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मंगल की महादशा के प्रभाव और उपाय/ Mars Mahadasha

मंगल की महादशा/Mars mahadasha के अंतर्गत, व्यक्ति दूसरों के लाभ के लिए बहादुरी जैसे कार्य करने की कोशिश करता है। मंगल ग्रह अग्नि तत्व होने के कारण, व्यक्ति को हथियारों का व्यापार करने से सैन्य विभागों से लाभ होता है तथा मंगल की युति होने पर, मुकदमों और चौपाया पशुओं के द्वारा धन का संग्रह होता है। लेकिन, मंगल के कमजोर होने पर व्यक्ति को सरकारी दंड, चोरी, आग, शत्रु, पित्त संबंधी समस्याएं, ज्वर, रक्त विकार आदि से हानि होती है। इसी प्रकार, कमजोर मंगल, धन की  हानि होने के साथ ही, नैतिक पतन का भी कारक होता है। इसके अलावा, व्यक्ति के भाई, पत्नी और बेटे के साथ झगड़े हो सकते हैं।

मंगल-दशा में भुक्ति/ Bhukti in Mars-Dasa

तीसरे या संयुक्त लग्न में त्रिकोण (तीनों कोणों), स्वभाव वाले ग्यारहवें भाव में स्थित उच्च का मंगल   व्यावसायिक वृद्धि, सफलता, विवाह, व्यक्ति के प्रयासों द्वारा लाभ, जमीन-जायदाद, और सार्वजनिक सफलता का संकेत देता है। छठे, आठवें या बारहवें भाव में पीड़ित और कमजोर मंगल चोरी, डकैती, हथियारों या आग्नेयास्त्रों से दुर्घटना, शल्य चिकित्सा की संभावना, बोन मैरौ की समस्या, खून की कमी, यूरिनरी संबंधी समस्याएं, भाइयों और वरिष्ठों के साथ झगड़ों को दर्शाता है। मारक भाव में गंभीर रूप से पीड़ित मंगल, संक्रामक रोगों या तेज बुखार के कारण मृत्यु का संकेत देता है।

मंगल-राहु दशा/ Mars-Rahu Dasha: 

ग्यारहवें, तीसरे और छठे भाव के त्रिकोण (तीनों कोणों) में स्थित राहु  समृद्धि, सरकारी अनुग्रह और व्यापार में लाभ और भूमि को दर्शाता है। व्यक्ति, साहसिक रूप से  शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के साथ ही, दूर देशों की यात्रा करता है और नए परिचित संबंध बनाता है। आठवें और बारहवें भाव में या अनिष्टकारी ग्रहों की युति, सर्पदंश का भय प्रकट करती है तथा मवेशियों की हानि, डकैती, कारावास, पित्त संबंधित रोग, गठिया  और क्षय रोग की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। मारक भाव में स्थित राहु, अप्राकृतिक मृत्यु होने का भय प्रकट करता है।

मंगल-बृहस्पति दशा/ Mars-Jupiter Dasha

स्वराशि में उच्च का बृहस्पति, मंगल या लग्न से दूसरे या ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में या 5वें, 9वें या 10वें भाव में लग्न का स्वामी राजकीय सहायता, प्रसिद्धि, धन-संपत्ति का लाभ, कारोबार में सफलता, विवाह, पुत्र जन्म के बाद सुख-समृद्धि का संकेत देता है। वहीं छठे, आठवें या बारहवें भाव में बृहस्पति की पीड़ित और कमजोर स्थिति अपमान, गरीबी, धन की हानि, जालसाज़ी का डर, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ खराब संबंध, लीवर और पेट की समस्याओं और खराब स्वास्थ्य को इंगित करता है। मारक भावों और मारक भावों के स्वामी के साथ बृहस्पति, संक्रामक लीवर के कारण बुखार और बीमारियों का संकेत देता है। 

मंगल-शनि दशा/ Mars-Saturn Dasha

मंगल से ग्यारहवें भाव के त्रिकोण में स्वराशि में स्थित उच्च का शनि, घर से संबंधित कार्यों में सफलता समारोह, सुख-समृद्धि और निम्न लोगों का नेतृत्व करने वाला व्यवस्थापक बनाता है। मंगल या लग्न से कोण में शनि, मान सम्मान पाने के लिए लगातार प्रयास और कठोर परिश्रम से प्राप्त सफलता को दर्शाता है। उदित राशि के छठे, आठवें या बारहवें भाव में शनि  धनहानि, अपमान, कारावास, दरिद्रता, शत्रुओं का भय, वशीकरण का सहारा लेने और धन प्राप्ति के लिए विदेश में रहने का संकेत देता है। मारक भाव में अशुभ ग्रहों के साथ शनि वरिष्ठों (बड़े लोगों) की नाराजगी, पत्नी की समस्याओं, परिवार के सदस्यों के बीच झगड़े और आकस्मिक मृत्यु की संभावनाओं का संकेत भी देता है।

