Karwa Chauth 2023 | करवा चौथ कब 31 अक्टूबर या 1 नवंबर

  • 2023-10-30
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हिन्दू धर्म में करवा चौथ के व्रत को सबसे पवित्र और सबसे कठिन व्रत माना जाता है। करवा चौथ के व्रत का सुहागिन महिलाएं बहुत ही बेसब्री से इंतजार करती हैं। करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच गहरे प्यार, विश्वास और अटूट बंधन का प्रतीक माना जाता है। करवा-चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और खुशहाली के लिए रखती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सदियों से चली आ रही इस हिंदू परंपरा के पीछे एक दिलचस्प रहस्य छिपा है। करवा चौथ 2023 का ये पर्व विशेष रूप से एक उपवास नहीं है बल्कि ये उससे बढ़कर कहीं अधिक धार्मिक महत्व रखता है।

 

करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?

करवा चौथ का ये पावन त्योहार हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान समेत पूरे उत्तर भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह सुहागिन महिलाओं के असीम प्रेम और समर्पण का प्रमाण है। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन वे अपने पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं और रात को चंद्र-दर्शन के बाद ही करवा चौथ/Karwa Chauth के व्रत का पारण करती हैं। करवा चौथ के दिन शादीशुदा महिलाएं 16 श्रृंगार कर सजती संवरती हैं और रात में चंद्र दर्शन करके चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति का मुख छलनी से देखकर अपना व्रत खोलती है।

 

2023 में करवा चौथ कब है?

हिंदू पंचाग/Hindu Panchnag के अनुसार साल 2023 में करवा चौथ का व्रत 1 नंवबर 2023, बुधवार को पड़ रहा है। ये दिन सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास दिन होता है सभी महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं और उनके लिए व्रत करती हैं। सुहागिन महिलाएं इस दिन सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पूरी निष्ठा के साथ दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। फिर रात में चंद्रमा की पूजा कर पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं।

 

करवा चौथ का महत्व

करवा चौथ का व्रत कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन रखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल 1 नवंबर 2023, बुधवार को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा। इस दिन महिलाए निर्जल व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और यह परंपरा आदि अनादि काल से ही चलती आ रही है। ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले करवा चौथ का व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। करवा चौथ प्रेम और आध्यात्मिकता का एक सुंदर मिश्रण है। महिलाएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और जब तक चंद्रमा दिखाई नहीं देता, उपवास जारी रखा जाता है और कोई भोजन या पानी नहीं खाया जाता है।

करवा चौथ को “करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है और “करवा” मतलब चंद्रमा को जल चढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मिट्टी के बर्तन से है। चंद्रमा को जल अर्पण करने को अर्घ्य कहा जाता है। करवा, करवा चौथ पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। करवे को चावल से भरकर ब्राह्मणों या योग्य महिलाओं को दान किया जाता है। यह भक्ति और परंपराओं से भरा दिन है जो परिवारों और समुदायों को एक साथ बांधता है।

 

करवा चौथ के पीछे छिपा अद्भुत रहस्य

करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी अक्सर एक ही दिन पड़ती हैं, जिससे इस पावन दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। संकष्टी चतुर्थी पर, लोग भगवान गणेश को समर्पित व्रत रखते हैं, जो वैदिक ज्योतिष में केतु से संबंधित हैं और उन्हें ज्ञान का देवता माना जाता है। भगवान गणेश जीवन की बाधाओं को दूर करते हैं और समृद्धि और सौभाग्य लाते हैं। भगवान गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव की प्रिय संतान हैं। करवा चौथ पर उपवास करके, महिलाएं अनजाने में या संयोग से संकष्टी चतुर्थी/Sankashti Chaturthi का व्रत भी रखती हैं, जिससे भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि यह दोहरा अनुष्ठान उनके पतियों के लंबे और समृद्ध जीवन की हार्दिक इच्छा को पूरा करता है। इसलिए, करवा चौथ न केवल प्यार का दिन बन जाता है, बल्कि ज्ञान प्राप्त करने, बाधाओं को दूर करने और अपने जीवन साथी की भलाई के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने का दिन भी बन जाता है। यह परंपराओं और आस्था का एक सुंदर संगम है, जो इस पवित्र दिन के लिए एक गहरा उद्देश्य लेकर आता है।

 

करवा चौथ का व्रत और चंद्र-अर्घ्य:

करवा चौथ सिर्फ प्यार और उपवास का दिन नहीं है बल्कि यह हिंदुओं की धार्मिक आस्था के प्रती का भी दिन है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से समृद्धि और खुशहाली आती है। चंद्र पूजन से जुड़ी जरूरी बातें:

  • चंद्र देव की पूजा करें।
  • चंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए पूरे दिन व्रत रखें।
  • चंद्र दर्शन करने के बाद ही व्रत का समापन करें।

