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चंद्र महादशा के प्रभाव और उपाय / Moon Mahadasha Effects and Remedies

भाव बल और राशि बल में, जब पृथ्वी का उपग्रह- चंद्रमा चमकता है, तो इस दशा में व्यक्ति समृद्धशाली और प्रतिष्ठित बनता है। आदि योग, गज केसरी योग और ऐसे कई अन्य योगों में, धन-संपदा का उपकार देने वाला तत्व है चंद्रमा। चन्द्र दशा-भुक्ति में शासन या शासकों और महिलाओं द्वारा हमेशा ही लाभ होता है। हालांकि, प्रसिद्धि सूर्य लग्न और दसवें भाव द्वारा निर्दिष्ट होती है, परन्तु चन्द्रमा भी लग्न है इसलिए इसकी दशा-भुक्ति में तार्किक दृष्टि से, यश और प्रतिष्ठा का पूर्वानुमान होता है। अतः, चन्द्र दशा में व्यक्ति कीर्ति प्राप्त करने के साथ ही, एक मंत्री या राजा के समान दर्जा प्राप्त करता है। चंद्रमा की दशा-भुक्ति में, व्यक्ति ईश्वर के समान ही ब्राह्मणों और अन्य धर्मपरायण लोगों  का सम्मान और सेवा करता है। व्यक्ति को सुगंधित तेलों के व्यापार, जल-उत्पादों, सब्जी-फलों के व्यापार और भूमि की खाने योग्य वस्तुओं से भी धन प्राप्त करता है। शुभ चंद्र-दशा में, व्यक्ति धार्मिक अनुष्ठान करता है और नैतिक मूल्यों को बनाए रखता है क्योंकि मजबूत चंद्रमा व्यक्ति को नैतिक रूप से अच्छा बनाकर, मन और भावनाओं को नियंत्रित करता है। व्यक्ति नौसेना, कार्बोनेटेड जल (सोडा वाटर) का ​​कारखाने, जल आपूर्ति विभाग आदि में कार्य प्राप्त करता है। इसके अलावा, वह सात्विक साहित्य के अध्ययन में व्यस्त रहता है और विनम्र स्वभाव से बहुत सम्मानित होता है। चंद्रमा के एक चल-ग्रह होने के कारण, व्यक्ति व्यापक यात्राओं का भी आनंद लेता है तथा बच्चे की देखभाल करने वाली एक माँ की तरह, मातृत्व भी दिखाता है। साथ ही, चंद्रमा की स्त्रियोचित प्रकृति के कारण, कई महिला मुद्दों का सौभाग्य प्राप्त होता है तथा चंद्रमा के एक जलीय ग्रह होने के कारण, व्यक्ति कृषि कार्यों से संबंधित होता है। इसके अलावा, चौथे भाव के स्वामी से संबंधित होने पर, शनि व्यक्ति को कृषि और सामाजिक कल्याण जैसी गतिविधियों में डाल सकता है।

इसके विपरीत, दशा भुक्ति में चंद्रमा के उज्ज्वल रूप से नहीं चमकने पर व्यक्ति को सुस्ती, नींद, कफ विकार, सिर के रोग, रिश्तेदारों के साथ झगड़े, सुकर्मों में कम‌ रुचि और क्रूरता आदि विभिन्न प्रकार की समस्याएं देता है। 

चंद्रमा दशा में भुक्ति/ Bhuktis in the Moon Dasa

स्वराशि, उच्च या ग्यारहवें भाव में नौवें और दसवें भाव का स्वामी चन्द्रमा, सरकार और जनता द्वारा सम्मान, महिलाओं के साथ संबंध या विवाह, महिला से संबंधिक समस्या का जन्म, सुख, धन और समृद्धि को दर्शाता है तथा व्यक्ति कन्या का विवाह विधिपूर्वक संपादित करता है। लेकिन, अशुभ भावों में कठोर ग्रहों से संबंधित पीड़ित और कमजोर चंद्रमा नौकरी छूटना, मां को परेशानी, मानसिक चिंताएं, क्षीणता, जलोदर, मूत्र संबंधी समस्याओं तथा मृत्यु तक की जैसी कई समस्याओं को जन्म देता है। मारक भाव में चन्द्रमा की युति मारक भाव के स्वामी के साथ होने पर, शरीर में अकड़न, निराशा या डूबने से मृत्यु का योग बनता है।

