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चतुर्थ भाव - प्रसन्नता और माता का भाव | Fourth House

fourth house in astrology

ज्योतिष शास्त्र में कुंडली में मौजूद प्रत्येक भाव की अपनी एक विशेष महत्ता होती है। इसमें चतुर्थ भाव को सुख भाव तथा मातृ भाव भी कहा जाता है। व्यक्ति के समस्त आत्मिक सुखों का निर्धारण करता है। व्यक्ति के जीवन में सुख की कमी या अधिकता चतुर्थ भाव एवं चतुर्थ भाव के स्वामी पर निर्भर करती है।  चतुर्थ भाव को माता का भी मुख्य कारक माना गया है। कुंडली में माता के सुख की स्थिति चतुर्थ भाव द्वारा निर्धारित होती है। जहां पिता भाव के लिए कुछ स्थानों पर नवम तो कुछ मत में दशम भाव प्रचलित भी है। इसके विपरीत माता के लिए केवल चतुर्थ भाव को ही प्रमुखता दी गई है। 

चतुर्थ भाव द्वारा कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातों का भी अध्ययन किया जाता है। यह भाव भौतिक सुख साधनों का सुख भी दर्शाता है, इसी भाव द्वारा वाहन, भूमि-मकान, भूमि से जुड़े अन्य लाभ, आभूषण वस्त्र इत्यादि को भी देखा जाता है। यदि कुंडली का ये भाव शुभ स्थिति में है तो निश्चय ही व्यक्ति को जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं के साथ साथ सुख की मूल अनुभूति प्राप्त होती ही है। 

चतुर्थ केन्द्र भाव 

चतुर्थ भाव को केन्द्र भाव भी कहा जाता है। इस कारण यह शुभ भाव भी होता है। केन्द्र भाव की स्थिति जीवन में कई क्षेत्रों को प्रभावित करती है। 

चतुर्थ भाव कारक  

कुंडली के चतुर्थ भाव का मुख्य कारक चंद्र ग्रह बनता है तथा शुक्र को भी इस ग्रह का कारक तत्व प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त भौतिक सुख सुविधाओं की शुभता प्राप्ति के लिए यह दोनों ग्रह काफी महत्वपूर्ण होते हैं। यदि कुंडली में कारक शुभ हों तो भाव से प्राप्त गुणों में भी शुभता प्राप्त होती है। इस भाव में यदि अतिरिक्त कारकों का विचार किया जाए तो प्रारंभिक शिक्षा हेतु बुध महत्वपूर्ण माना जाता है। शुक्र वाहन, वस्त्र एवं महंगी तथा सुंदर वस्तुओं की प्राप्ति कराता है। शनि इस स्थान पर भूमि का कारक बन जाता है और मंगल मकान भवन इत्यादि के सुख को दर्शाने वाला होता है। मन एवं माता को दर्शाने में चंद्रमा की भूमिका तो सर्वप्रमुख होती है। अत: किसी व्यक्ति को कैसा जीवन भोगने हेतु प्राप्त होगा यह हमें चतुर्थ भाव से समझने में मदद मिलती है। 

चतुर्थ भाव - सूक्ष्म और स्थूल स्वरूप

चतुर्थ भाव स्थूल रुप से जातक के रक्त संबंधों को दर्शाता है। वहीं सूक्ष्म रुप से यह प्रसन्नता का कारक है। किसी प्रकार हम अपने लिए खुशियां प्राप्त कर पाते हैं यह चतुर्थ का सूक्ष्म स्वरूप से ज्ञात होता है। चतुर्थ भाव द्वारा माता के अतिरिक्त मामा का संबंध, मामा के साथ भांजा एवं भांजी का संबंध भी दर्शाता है। चतुर्थ भाव जहां व्यक्ति का अपनी माता के साथ संबंधों को दर्शाता है, वहीं यह भाव माता के व्यक्तित्व तथा गुण दोषों को भी दर्शाने वाला होता है। घरेलू नौकर चाकर तथा और कर्मचारियों के साथ आपके व्यवहार को भी दर्शाता है। संपत्ति और अन्य संपत्ति के वारिस को लेकर वाद- विवाद की स्थिति को भी इस भाव द्वारा समझा जा सकता है। पड़ोसियों के साथ स्वामित्व संबंधी बातें भी इसके द्वारा देखी जाती हैं। 

चतुर्थ भाव से संबंधित अंग विशेष 

कुंडली के चतुर्थ भाव द्वारा मुख्य रुप से छाती तथा हृदय को देखा जाता है, इसके साथ ही फेफड़े, रक्त वाहिनियां मुख्य रुप से दिल की रक्त वाहिनियां, पेट के ऊपर का हिस्सा भी इसमें सम्मिलित होता है। यदि द्रेष्काण कुंडली की बात की जाए तो यह दायीं नासिका, शरीर का दाहिना भाग, दाहिनी जांघ को दर्शाता है।  

चतुर्थ भाव से जुड़े अन्य तथ्य 

चतुर्थ भाव द्वारा घरेलू खुशियों को देखा जाता है, पैतृक संपत्ति, चल-अचल सम्पति, नैतिकता, निष्ठा, समाज में छवि, मित्रता, जीवन का प्रारंभिक ज्ञान, मानसिक स्थिति, धन संचय, पशुपालन, कृषि तथा उससे संबंधित वस्तुएं, कारोबार, सामाजिक स्थिति, घर से दूरी या घर से नजदीक, बौद्धिकता, प्रसिद्धि, मान सम्मान, चौपाया जानवर, वाहन, आरोप प्रत्यारोप की स्थिति, गुप्त बातें अथवा संबंध भी इस स्थान से प्रभावित होते हैं। 

जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव का अन्य भाव के स्वामियों के साथ संबंध ही व्यक्ति के जीवन में आने  वाले सुख दुख को प्रभावित करने वाला होता है। यदि चतुर्थ भाव पीड़ित हो तो यह व्यक्ति के मानसिक सुख को कम करने वाला होता है लेकिन यदि यह स्थान तथा इसके अधिपति की स्थिति शुभ हो तो यह को मानसिक सुख शांति देने में सहायक बनता है।

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