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बृहस्पति की महादशा के प्रभाव और उपचार/ Jupiter Mahadasha Effects and Remedies

बृहस्पति की दशा-भुक्ति में, व्यक्ति आदरसूचक धार्मिक अध्ययनों और शिक्षा में संबद्ध रहकर ईश्वर की कृपा से अपनी सभी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करता है और सुकर्मों में संलग्न रहता है। बृहस्पति दशा में व्यक्ति को धन, स्वर्ण, रत्न, वस्त्र, वाहन, स्त्री और संतान का लाभ देता है तथा व्यक्ति का सभ्य लोगों से जुड़ाव रहता है। हालांकि तिल्ली, लीवर, गले और पाचन जैसी पेट से संबंधित समस्याएं बीमारियों का कारण बनती हैं।

बृहस्पति-दशा में भुक्ति/ Bhuktis in Jupiter-dasa

ग्यारहवें भाव में या कोणों अच्छी तरह से स्थित गुरु-बृहस्पति प्रशासकों, वरिष्ठों और ब्राह्मणों की कृपा से मान-सम्मान और प्रसिद्धि तथा गुरुओं के आशीर्वाद से धन-संपत्ति में वृद्धि के साथ ही, समस्त कार्यों में   सफलता, परोपकार, स्वभाव, पुत्रजन्म और राजसी सुखों का प्रतीक है। किन्तु छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित बृहस्पति, वरिष्ठों के साथ वास्तविक झगड़े, धन की हानि, नीच लोगों के साथ साहचर्य को दर्शाता है। वहीं, स्वराशि के मारक स्थान पर स्थित बृहस्पति अशुभ फल देता है।

बृहस्पति-शनि दशा/ Jupiter-Saturn Dasha

लग्न या बृहस्पति के ग्यारहवें भाव या उच्च स्वराशि के कोणों में स्थित शनि, पश्चिमी देशों की ट्रेड यूनियन गतिविधियों में सफलताओं को दर्शाता है। वहीं छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित शनि धनहानि, पुत्र को परेशानी, क्रेडिट (उधार) और व्यापार की हानि, शारीरिक दर्द, गठिया, व्यभिचार, मानसिक अवसाद आदि का प्रतीक है।

बृहस्पति-बुध दशा/ Jupiter-Mercury Dasha

लग्न या बृहस्पति से ग्यारहवें भाव में उच्च रूप से संलग्न या कोणों में स्थित बुध, उच्च प्रशासकों द्वारा मान-सम्मान, धन प्राप्ति, ज्ञान में वृद्धि, व्यापार, धर्मार्थ कार्यों, संतानोत्पत्ति द्वारा धन का प्रतीक है। वहीं लग्न से छठे, आठवें, या बारहवें भाव में कमजोर और पीड़ित बुध विदेश में धन की हानि, कठोर और क्रूर वाणी, लगातार यात्राएं, आंत या तंत्रिका संबंधी विकार, अप्राकृतिक मृत्यु के खतरे को दर्शाता है। 

बृहस्पति-केतु दशा/ Jupiter-Ketu Dasha

पांचवें, नौवें, ग्यारहवें या तीसरे भाव में स्थित केतु धन, राजकीय पक्ष और तीर्थ यात्राओं में वृद्धि को दर्शाता है। वहीं छठे, आठवें या बारहवें जैसे अशुभ भावों में स्थित केतु कारावास, वरिष्ठों की नाराजगी, बीमारियों, सरकारी दंड, माता-पिता के साथ खराब संबंधों, पद की हानि, अपराधों की स्थिति और कार्यों के प्रति अनिच्छा को बताता है तथा मारक भावों में कठोर केतु, व्यक्ति को अक्सर बीमार रखता है।