चंद्र-मंगल दशा/ Moon-Mars Dasha

स्वराशि के त्रिकोण (तीन कोणों) में उच्च का मंगल मान-सम्मान, कठोर परिश्रम, जमीन-जायदाद में वृद्धि, व्यवसाय में सफलता और समृद्धि को दर्शाता है। तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में स्थित मंगल प्रतिष्ठा में वृद्धि, संपत्ति का विस्तार, समाज में मान-सम्मान और समग्र सफलता का संकेत देता है। 

वहीं छठे, आठवें, या बारहवें भाव या कठोर ग्रहों की दृष्टि या युति में मंगल असफल प्रयासों, झगड़ों, आग और चोरी का खतरा, धन-संपत्ति की हानि, मुकदमेबाजी, सूजन-संबंधी समस्याओं, बुखार, दुर्घटना या सर्जरी में रक्त की हानि को दर्शाता है तथा मारक स्वामियों के साथ मंगल, प्रबल रूप से मारक बन जाता है। प्रभावशाली मंगल, मजबूत भौतिक इच्छाओं को उत्पन्न करता है जिससे व्यक्ति, अपने अपमानजनक विचारों को जबरदस्ती व्यक्त करता है।

चंद्र-राहु दशा/ Moon-Rahu Dasha

त्रिकोण में राहु, प्रारंभिक चरण के दौरान खराब परिणामों का संकेत देता है, जिससे चोरों, शत्रुओं, सरीसृपों और सांपों द्वारा परेशानियां होने के अलावा वरिष्ठों, रिश्तेदारों और मित्रों के साथ गलतफहमियां हो सकती हैं तथा मानसिक चिंता, तीर्थयात्रा, प्रतिष्ठा की हानि और धार्मिक प्रकृति जैसी अन्य समस्याओं में फंस जाते हैं। तीसरे, छठे, दसवें, या ग्यारहवें भाव या योग कारक में शुभ ग्रहों के साथ राहु की दृष्टि, व्यापार में सफलता और समृद्धि तथा पश्चिमी प्रजातियों से लाभ का संकेत देती है। वहीं, चंद्रमा या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित राहु, प्रशासकों द्वारा जुर्माने के कारण धन की हानि, सिज़ोफ्रेनिया, लगातार बीमारियां, पत्नी को परेशानी, सर्पदंश का डर और अज्ञात बीमारियों का संकेत देता है।

चंद्र-बृहस्पति दशा/ Moon-Jupiter Dasha

स्वराशि में ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में स्थित उच्च का बृहस्पति जमीन-जायदाद में वृद्धि, सफलता, सुख, धार्मिक समारोह, भाग्यशाली पुत्र का जन्म, सरकार और वरिष्ठों द्वारा सहयोग को दर्शाता है। वहीं, लग्न या चंद्रमा से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित पीड़ित और कमजोर बृहस्पति निर्वासन, असफल अस्थिरता, नौकरी, व्यापार और पुत्र की हानि, सरकारी जुर्माना, संपत्ति का नाश, अंधाधुंध खाने या मोटापे के कारण बीमारियों का संकेत देता है। तीसरे भाव में स्थित बृहस्पति, उद्योगों में उचित सोच के कारण सफलता देता है तथा दूसरे या सातवें मारक भाव में वाहन दुर्घटना से मृत्यु का संकेत देता है।

चंद्र-शनि दशा/ Moon-Saturn Dasha

स्वराशि में ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में स्थित उच्च और प्रभावशाली शनि कृषि, जमीन-जायदाद, मित्र और पारिवारिक सर्कल के द्वारा धन और संपत्ति में वृद्धि का संकेत देता है। नया व्यवसाय शुरू करने के लिए यह एक अनुकूल समय है। शनि का कोण में स्थित होना, भुक्ति विध्न निवारण होने पर व्यक्ति व्यवसाय नहीं कर पाता है। चंद्र या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित शनि की यह स्थिति, व्यक्ति के घुटनों और हड्डियों के जोड़ों में दर्द जैसे धार्मिक स्थानों की यात्राओं के बुरे प्रभावों‌, वात और गठिया संबंधी बीमारियों, मादक पदार्थों की लत, बीमारियों की सर्जरी, शासकों और जनता से अपमान और अपयश में कमी करने को दर्शाता है लेकिन दूसरे या सातवें भाव में स्थित होने पर शनि, अपनी भुक्ति में व्यक्ति को मार भी सकता है।