महिलाएं अपने जीवनसाथी की लंबी और स्वस्थ जिंदगी सुनिश्चित करने और अपने वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए यह व्रत रखती हैं। जब इस व्रत का निष्ठापूर्वक और धार्मिक रूप से पालन किया जाता है, तो अखंड सुहाग का आशीर्वाद मिलता है।

 

करवा चौथ का धार्मिक दृष्टि से बहुत ही अधिक महत्व माना गया है

ज्योतिषीय महत्व: चंद्रमा ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण ग्रह है, जो मन की भावनाओं, प्रवृत्ति और अंतर्ज्ञान को नियंत्रित करता है। किसी की जन्म कुंडली में इसकी अनुकूल स्थिति भावनात्मक संतुलन, वित्तीय स्थिरता और संतुष्टि से जुड़ी होती है।

भावनात्मक सद्भाव: करवा चौथ के उपवास और अर्घ्य अनुष्ठान को भक्ति और समर्पण के कार्य के रूप में देखा जाता है। यह किसी की भावनात्मक स्थिति में सामंजस्य और शुद्धि, नकारात्मकता को कम करने और सकारात्मक इरादों को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

सकारात्मक ऊर्जा: इस व्रत को करने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं, जो किसी के जीवन को विभिन्न तरीकों से प्रभावित कर सकती हैं, जिसमें भाग्य में वृद्धि और सौभाग्य भी शामिल है।

चंद्रमा का आशीर्वाद: ज्योतिष में चंद्रमा का व्यक्ति के मन और चेतना से गहरा संबंध है। करवा चौथ पर चंद्रमा को प्रसन्न करके, व्यक्ति विचारों की स्पष्टता, बेहतर अंतर्ज्ञान और बेहतर निर्णय लेने का आशीर्वाद मांगते हैं।

कार्मिक ऊर्जा को संतुलित करना: माना जाता है कि करवा चौथ के अनुष्ठान कार्मिक ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करते हैं, जिससे संभावित रूप से किसी के जीवन यात्रा में अधिक अनुकूल परिस्थितियों और भाग्य का मार्ग प्रशस्त होता है।

करवा चौथ उत्सव का ज्योतिषीय महत्व चंद्रमा से जुड़ी सकारात्मक ऊर्जाओं से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि चंद्र-पूजन करने से ये जन्म कुंडली में भाग्य और समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है।

 

करवा चौथ की कथा

करवा चौथ का मतलब है 'करवा' यानी मिट्टी का दीपक, और 'चौथ', जो चतुर्थी तिथि को दर्शाता है। करवा चौथ कार्तिक महीने की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। करवा चौथ के पर्व के शुरू होते ही अहोई अष्टमी, धन-तेरस, दिवाली 2023 जैसे बड़े त्यौहारों की शुरुआत हो जाती है।

करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हुए सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास करती हैं। आजकल कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को करने लगी हैं। करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया है। अब पूरे भारत में महिलाएं पूरे उत्साह के साथ करवा चौथ के व्रत का पालन करती है।

करवा चौथ के व्रत को सबसे शुभ और विशेष अवसरों में से एक माना जाता है। यह विवाहित और प्रतिबद्ध जोड़ों के बीच प्यार को मजबूत करता है, जिससे यह उनके जीवन में वास्तव में एक उल्लेखनीय और यादगार पल बन जाता है।

 

करवा चौथ कैसे मनाएं

करवा चौथ की सुबह स्नान करने के बाद महिलाएं एक विशेष संकल्प लेती हैं जिसे करवा चौथ प्रतिज्ञा कहा जाता है। यह संकल्प उनके पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए किया जाता है। महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और चंद दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं।

सरगी करवा चौथ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सूर्योदय से पहले एक विशेष भोजन है, जिसे आमतौर पर सास अपनी बहू के लिए तैयार करती है। हिंदू परंपरा के अनुसार, करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं घर के काम करने से बचती हैं। दिन के दौरान उनकी मेंहदी रस्म भी होती है। यह दिन अपने पतियों के प्रति प्यार और समर्पण दिखाने का दिन है।

इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं। यह दिन विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्व रखता है और यह अपने पतियों के प्रति अपने प्यार और प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने का एक अवसर है। इस दिन की सबसे खास विशेषताओं में से एक है कीमती आभूषणों और चूड़ियों से शृंगार करना है।

हिंदू धर्म में आभूषण और चूड़ियाँ सिर्फ आभूषणों से कहीं अधिक हैं; वे शक्तिशाली प्रतीक हैं। वे गर्व से इन महिलाओं की वैवाहिक स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उनके जीवन साथी के साथ उनके बंधन को दर्शाते हैं।

करवा चौथ का उत्सव वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि, प्यार और आपसी खुशियां पाने का एक खूबसूरत एहसास है।

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