हिंदू धर्म में काल भैरव की पूजा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। श्री काल भैरव की पूजा को हिंदू धर्म में सनातन काल से ही विशेष महत्व दिया गया है। भगवान कालभैरव को देवों के देव महादेव शिव शंकर का रौद्र रूप माना जाता है। काल भैरव की पूजा से व्यक्ति सभी रोगों और दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
काल भैरव के नाम में ही स्वयं एक अद्भुत अर्थ छिपा हुआ है - वह देवता जो काल और भय से हमारी रक्षा करता है। इसी कारण, जो भी व्यक्ति किसी भी चीज के प्रति भयभीत है, उसे काल भैरव की साधना करनी चाहिए।
भगवान शिव के उपासकों के लिए काल भैरव जयंती/Kaal Bhairav Jayanti का खास महत्व होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक महीने की अष्टमी तिथि के दिन मासिक कालाष्टमी व्रत किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन काल भैरव भगवान का जन्म हुआ था। इस दिन को काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है या इसे कालाष्टमी भी कहते हैं। काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र अवतार बताया गया है। इस दिन काल भैरव भगवान की विधि विधान के साथ पूजा करने की परंपरा है।
काल भैरव जयंती तिथि और मुहूर्त
वैदिक पंचांग अनुसार इस साल काल भैरव जयंती 5 दिसंबर 2023, मंगलवार को मनाई जाएगी। काल भैरव के दो स्वरूप हैं एक बटुक भैरव, जो शिव के बालरूप माने जाते हैं। यह सौम्य रूप में प्रसिद्ध है, वहीं दूसरे स्वरूप में काल भैरव की पूजा की जाती है, जिन्हें दंडनायक माना गया है।
काल भैरव जयंती 2023 शुभ मुहूर्त
हिंदु पंचांग/Hindu Panchang के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण की अष्टमी तिथि 4 दिसंबर 2023 को रात 09 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 6 दिसंबर 2023 को प्रात: 12 बजकर 37 मिनट पर होगी।
काल भैरव की पूजा रात्रि काल में उत्तम मानी गई है लेकिन गृहस्थ जीवन वाले बाबा भैरव की सामान्य पूजा करनी चाहिए।
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काल भैरव जयंती का महत्व?
भगवान काल भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप हैं। अनिष्ट करने वालों को काल भैरव का प्रकोप झेलना पड़ता लेकिन जिस पर वह प्रसन्न हो जाए उसके कभी नकारात्मक शक्तियों, ऊपरी बाधा और भूत-प्रेत जैसी समस्याएं कभी परेशान नहीं करती। काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है, इनकी पूजा के बिना भगवान विश्वनाथ की आराधना अधूरी मानी जाती है। कहा जाता है कि जो भी भगवान भैरव के भक्तों का अहित करता है उसे तीनो लोक में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है।
काल भैरव पूजा विधि
काल भैरव अष्टमी तिथि के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें। फिर भगवान शिव के सामने दीपक जलाएं और मन में ध्यान करें। ऐसी मान्यता है कि रात में भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। इस दिन किसी मंदिर में जाएं और भगवान काल भैरव के सामने चोमुखी दीपक जलाएं। उनको फूल, इमरती, जलेबी, नारियल, पान, उड़द आदि चीजें चढ़ाएं। पूजा के दौरान श्री भैरव चालीसा/Kaal Bhairav Chalisa का पाठ करें और पूजा समाप्त होने पर आरती करें। सबसे अंत में अपनी द्वारा की गई गलतियों की काल भैरव से क्षमा मांगे।
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काल भैरव जयंती कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर में सर्वश्रेष्ठ को लेकर बहस होने लगी। हर कोई स्वयं को दूसरे से महान और श्रेष्ठ बताता था। जब तीनों में से कोई इस बात का निर्णय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है तो यह कार्य ऋषि-मुनियों को सौंपा गया। उन सभी ने सोच विचार के बाद भगवान शंकर को सर्वश्रेष्ठ बताया।
ऋषि-मुनियों की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी का एक सिर क्रोध से जलने लगा, वे क्रोध में आकर भगवान शंकर का अपमान करने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित होकर रौद्र रूप में आ गए। भगवान शिव शंकर के रौद्र स्वरूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई।
काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्म देव के जलते हुए सिर को काट दिया। इससे उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। तब भगवान शिव ने उनको सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया। फिर वे वहां से तीर्थ यात्रा पर निकल गए। पृथ्वी पर सभी तीर्थों का भ्रमण करने के बाद काल भैरव शिव की नगरी काशी में पहुंचे। वहां पर वे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हो गए। भगवान शिव की नगरी काशी काल भैरव को इतनी अच्छी लगी कि वे सदैव के लिए काशी में ही बस गए। भगवान शंकर काशी के राजा हैं और काल भैरव काशी के कोतवाल यानि संरक्षक हैं। आज भी काशी में काल भैरव का मंदिर है। जो भी व्यक्ति काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करता है, उसे काल भैरव का दर्शन अवश्य करना चाहिए, तभी उसकी पूजा अर्चना पूर्ण मानी जाती है।
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