चंद्र-बुध दशा/ Moon-Mercury Dasha

चंद्रमा या लग्न से ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में स्थित बुध बुद्धि, ज्ञान, धन, व्यापार और वरिष्ठों, सरकार और बुद्धिजीवियों में वृद्धि का सूचक है। व्यक्ति, परिवहन व्यवसाय स्थापित कर सकता है या बार-बार छोटी यात्राएं कर सकता है। साथ ही, विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त करके, प्रतियोगी परीक्षा भी उत्तीर्ण कर सकता है। वहीं, छठे और आठवें भाव में स्थित कमजोर बुध मानसिक चिंता, धन की हानि, तंत्रिका संबंधी विकार, वाहन दुर्घटना, और त्रि-दोषों (वात, कफ, पित्त) के कारण होने वाले रोग, पुत्र और पत्नी को खतरा, कारावास और अस्पताल में भर्ती होने का कारण बनता है तथा चंद्र या लग्न से दूसरे और सातवें भाव में स्थित बुध, मारक परिणाम देता है।

चंद्र-केतु दशा/ Moon-Ketu Dasha

चंद्रमा या लग्न से, तीसरे या ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में स्थित केतु सुख, धन और सफलता में वृद्धि को दर्शाता है। भुक्ति के प्रारंभिक चरण के दौरान, धन की हानि और बीच में शांत करने की भी भविष्यवाणी की गई है। व्यक्ति कई थकान भरे कार्यों में लग जाता है। केतु पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या चंद्रमा के अशुभ भावों में स्थित होने पर सार्वजनिक अपमान, अप्रसन्नता और शत्रुता का संकेत मिलता है तथा व्यक्ति अपना शत्रु होने के कारण, अवसादग्रस्त रहता है और व्यवस्थित रूप से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाता है जिससे वरिष्ठों का अनादर होता है। मारक भावों में स्थित केतु, जीवन के लिए ख़तरनाक एवं अचानक सामने आने वाली विकट समस्याओं से संबंधित उग्र रोगों द्वारा खतरे का संकेत देता है।  

चंद्र-शुक्र दशा/ Moon-Venus Dasha

स्व भाव के कोण या त्रिकोण या चंद्रमा के साथ युति में उच्च का शुक्र, एक सुखी भुक्ति का संकेत देता है। व्यक्ति, कीमती वस्त्र पहनता है और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेता है। शासकों की कृपा प्राप्त करता है तथा संगीत में रुचि विकसित करता है। साथ ही, रत्नों का संग्रह करता है और रहने के लिए सुंदर घर बनाता है। वहीं, चंद्रमा या लग्न के अशुभ भावों में कमजोर शुक्र,  खराब प्रतिष्ठा के कारण घोटालों, पद की हानि, प्रोस्टेट की खराबी, गुर्दे या मूत्र संबंधी समस्याओं, यौन रोग, विवादों आदि को दर्शाता है। अशुभ ग्रहों से पीड़ित शुक्र  व्यक्ति की नैतिकता, प्रेम, बुरी महिलाओं के साथ सहवास और यौन रोगों को दर्शाता है। दूसरे और सातवें भाव में शुक्र, मूत्र संबंधी समस्याओं या सेक्स स्कैंडल के कारण मृत्यु का संकेत देता है।

चंद्र-सूर्य दशा/ Moon-Sun Dasha

ग्यारहवें भाव या स्व भाव के त्रिकोण में उच्च का सूर्य मित्रता, उच्च समाज में रुतबा, राजनीतिक लाभ, राजसी पक्ष, पुत्र जन्म, सेवा में प्रमोशन या व्यक्ति को सरकारी सेवाओं में कार्यरत होने का संकेत देता है। वहीं, किसी बुरे भाव या अशुभ ग्रह के साथ युति में होने पर वरिष्ठों का अपमान, धन की हानि, हड्डियों और  हृदय रोग, पिता को हानि, नेत्र विकार और मृत्यु तक का संकेत मिल सकता है तथा मारक भावों में या उनके स्वामियों के साथ होने पर, तीव्र बुखार और विकारों के परिणामी ख़तरों को दर्शाता है।

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