पूजा से संबंधित कुछ मौलिक जानकारियां/ Some basic information regarding Chhath Puja
छठ का लोकपर्व जो सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए प्रवासी लोगों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। उत्सव की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, भारतीयों का एक बड़ा वर्ग आज भी छठ पूजा से संबंधित मौलिक जानकारियों से परिचित नहीं है। इसके अलावा, इस पर्व को प्रत्येक वर्ष मनाने वाले लोगों के मन में भी इस उत्सव से संबंधित कई सवाल उठते हैं।
१) सूर्य षष्ठी व्रत या छठ में किन देवताओं को पूजा जाता है?/ Which deities are worshipped on Chhath or Surya Shashti Vrat?
छठ या सूर्य षष्ठी व्रत के दिन दैवीय शक्ति के प्रत्यक्ष स्वरूप और पृथ्वी पर जीवन के मुख्य स्त्रोत सूर्य की मुख्य देवता के रूप में पूजा की जाती है। सूर्य के साथ देवी षष्ठी, जिन्हें छठ मैया के नाम से भी जाना जाता है की भी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी षष्ठी बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य (इससे संबंधित अधिक जानकारी पाने के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग किया जा सकता है।) और लंबी उम्र का आशीर्वाद देकर सभी प्रतिकूलताओं से बचाती हैं। इस दिन सूर्य देव की पत्नियों- उषा और प्रत्यूषा को भी अर्घ्य दिया जाता है। छठ व्रत के दौरान, सूर्य और देवी षष्ठी की एक साथ पूजा की जाती है और इस कारण ही छठ पर्व भारत का सबसे अद्वितीय और लोकप्रिय उत्सव है।
२) सूर्य एक महत्वपूर्ण हिंदू देवता हैं, लेकिन छठ देवी कौन है?/ Sun is an important Hindu deity, but who is Goddess Chhath?
पृथ्वी पर जीवन की सृजनात्मक शक्ति प्रकृति का अपने ही अभिन्न अंग के रूप में प्रकट होने को, धार्मिक ग्रंथों में देवसेना के रूप में वर्णित किया गया है। प्रकृति का छठा भाग होने के कारण देवसेना को देवी षष्ठी माना जाने लगा तथा ब्रह्मदेव की दत्तक पुत्री के रूप में भी जाना जाता है। पुराणों में उन्हें कात्यायनी के नाम से भी बताया गया है। क्षेत्रीय स्तर पर, षष्ठी तिथि को छठ मैया माना जाता है जो नि:संतान दंपतियों को संतान का आशीर्वाद देती है और संसार के सभी बच्चों की रक्षा करती हैं।
३) धार्मिक ग्रंथों में सूर्य आराधना का उल्लेख कहां मिलता है?/ Where do you find the mention of Sun-worship in our religious scripture?
हमारे धार्मिक शब्दों में सूर्य को एक गुरु, एक शिक्षक माना गया है। सूर्य भगवान हनुमान के भी गुरु थे। बुरी ताकतों पर विजय पाने के लिए रावण पर अंतिम तीर चलाने से पहले, भगवान राम ने सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए "आदित्यहृदयस्तोत्रम्" का जाप किया था। भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा ने कुष्ठ रोग से पीड़ित होने पर भगवान सूर्य की आराधना करके रोग से छुटकारा पाया था। (इससे संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।) वैदिक काल के पहले समय से ही आदिम देव सूर्य की आराधना की जाती है।
४) सनातन धर्म के अन्य देवताओं में सूर्य का क्या स्थान है?/ What is the place of the Sun among other deities of Sanatana Dharma?
सूर्य उन पांच प्रमुख देवताओं में स्थित हैं जिनकी किसी भी धार्मिक समारोह या कार्यक्रम में सबसे पहले पूजा की जाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार, सामूहिक रूप से इन देवताओं को पंचदेव कहा जाता है- भगवान सूर्य, भगवान गणेश, देवी दुर्गा, भगवान शिव और भगवान विष्णु।
५) भगवान सूर्य की आराधना करने के क्या लाभ होते हैं और इस विषय पर पुराणों का क्या मत है?/ What are the benefits of worshipping the Sun God, and what does Puranas opine on this matter?
भगवान सूर्य एक कृपालु और दयालु देता है जो अपने सभी भक्तों को लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन, धन-समृद्धि, संतान, ऐश्वर्य, प्रसिद्धि, भाग्य और सफलता प्रदान करते हैं। सबसे बढ़कर, वह पृथ्वी पर प्रकाश का मौलिक स्त्रोत हैं जो लोगों को अंधकार पर विजय प्राप्त करने के लिए आलोकित करते हैं। जो भी पूर्ण भक्ति के साथ सूर्य की आराधना करता है उसे सभी मानसिक और शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है तथा जीवन में कभी भी दरिद्रता, कष्ट, दुख और अंधापन का सामना नहीं करना पड़ता है। ब्रह्मदेव की महिमा के समान ही सूर्य को माना जाता है। संपूर्ण ब्रह्मांड के रक्षक सूर्य अपने भक्तों को पुरुषार्थ अर्थात धर्म (धार्मिकता), अर्थ (समृद्धि), काम (आनंद) और मोक्ष (मुक्ति) का आशीर्वाद देते हैं।
६) छठ पूजा के दौरान लोग नदी तटों या झील और तालाबों के आसपास क्यों एकत्रित होते हैं?/ Why do people gather at river banks or around lake and ponds during Chhath Puja?
