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राहु की महादशा के प्रभाव और उपाय/ Rahu Mahadasha Effects and Remedies

राहु की शुभ दशा के अंतर्गत तीर्थयात्रा, परोपकार और ज्ञान का अनुभव जैसे कार्य सूचित होते हैं। त्रिकोण या शुभ ग्रहों के साथ उच्च स्थिति में होने पर, अत्यधिक संपन्नता देता है। व्यक्ति, मुकदमेबाजी में सफल साबित होता है और मंत्री पद पाता है। राहु दशा के अंतर्गत, व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करके, अपने ज्ञान का विस्तार करने के लिए विदेश जाता है। परन्तु, उचित स्थिति में नहीं होने पर यह पत्नी, पिता या माता की मृत्यु, बिजनेस और धन की हानि, करियर में गिरावट, चिड़चिड़ा स्वभाव, दूर स्थानों पर स्थानांतरण और कई शारीरिक बीमारियों को दर्शाता है तथा भोजन-विषाक्तता, शत्रु, शस्त्रों द्वारा कष्ट और सर्पदंश से खतरा रहता है तथा व्यक्ति, अनिश्चितता की स्थिति में मृत्यु समान समस्याओं को अनुभव करता है।

राहु-दशा में भुक्ति/ Bhukti in Rahu-Dasa

धनु, वृश्चिक, कन्या, कर्क राशि के तीसरे, छठे, नौवें या ग्यारहवें भाव में स्थित शुभ ग्रहों से प्रभावित राहु वरिष्ठों से लाभ, समस्त सुखों, व्यापार में धन लाभ, सुखी परिवार, विदेश यात्रा और संतान के जन्म को दर्शाता है। किन्तु राहु के छठे, आठवें या बारहवें भाव में कठोर ग्रहों द्वारा संतप्त होने पर, उपरोक्त परिणाम विपरीत हो जाते है तथा मारक भाव में स्थित राहु, व्यक्ति को अत्यधिक शारीरिक कष्ट और पत्नी की मृत्यु से हानि में रखता है। दूसरे भाव में स्थित राहु, अपनी भुक्ति में कालाबाजारी, घूस आदि के माध्यम से आमदनी देने के साथ ही, परिवार संबंधित कई समस्याएं लाता है।

राहु-बृहस्पति दशा/ Rahu-Jupiter Dasha

स्वराशि में उच्च या त्रिकोण (तीन कोणों) या राहु या लग्न के दूसरे, तीसरे या ग्यारहवें भाव में स्थित बृहस्पति समृद्धि, उच्च सरकारी पद, धन-संपत्ति, धार्मिक समारोह, पारिवारिक सुख, शत्रुओं का विनाश और परोपकारी स्वभाव को सूचित करता है। वहीं, अशुभ ग्रहों के साथ युति या राहु या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर यह बड़े भाई, गुरु, पिता या पुत्र या लीवर इंफेक्शन की समस्याओं का संकेत देता है। साथ ही, बृहस्पति दूसरे या सातवें भाव में स्थित होने पर, मृत्यु जैसे बुरे परिणाम देता है।

राहु-शनि दशा/ Rahu-Saturn Dasha

स्वराशि में उच्च या त्रिकोण (तीन कोणों) या राहु या लग्न के दूसरे, तीसरे या ग्यारहवें भाव में स्थित उच्च का शनि निम्न लोगों और कृषि से लाभ, वाहन, निम्न देवताओं की पूजा, पश्चिमी देशों की यात्राओं और परोपकारी कार्यों को दर्शाता है। कोणों में स्थित शनि, कष्टदायक होता है जो बाधाओं के बाद ही, पहले जैसे सफल परिणाम देता है। वहीं, कमजोर तथा पीड़ित शनि के राहु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर यह हृदय रोग, पत्नी और पुत्र को दुःख, पित्त-वात संबंधी रोग, विवाह में अवरोधों का भय, किसी वृक्ष या किसी ऊंचे स्थान से गिरने का खतरा, पित्त, गठिया,  नौकरी में स्थानान्तरण, दूरस्थ विदेशी भूमि में निवास और नौकरी का संकेत देता है। मारक भाव में शनि एक घोर अशुभ ग्रह है जो अपनी भुक्ति में, मृत्यु का कारण बनता है। 

राहु-बुध दशा/ Rahu-Mercury Dasha

स्वराशि में उच्च या त्रिकोण (तीन कोणों) या राहु या लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित बुध राजसी शानो-शौकत, व्यापार से सफलता, वाक-पटुता, विवाह की इच्छा, निम्न महिलाओं के साथ आनंद और सफल व्यवसाय का संकेत देता है। कठोर ग्रहों के साथ युति या छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित बुध असत्यता, कपटी योजनाएं, भ्रष्ट कार्यों से लाभ, सम्मान और धन की हानि, अप्रत्याशित विवाद और गुरु की मृत्यु का संकेत देता है। वहीं, दूसरे और सातवें भाव में स्थित बुध, मानसिक रोगों और अप्राकृतिक मृत्यु को जन्म देता है।

