विवाह पंचमी कब है | विवाह पंचमी 2023 | Vivah Panchami Shubh Muhurat

  • 2023-12-14
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सनातन धर्म में विवाह पंचमी का दिन बेहद ही पावन माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह पंचमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का विवाह माता जानकी से हुआ था। विवाह पंचमी को प्रभु श्री राम और मां सीता के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में भगवान श्री राम और माता सीता की जोड़ी को एक आदर्श जोड़ी के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान राम और माता सीता जी की पूजा अर्चना करने से वैवाहिक जीवन में खुशियां और सुख-शांति बनी रहती है।

 

2023 में विवाह पंचमी कब है?

पंचांग/Panchang के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाई जाती है। इस साल 17 दिसंबर 2023, रविवार को विवाह पंचमी मनाई जाएगी। इस दिन मंदिरों में भगवान श्री राम और माता सीता के विवाह का भव्य आयोजन किया जाता है। प्रभु श्री राम के भक्त उनके नाम भजन-कीर्तन करते हैं और अपने लिए एक सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं/Remedies for Happy Married Life

 

क्या पंचमी विवाह के लिए अच्छी है?

पौराणिक कथा के अनुसार, विवाह पंचमी/Vivah Panchami के दिन माता सीता का विवाह भगवान श्री राम से विवाह हुआ था। विवाह के पश्चात वह अयोध्या आईं। अयोध्या में उनका भव्य स्वागत हुआ और ससुराल में माता सीता को शुरुआत में सबसे बहुत प्रेम मिला। मगर विवाह के मात्र 14 दिन बाद ही उन्हें माता केकई के वचनों के कारण पतिव्रता धर्म निभाते हुए श्री राम के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। वनवास के दौरान माता सीता ने श्री राम के साथ कई कष्ट भोगे और दुखों को सहा। वहीं, वनवास खत्म होने के आखिरी साल में उन्हें रावण द्वारा हरण होने की पीड़ा से भी गुजरना पड़ा। इसके बाद माता सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। अयोध्या लौटने के कुछ समय बाद ही श्री राम ने माता सीता को त्याग दिया।

माता सीता का वैवाहिक जीवन बहुत ही मुश्किलों भरा रहा, इन्हीं सब कारणों से ऐसा माना जाने लगा कि विवाह पंचमी के दिन बेटी का विवाह करने से उसे वैवाहिक जीवन में कष्ट मिलेगा इसलिए विवाह पंचमी के दिन विवाह करना शुभ नहीं माना जाता।

 

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विवाह पंचमी कथा

श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं और उनका जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था। मार्गशीर्ष माह की पंचमी तिथि को श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ देवी सीता की जन्मभूमि जनकपुरी गए थे। यह वही शुभ समय था, जब राजा जनक ने माता जानकी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। इस स्वयंवर में भगवान राम भी शामिल हुए। मां सीता से विवाह करने के लिए स्वयंवर में कई शक्तिशाली राजाओं ने भी भाग लिया था, लेकिन राजा जनक की यह शर्त थी कि जो उनके पास मौजूद भगवान शिव के धनुष को तोड़ देगा वही मां सीता के लिए सुयोग्य वर होगा।

देश के बड़े से बड़े राजा इस धनुष को तोड़ने में असफल रहे, लेकिन अपने गुरू विश्वामित्र की आज्ञा से भगवान राम ने ऐसा कर दिखाया। जैसे ही उन्होंने धनुष को उठाया उसके दो टुकड़े कर दिए गए और वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया। भगवान श्री राम जी ने स्वयंवर जीत लिया और माता सीता का विवाह मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के साथ हो गया। आज भी प्रभु श्री राम और माता सीता को एक आदर्श दंपत्ति माना जाता है।

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