बृहस्पति-शुक्र दशा/ Jupiter-Venus Dasha

दूसरे या ग्यारहवें भाव या उच्च स्वराशि के कोणों में स्थित शुक्र वैवाहिक सुख, गहनों का अधिग्रहण, उत्तम और स्वादिष्ट भोजन, भूमि का लाभ, विलासिता पर व्यय, प्रेमी के साथ वचनबद्धता, परोपकार के कार्यों और विद्वान पुरुषों के साथ संबंधों को दर्शाता है। लग्न या बृहस्पति से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पीड़ित और कमजोर शुक्र, परिवार में पत्नी और महिलाओं के साथ कष्ट, धन के अनावश्यक खर्च, मूत्र संबंधी रोग आदि का संकेत देता है। वहीं, स्व भाव के मारक भावों में स्थित शुक्र बीमारियां उत्पन्न करता है।

बृहस्पति-सूर्य दशा/ Jupiter-Sun Dasha

लग्न या बृहस्पति से ग्यारहवें भाव या स्वराशि के कोणों में स्थित उच्च का सूर्य समस्त प्रकार की सफलताओं, राजकीय पक्ष, धन की प्राप्ति, वरिष्ठों की कृपा, पुत्रजन्म, पदोन्नति, सरकारी नौकरी आदि का प्रतीक है। वहीं लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में कमजोर और पीड़ित बृहस्पति सिर, बुखार, झगड़े और वरिष्ठों से अपमान का संकेत देता है। दूसरे या सातवें भाव में सूर्य के शक्तिहीनता, तेज बुखार, और अन्य शारीरिक बीमारियों जैसे मारक परिणाम होते हैं।

बृहस्पति-चंद्र दशा/ Jupiter-Moon Dasha

बृहस्पति से अन्य लाभकारी भावों या स्वराशि में उज्ज्वल किरणों के साथ उच्च का चंद्रमा सम्मान, धन, पत्नी सुख, जनसाधारण में लोकप्रियता, महिलाओं के साथ संसर्ग और महिला मुद्दों की उत्पत्ति को दर्शाता है। वहीं छठे, आठवें या बारहवें भाव में पीड़ित चन्द्रमा बीमारियों का एकांतवास, धन की हानि, भावनात्मक असंतुलन, माँ और मामा से संबंधित समस्याएं, आंखों में परेशानी आदि का संकेत देता है।

बृहस्पति-मंगल दशा/ Jupiter-Mars Dasha

ग्यारहवें भाव या स्वराशि के कोण में उच्च का मंगल साहस, भाइयों, उन्नति, तीर्थयात्रा, प्रसिद्धि, रोमांच, जमीन-जायदाद का लाभ और कार्यों में सफलता का प्रतीक है। लग्न या बृहस्पति से छठे, आठवें या बारहवें भाव में, मंगल के कमजोर और पीड़ित होने पर संपत्ति और पद की हानि, चोरी से हानि, सूजन संबंधी बीमारियों, तेज बुखार, व्यापार में आशाओं के विफल होने के कारण भाईयों के साथ झगड़ा होता है तथा मंगल के मारक भाव में होने पर, व्यक्ति को तेज बुखार और सूजन संबंधी समस्याएं होने का खतरा रहता है और व्यक्ति को गंभीर संक्रमण लगातार परेशान करते रहते हैं। 

बृहस्पति-राहु दशा/ Jupiter-Rahu Dasha

लग्न या बृहस्पति से पांचवें, नौवें, छठे या ग्यारहवें भाव के कोणों में स्थित राहु  विदेश यात्रा, स्वास्थ्य, धन, समृद्धि, पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा, समस्त सुखों का प्रतीक है। वहीं, लग्न या बृहस्पति से आठवें या बारहवें अशुभ भावों से पीड़ित राहु सर्पदंश, सरीसृपों से जोखिम, भोजन विषाक्तता, बुरे सपनों और निम्न जाति के लोगों से हानि को दर्शाता है। मारक भावों में अत्यधिक अशुभ राहु, निरंतर प्रत्येक के प्रतिकूल रहता है।

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