छठ पूजा पर अर्घ्य अर्पित करके सूर्य की आराधना करना सबसे महत्वपूर्ण संस्कार होता है। गंगा जैसी नदियों में पवित्र स्नान करके, जल के अंदर खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। हालांकि, यह पूजा किसी भी साफ स्थान पर भी की जा सकती है।
७) छठ के दिन जल निकायों के चारों ओर एकत्रित भारी भीड़ के बीच आराम से पूजा करने के लिए क्या उपाय लिए जा सकते हैं?/ A large crowd gathered around water bodies on Chhath. What measures can one take to comfortably perform the Puja?
भीड़-भाड़ वाले नदी तटों पर बहुत से लोग छठ पूजा करना पसंद नहीं करते इसलिए घर पर पूजा करने की पद्धति तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कई लोग अपने आंगन या छत से अर्घ्य अर्पित करके छठ व्रत का पालन करने लगे हैं। लोग बदलते समय के साथ अपनी सुविधानुसार रीति-रिवाजों को अपनाने लगे हैं।
८) अधिकतर महिलाएं छठ व्रत का पालन क्यों करती हैं?/ Why do mostly women observe Chhath Vrat?
अपने परिवार की सुरक्षा और भलाई को सुनिश्चित करने के लिए, महिलाओं द्वारा विभिन्न संस्कारों और पूजा-पाठों को करने के लिए अत्यधिक कष्ट उठाना बहुत ही सामान्य बात है। सामान्य रूप से, यह महिलाओं के त्यागपूर्ण स्वभाव से संबंधित है। अतः, यह व्रत महिलाएं अधिक रखती हैं। हालांकि, पुरुष और महिलाएं दोनों यह व्रत कर सकते हैं। निसंतान महिलाएं, संतान प्राप्ति का आशीर्वाद पाने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस व्रत का पालन करती हैं।
९) क्या यह पूजा किसी भी सामाजिक स्थिति या जाति के व्यक्ति द्वारा की जा सकती है?/ Can this Puja be performed by a person of any social status or caste?
सूर्य अपने अधीन किसी के भी साथ भेदभाव न करके, हम पर एकरूपता और समान रूप से अपना प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करते हैं। वर्ण या जाति के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं होने के कारण, सभी जाति और वर्ण के लोग इस पूजा को कर सकते हैं। समाज के सभी वर्गों के लोग पूर्ण भक्ति के साथ छठ पूजा कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति एकता और भाईचारे की भावना के साथ इन धार्मिक क्रियाओं में भाग ले सकते हैं। सूर्य में आस्था रखने वाले सभी धर्म या जाति के व्यक्ति छठ पूजा कर सकते हैं।
१०) क्या छठ पूजा कोई सामाजिक संदेश देती है?/ Does Chhath Puja give any social message?
सूर्य षष्ठी व्रत के दौरान समान भक्ति भावना से डूबते और उगते सूर्य की पूजा करते हैं, जो इस अनूठे पर्व के बारे में कई महत्वपूर्ण संकेत और ज्ञान प्रदान करता है। तथा दुनिया में भारत की आध्यात्मिक सर्वोच्चता को प्रदर्शित करता है। यह उत्सव जाति के आधार पर भेदभाव न करके, सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करता है। सूर्य को प्रसाद अर्पित करने वाली बांस की टोकरी हमारे समाज के वंचित/दलित लोगों द्वारा बनाई जाती हैं। यह सभी विषय छठ के सामाजिक महत्व को अधिक स्पष्ट करते हैं।
११) छठ पूजा से बिहार का विशेष संबंध क्यों है?/ Why is there a special association of Bihar with Chhath Puja?
इस लोक पर्व के दौरान, भगवती षष्ठी के साथ सूर्य की आराधना करने की अनोखी परंपरा होने के कारण छठ पर्व का बिहार से गहरा संबंध है। बिहार में सूर्य आराधना की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सूर्य पुराण में, बिहार के कई प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों का उल्लेख देखा जा सकता है। साथ ही, बिहार सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म स्थान है। यह सभी बातें बिहारी लोगों के दिलों में सूर्य के प्रति विशेष भक्ति बनाए रखती हैं।
१२) बिहार के देव सूर्य मंदिर का क्या महत्व है?/ What is the significance of Bihar’s Deo Surya Mandir?
इस मंदिर को अद्वितीय बनाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि इस मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में खुलता है; जबकि सामान्यतः सूर्य मंदिर पूर्व दिशा में खुलते हैं। मान्यता यह है, कि इस अनोखे सूर्य मंदिर का निर्माण शिल्पकला के भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया था। यह सूर्य मंदिर हिंदू वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
१३) कार्तिक माह के अलावा, साल में छठ पूजा कब बनाई जाती है? Apart from the Kartik month, when is Chhath Puja observed in a year?
छठ पर्व कार्तिक मास के अलावा, चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक भी मनाया जाता है। बोलचाल की भाषा में, इस छठ को चैती छठ भी कहा जाता है।
१४) छठ पूजा के दौरान, कुछ भक्त भूमि पर साष्टांग मुद्रा में नदी के किनारे तक पहुंचने का कष्ट क्यों उठाते हैं?/ During Chhath Puja, why some devotees take pains such as prostrating and reaching the river banks by rolling over the ground?
बोलचाल की भाषा में, इस प्रथा को "कष्टी देना" कहा जाता है, जिसका अर्थ "दर्द लेने के" रूप में होता है। ज्यादातर मामलों में, विभिन्न कारणों से शपथ या प्रतिज्ञा करने वाले लोग, इस क्रिया को भक्ति के संकेत के रूप में करते हैं।
गुणवान संतान प्राप्त करने, अच्छे स्वास्थ्य और विशिष्ट रोगों के लिए ज्योतिष संबंधित हमारे विचारों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
सभी प्रमुख भारतीय त्योहारों के लिए "भारतीय त्योहारों में ज्योतिष की प्रासंगिकता" जैसे हमारे लेखों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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