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सूर्य की महादशा के प्रभाव और उपाय/ Sun Mahadasha Effects and Remedies

ज्योतिष में दशाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह व्यक्तियों के जीवन में परिस्थितियों और घटनाओं दोनों को प्रभावित करती है। सूर्य की दशा/Sun mahadasha से प्रभावित व्यक्ति को दूर स्थानों पर रहना पड़ता है। स्वतंत्र ग्रह के रूप में सूर्य, एक शासक के रूप में अपनी प्रत्यक्ष मौजूदगी से मानसिक अशांति का कारण बनता है। प्रबल सूर्य दशा होने पर व्यक्ति ब्याज, शासक, धार्मिक उपदेशक, अस्र-शस्र, ब्राह्मण या चिकित्सा-कर्म द्वारा अत्यधिक धन प्राप्त करता है क्योंकि सूर्य, राहु और शनि दवाओं जैसे चिकित्सा संबंधी कार्यों को दर्शाता है। विशेष रुप से शनि या राहु द्वारा दूसरे भाव को प्रभावित करने पर सूर्य, व्यक्ति को चिकित्सा क्षेत्र में निपुण बनाता है। इसी तरह, लग्न या लग्न के स्वामी पर शनि, सूर्य आदि का प्रभाव व्यक्ति को चिकित्सा संबंधी कार्यों द्वारा आजीविका अर्जित करने की अनुमति देता है तथा इस दशा में व्यक्ति, तांत्रिक मंत्रों के जाप में व्यस्त रहता है। मंत्र के संदर्भ में संस्कृत व्याकरण कहती है कि "मननात् त्रायते इति मंत्र" अर्थात् जिसका पाठ करने से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। सूर्य की दशा में व्यक्ति, अत्यधिक गंभीर सोच रखता है और उच्च सरकारी अधिकारियों या शासकों के साथ संबंध विकसित करता है। लग्न के दसवें भाव का स्वामी सूर्य के यश और कीर्ति का सूचक होने के कारण, व्यक्ति को नाम और प्रसिद्धि प्राप्त होती है। सात्विक ग्रह सूर्य के आध्यात्मिकता से संबंधित होने के कारण, व्यक्ति की विभिन्न धार्मिक गतिविधियों में रुचि बढ़ती है।

सूर्य की दशा का अशुभ भाग इसकी दुर्बलता है जिसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति व्यर्थ की बातों में लिप्त होता है और पराजय का सामना करता है और ऋणी हो जाता है। सूर्य के नेत्र का कारक होने के कारण, नेत्र संबंधी समस्याएं हो सकती हैं तथा सूर्य के उदर का प्रतीक सिंह राशि का स्वामी होने के कारण व्यक्ति को पेट संबंधी समस्याऔं का सामना भी करना पड़ सकता है। खराब सूर्य दशा, परिवार और मित्रों आदि से अलगाव के कारण कष्ट का कारण बनता है। कमजोर दशमेश के साथ कमजोर सूर्य अग्नि, शत्रुओं, शासकों आदि से नुकसान पहुंचा सकता है तथा कमजोर छठे भाव के स्वामी के साथ कमजोर सूर्य दशा, विरोधियों से परेशानी का कारण बन सकता है। केतु या मंगल के साथ कमजोर सूर्य की दशा और अग्नि ग्रहों के कमजोर स्वामी, अग्नि के खतरे का कारण बन सकता है। मंगल और छठे भाव के स्वामी के साथ कमजोर सूर्य की दशा, भाईयों और अन्य रिश्तेदारों के साथ झगड़े और चोरी का कारण बनता है। साथ ही, कमजोर सूर्य की दशा अवांछित झगड़ों को भी जन्म देता है, जिसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति लंबे समय तक समाजिक  संबंधों को अच्छा नहीं रख पाता। 

सूर्य दशा में भुक्ति/ Bhuktis in the Sun Dasa

ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में उच्च का सूर्य प्रतिष्ठा, बुद्धि, ज्ञान, सामान्य सफलता, पुत्र जन्म, व्यवसाय में सफलता/Business success और संपन्नता तथा मानसिक स्थिरता में वृद्धि को दर्शाता है। व्यक्ति को, शासकों द्वारा सम्मान की प्राप्ति होती है। वहीं, सूर्य के अच्छी स्थिति में दूसरे और चौथे भाव के स्वामी से संबंधित होने पर, व्यक्ति को पर्याप्त संपत्ति और धन प्राप्त होने के कारण, गृह-निर्माण और राजसी सुखों की प्राप्ति होती है। दूसरी ओर, सूर्य के छठे, आठवें या बारहवें जैसे बुरे भावों में  या अशुभ ग्रहों की युति में होने पर धन की हानि, शासकों का कोप, अपमान और अधिकार की हानि हो सकती है तथा व्यक्ति को तेज बुखार, सीने में दर्द, आंखों की समस्याएं, सिर दर्द, पेट के रोग, एक्सीडेंट, पिता की मृत्यु, चोरी और सर्पदंश का खतरा भी हो सकता है।