मंगल-बुध दशा/ Mars-Mercury Dasha

मंगल से त्रिकोण (तीनों कोणों) में या उदित राशि या स्वराशि में उच्च का बुध धन में वृद्धि, धर्म के प्रति सम्मान, रिश्तेदारों के साथ सुख, ज्ञान, बेटी का जन्म, सदाचारी जीवन, व्यापारिक समुदाय से धन-संपत्ति और जमीन-जायदाद का लाभ मिलने का संकेत देता है। मंगल या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें घर में पीड़ित और कमजोर बुध क्रोध, धनहानि, तंत्रिका विकारों, क्रोध, झगड़े, गलत निर्णयों के कारण होने वाली समस्याओं द्वारा हानि, तंत्रिका विकार, त्रिदोष (वात, पित्त और कफ़) संबंधी विकार, हृदय रोग आदि को दर्शाता है। वहीं, दूसरी ओर सातवें भाव में बुध के पीड़ित अवस्था में स्थित होने पर, व्यक्ति लकवा जैसी जोखिमपूर्ण विकारों से पीड़ित हो सकता है। 

मंगल-केतु दशा/ Mars-Ketu Dasha

तीसरे या ग्यारहवें भाव में त्रिकोण (तीनों कोणों) में या शुभ ग्रहों की युति के साथ केतु, शासक की कृपा से सुख, लाभ और पुत्र जन्म का संकेत देता है तथा योग कारकों के साथ युति होने पर, प्रशासनिक सामर्थ्यवान लोगों से लाभ, शाही परिवार के सदस्यों और वरिष्ठों के साथ मित्रता और बहुमुखी सफलता को दर्शाता है। केतु के अशुभ तथ्य हथियारों से खतरा, तूफानी बिजली, अग्नि द्वारा घर की हानि, चोरी से हानि और कई अन्य दुर्घटनाओं का संकेत देते हैं। इसके अलावा, पेट के निचले हिस्से से संबंधित पेट के रोग भी होते हैं। वहीं, मंगल से छठे, आठवें या बारहवें भाव में केतु के अशुभ ग्रहों से संतप्त स्थिति में होने पर त्वचा पर सफेद दाग, पेचिश, बुखार, दांतों से संबंधित समस्याएं, पत्नी और बच्चों को परेशानियां तथा जंगली जानवरों से चोट लगने का संकेत मिलता है। इसके अलावा, मारक भाव में केतु धन हानि, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं आदि को बताता है।

मंगल-शुक्र दशा/ Mars-Venus Dasha

मंगल या लग्न या लग्न स्वामी से त्रिकोण में या स्वराशि में उच्च का शुक्र वरिष्ठों, अमीर लोगों और महिलाओं द्वारा आकस्मिक लाभ, समस्त प्रकार के सुख, धन और पुत्र जन्म, संगीत के प्रति झुकाव, काम क्रीड़ा और विलासितापूर्ण जीवन आदि दर्शाता है। वहीं छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित होने पर, उत्सर्जन तंत्र (Excretory system) संबंधी शारीरिक समस्याएं, और महिलाओं के साथ संक्रामक यौन समस्याओं का संकेत देता है। दसवें भाव के स्वामी के साथ शुक्र, परोपकार और सिनेमा जैसे क्षेत्रों से लाभ को बताता है। वहीं, दूसरे या सातवें भाव में स्वराशि में स्थित शुक्र, प्रबल मारक बनकर मृत्यु नहीं तो, मृत्यु के समान कष्ट दे सकता है।

मंगल-सूर्य दशा/ Mars-Sun Dasha

दसवें भाव और दसवें भाव के स्वामी के त्रिगुणों में या स्वराशि में उच्च का सूर्य साहसिक कार्यों, मान-सम्मान, राजनीति में प्रसिद्धि, समृद्धि, पुत्र जन्म और अच्छे स्वास्थ्य का संकेत देता है। वहीं, मंगल या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में या अशुभ ग्रहों के साथ युति में सूर्य सिर दर्द, शरीर में दर्द, दिमागी बुखार, कोलन संबंधी रोग, तेज बुखार आदि देता है। मारक भाव/Maraka Bhava में स्थित सूर्य अपनी भुक्ति में पुत्र के कष्ट का कारण होता है। 

मंगल-चंद्र दशा/ Mars-Moon Dasha

पहले, चौथे या दसवें भाव में त्रिगुणों में या दसवें भाव के स्वामी की युति में या स्वराशि में उच्च का चन्द्रमा शुभ समारोहों, समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति, विवाह और महिला के संबंध में समस्या की उत्पत्ति का संकेत देता है। वहीं, लग्न या मंगल से छठे, आठवें या बारहवें भाव में चंद्रमा के पीड़ित और कमजोर अवस्था में स्थित होने पर, यह मानसिक अवसाद, भय, पत्नी और बेटी को परेशानी, भावनात्मक असंतुलन, आर्थिक हानि और वरिष्ठों से अप्रसन्नता को दर्शाता है तथा चंद्रमा के दूसरे या सातवें भाव में स्थित होने पर, यह गंभीर बीमारियों और मानसिक कष्टों को जन्म देता है।

इस प्रकार, मंगल का वर्णन और उसमें विभिन्न भुक्तियाँ समाप्त होती हैं।

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