राहु-केतु दशा/ Rahu-Ketu Dasha

केतु की भुक्ति के कष्टों के कारण व्यक्ति आग या हथियार, पुत्र और प्रतिष्ठा की हानि, चोरी, शारीरिक दर्द, बीमारियों और गुदा रोग के कारण बुखार या वात की अधिकता से पीड़ित होता है। वहीं, केतु के आठवें भाव में होने पर महामारी जैसे रोग होते हैं। शुभ ग्रहों की युति में होने पर केतु अच्छे परिणाम देता है तथा लग्न के स्वामी के साथ युति में होने पर, धन और समृद्धि का संकेत देता है लेकिन छठे, आठवें और बारहवें भाव में  होने पर कष्टदायक होता है। साथ ही बारहवें भाव में होने पर, यह व्यक्ति को संसारिक निंदा करने के लिए प्रेरित करता है।

राहु-शुक्र दशा/ Rahu-Venus Dasha

स्वराशि में उच्च या त्रिकोण (तीन कोणों) या राहु या लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित शुक्र घर में शुभ समारोहों, विवाह, पुत्रजन्म, गायन और नृत्य द्वारा  आनंद, चहुमुखी सफलता, महिलाओं से संबंधित परोपकार के कार्य और वाहन की प्राप्ति का संकेत देता है। राहु या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित कमजोर और पीड़ित शुक्र, पत्नी और पुत्र को खतरा, भाइयों और रिश्तेदारों से विरोध, गुरु की हानि, मूत्र और यौन रोग, नशे की लत, निम्न महिलाओं के साथ संभोग और मादक पदार्थों के प्रयोग को इंगित करता है। स्वराशि के मारक भाव में होने पर शुक्र, प्रबल मारक होता है।

राहु-सूर्य दशा/ Rahu-Sun Dasha

स्वराशि में उच्च या त्रिकोण (तीन कोणों) या ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य, सर्वांगीण सफलता द्वारा सम्मान, परोपकार में रुचि, प्रतियोगिताओं में सफलता और अधिक और अधिक पाने करने की मानसिक व्याकुलता को दर्शाता है। वहीं यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में पीड़ित और कमजोर सूर्य पारिवारिक कलह, तीव्र बुखार, घर परिवर्तन, नेत्र रोग, डकैतों और आग से खतरे का संकेत देता है। इसके अलावा, सूर्य के दूसरे या सातवें भाव में होने पर, गंभीर बीमारियां होती हैं।

राहु-चंद्र दशा/ Rahu-Moon Dasha

चन्द्रमा, राहु से त्रिकोण (तीन कोणों), उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होने पर अनुकूल प्रभाव देता है। अन्यथा, चंद्रमा को राहु का भय होने के कारण कुछ मानसिक विकार की स्थितियां और भय विकसित होने के फलस्वरूप, चन्द्र भुक्ति में व्यक्ति बुरी तरह पीड़ित होता है। विन्यास के ऊपर रहने पर चंद्रमा, व्यक्ति को सरकारी सहायता, सम्मान, धन, स्वास्थ्य, समृद्धि और महिला मुद्दों की उत्पत्ति मिलती है। लग्न या राहु से दूसरे या सातवें भाव में स्थित चंद्रमा आशंकित प्रकृति, भूतों के भय और अप्राकृतिक मृत्यु को दर्शाता है।

राहु-मंगल दशा/ Rahu-Mars Dasha 

स्वराशि में उच्च या त्रिकोण (तीन कोणों) या राहु या लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित मंगल धन, सम्मान, भाइयों से सुख, लाभ और साहस तथा पुलिस और सैन्यकर्मियों की पदोन्नति को दर्शाता है। वहीं छठे, आठवें या बारहवें भाव में या कठोर ग्रहों की युति में कमजोर और पीड़ित मंगल भाई, पुत्र या पत्नी के साथ झगड़े, आग, चोरी, मुकदमेबाजी, विवाद, सर्जिकल कष्ट, हथियार, शत्रुओं की दुर्भावना शत्रुओं और विद्रोह संबंधी शिकायतों के ख़तरों का संकेत देता है। मंगल के मारक भाव में होने पर व्यक्ति को संक्रामक और गंभीर रोग होते हैं।

इस प्रकार, राहु दशा का वर्णन और विभिन्न भुक्तियां समाप्त होती हैं।

राहु की महादशा में क्या करें? आप विभिन्न भावों में राहु के प्रभाव, विभिन्न राशियों पर राहु के गोचर के प्रभाव और ग्रहों को प्रसन्न करने के ज्योतिष उपायों के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।

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