सूर्य-चन्द्र दशा/ Sun-Moon Dasha

स्वराशि के त्रिकोण में स्थित उच्च का चन्द्रमा, अपनी दशा में स्त्री की प्राप्ति अर्थात विवाह, विवाहितों को कन्या का जन्म, जीवनसाथी और संतान से सुख और समृद्धि देता है तथा मोतियों और महंगे वस्त्रों के संग्रह के साथ ही, समुद्री यात्राओं का आनंद और महिलाओं द्वारा लाभ प्राप्त करा सकता है।

अशुभ भावों के स्वामियों और दोषयुक्त किरणों से पीड़ित चन्द्रमा से महिलाओं की बीमारियां, वरिष्ठों से कलह, हानि, पद और धन की हानि का भय हो सकता है। वहीं, चंद्रमा की भुक्ति में, व्यक्ति को राहु के अशुभ प्रभावों से सिज़ोफ्रेनिया, प्रत्याशित डर और भय का अनुभव हो सकता है।

सूर्य-मंगल दशा/ Sun-Mars Dasha

स्वराशि के त्रिकोण में या ग्यारहवें भाव में स्थित उच्च का मंगल धन-संपत्ति, और लाल वस्त्रों से लाभ और सामान्य सफलता को दर्शाता है। व्यक्ति अत्यधिक प्रभावशाली, दृढ़ निश्चयी और पुलिस या सेना में सफल होता है अर्थात, लग्नेश के साथ रहने पर व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। दशमेश के लोगों का लीडर होने पर, मनोकामनाओं की पूर्ति होने की संभावनाएं होती हैं तथा व्यक्ति को न्यायालय में अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं। वहीं, सूर्य या लग्न के अशुभ भावों में स्थित कमजोर मंगल के बुरे प्रभावों से व्यक्ति अधीनस्थों, शुभचिंतकों और वरिष्ठों के साथ झगड़ालू हो जाता है तथा व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़ा और आक्रामक हो जाता है। अपने एक भाई को खोने के साथ ही, व्यक्ति को मदमत्त होने के कारण कारावास भी हो सकता है। मंगल के अशुभ भाव या दूसरे या सातवें भाव में स्थित होने पर व्यक्ति को तीव्र ज्वर, सूजन-संबंधी समस्याएं, अग्नि दुर्घटना, पशुओं से चोट, अपच और पित्त संबंधी रोग हो सकते हैं।

सूर्य-राहु दशा/ Sun-Rahu Dasha

राहु के त्रिकोण में स्थित होने पर भुक्ति का पहला भाग खराब होता है। बाद के समय में धन प्राप्ति, मित्रों से सुख, यात्रा, आनंद, सट्टेबाजी में लाभ, धन और संतुष्टि का संकेत देता है। व्यक्ति को समृद्धि प्रदान करने वाले त्रिकोण के स्वामी के साथ तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में स्थित राहु का अच्छा प्रभाव होने के कारण व्यक्ति, किसी भी तरह समस्त प्रकार की भौतिक सफलताओं को प्राप्त करने की प्रवृत्ति रखता है। वहीं, सूर्य से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित राहु पेट दर्द, पेचिश, ट्यूमर, विष  का खतरा, सरीसृप से भय, निर्वासन और कारावास का कारण बनता है तथा दूसरे या सातवें भाव में स्थित राहु से, व्यक्ति को दुर्घटना, मृत्यु और एक दांत की हानि का खतरा होता है।

सूर्य-बृहस्पति दशा/ Sun-Jupiter Dasha

लग्न में ग्यारहवें भाव के त्रिकोण (तीनों कोणों) या  स्वराशि में उच्च का बृहस्पति बौद्धिक विकास, आध्यात्मिक ज्ञान, प्रतिष्ठा में वृद्धि, पुत्र जन्म, सामान्य सफलता और सरकारी अनुकूलता का संकेत देता है। व्यक्ति, समाज में अत्यधिक सम्मान पाता है तथा न्यायकर्ता और प्रशासक बनने के साथ ही, राजनयिक सेवा में कार्यरत हो सकता है। अशक्तता में, अशुभ भावों में बृहस्पति का बुरा प्रभाव शासकों और वरिष्ठों से लेकर वृद्ध लोगों तक की समस्याओं का संकेत देता है। स्वभाव से ढोंगी व्यक्ति, धर्म के प्रति ठगने और छल करने वाले स्वभाव के होते हैं।

सूर्य-शनि दशा/ Sun-Saturn Dasha

राशि से प्रभावित त्रिकोण में स्थित शनि, कठोर परिश्रम से अर्जित सुख-संपत्ति का संकेत देता है। व्यक्ति अपने परिश्रम से समृद्धशाली बनता है। वह नगर पालिका में पद प्राप्त कर सकता है या निम्न लोगों का नेता बन सकता है। वहीं, सूर्य के अशुभ भावों में स्थित कमजोर और पीड़ित शनि के कारण व्यक्ति गठिया रोग, पेट दर्द, गैस का बढ़ना, पित्त, सर्दी और खांसी से पीड़ित हो सकता है। इसके अलावा, व्यक्ति को मान-सम्मान और धन की हानि हो सकती है और उसे व्यर्थ की यात्राएं, दुर्घटनाओं और कारावास का सामना करना पड़ सकता है। दूसरे और सातवें भाव में  कमजोर शनि के बुरे प्रभावों के कारण, दुर्घटनाओं और मृत्यु की संभावनाएं रहती हैं।

सूर्य-बुध दशा/ Sun-Mercury Dasha

सूर्य या लग्न से ग्यारहवें भाव में या स्वराशि के त्रिकोण (तीनों कोणों) में उच्च का बुध विनोदी स्वभाव, बौद्धिक गतिविधियों में रुचि, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के बीच सम्मान, राजा से अनुग्रह, बुद्धि का प्रदर्शन, पशुधन की वृद्धि, विवाह, पुत्रजन्म, तीर्थयात्रा, समृद्धि, प्रतिष्ठा और धार्मिक लोककथाओं के प्रति सम्मान‌ को दर्शाता है। लेकिन, सूर्य या लग्न के अशुभ भावों में कमजोर और पीड़ित बुध की यह स्थिति, शारीरिक और मानसिक विकारों को जन्म दे सकती है जैसे- व्यर्थ घूमना, छोटी यात्राएं, पेट संबंधी समस्याएं और अन्य संक्रामक रोगों के साथ ही, पत्नी और बच्चों को परेशानियां आदि। इसके अलावा, बुध के सूर्य या लग्न से मारक भाव में स्थित होने पर, स्वर दोष, शरीर में अकड़न, स्नायु दोष और धन की हानि जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

सूर्य-केतु दशा/ Sun-Ketu Dasha

सामान्यतः केतु की भुक्ति अच्छी नहीं होती। फिर भी, केतु के ग्यारहवें भाव के शुभ वर्ग में स्थित होने पर,  पत्नी और बच्चों से सुख-संतुष्टि और आनंद जैसे अच्छे परिणामों की संभावनाएं रहती हैं। हालांकि, कुछ ज्योतिषियों ने आठवें भाव में केतु के अच्छे परिणामों की भी व्याख्या की है जिसके सत्य का प्रमाण आसानी से नहीं मिलता। लग्न या सूर्य के अशुभ भावों में, यह दांत संबंधी समस्याओं, मुख गुहा के रोग, मूत्र रोग, विदेश यात्रा, निर्वासन, वरिष्ठों से उत्पीड़न, पिता की मृत्यु, नौकरी में स्थानांतरण, पिता की मृत्यु और शत्रुओं से परेशानी आदि उत्पन्न करता है। वहीं, केतु के लग्न या सूर्य से मारक भाव में स्थित होने पर, गंभीर समस्याओं और मृत्यु का खतरा हो सकता है। इसके अलावा, केतु की भुक्ति में व्यक्ति के अस्वस्थ रहने के कारण, वरिष्ठों से परेशानी होने की संभावनाएं रहती हैं।

सूर्य-शुक्र दशा/ Sun-Venus Dasha

शुक्र के उच्च राशि में, स्वयं के भाव, त्रिकोण में अप्रभावित, ग्यारहवें भाव या कारक राशि में चंद्रमा के साथ होने पर यह संगीत, धन, कीमती वस्त्र, स्वादिष्ट भोजन और विलासितापूर्ण जीवन के प्रति झुकाव को दर्शाता है। वहीं, लग्न या सूर्य से छठे या आठवें स्थान पर जैसे अशुभ भावों में स्थित होने वाले मामलों में यह मानसिक कष्ट, ढीली नैतिकता, पुत्र और समृद्धि, अंधापन या आंखों की बीमारियों, वरिष्ठों से नाराजगी, नैतिकता की कमी या यौन समस्याओं को सूचित करता है। इसके अलावा, मारक भावों में मारक होने पर, यह धन की हानि और मानसिक पीड़ा का संकेत देता है तथा अशुभ ग्रहों के साथ आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर मदिरा, स्त्री आदि से संबंधित विवादों में मृत्यु का कारण भी हो सकता है।

इस प्रकार, सूर्य दशा का वर्णन और उसकी विभिन्न भुक्तियों का अंत होता है।

आप विभिन्न भावों में सूर्य के प्रभाव, विभिन्न राशियों पर सूर्य के गोचर के प्रभाव और ग्रहों को प्रसन्न करने के ज्योतिष उपायों के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।

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