भारत उन देशों की सूची में सबसे ऊपर आता है, जहां पर मवेशियों की पूजा की जाती है। पोला एक ऐसा त्यौहार है जिसमें कृषक गाय और बैलों की पूजा करते हैं। यह पोला का त्यौहार/Pola Festival 2023 विशेष रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटका, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग पशुओं की विशेष रूप से बैल की पूजा करते है और उन्हें अच्छे से सजाते है। पोला पर्व बैल पोला के नाम से भी जाना जाता है।
कब है 2023 में पोला त्यौहार?/Pola Festival Date
पोला का त्यौहार भादों माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस अमावस्या को पिठोरी अमावस्या/Pithori Amavas भी कहा जाता है। इस वर्ष 14 सितंबर को यह पर्व पूरे धूम धाम से मनाया जायेगा। महाराष्ट्र/Maharashtra में इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। खास तौर पर इस पर्व को विदर्भ क्षेत्र में ज्यादा महत्व दी जाती है। विदर्भ में बैल पोला को मोठा पोला/Motha Pola कहते हैं एवं इसके दुसरे दिन को तनहा पोला/Tanha Pol या छोठा पोला कहा जाता है।
शुभ पुजा मुहुर्त/Shubh Muhurat
बैल पोला का त्यौहार भादों माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस अमावस्या को पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 14 सितंबर, 2023 को पूरे धूम-धाम से मनाया जायेगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त: 14 सितंबर, संध्या 06:28 मिनट से रात्रि 08:47 मिनट तक
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पोला त्यौहार का महत्व/ Importance of Pola festival
भारत एक कृषिप्रधान देश है और ज्यादातर किसान खेती करने के लिए बैलों का प्रयोग करते हैं। इसलिए सभी किसान पशुओं की पूजा आराधना करके उन्हें धन्यवाद कहते हैं।
इस पर्व को दो तरह से मनाया जाता है। एक होता है बड़ा पोला और दूसरा होता है छोटा पोला। छोटा पोला में बच्चे खिलौने के बैल या घोड़े को मोहल्ले पड़ोस में घर-घर ले जाते है। वहीं उन्हें कुछ पैसे या गिफ्ट दिए जाते है। और दूसरा बड़ा पोला है, जिसमें बैल को सजाकर उसकी पूजा की जाती है।
महाराष्ट्र में पोला पर्व को किस प्रकार मनाया जाता है?
इस पर्व से एक दिन पहले किसान अपनी बैलों के गले, एवं मुंह से रस्सी निकाल देते है। इसके बाद उन्हें हल्दी, बेसन का लेप लगाया जाता है, तेल से उनकी मालिश की जाती है। इसके पश्चात बैल को गर्म पानी से नहलाया जाता है। कुछ लोग बैलों को पास के नदी या तालाब में नेहलाते हैं।
इसके बाद बैलों को बाजरा से बनी खिचड़ी खिलाई जाती है। फिर बैल को अच्छे से सजाया जाता है और उनकी सींग पर रंग लगाया जाता है। कई स्थानों पर बैलों को रंग बिरंगे कपड़े और जेवर के साथ फूलों की माला पहनाई जाती है।
इसके पश्चात सभी लोग मिलजुल कर अपने परिवार के साथ नाच गाना करते हैं। इस दिन का मुख्य उद्देश्य बैलों के सींग में बंधी पुरानी रस्सी को बदलकर, नई रस्सी बांधना होता है।
इस पर्व के दौरान, सभी लोग एक जगह पर इकट्ठा होकर इस पर्व का आनंद उठाते हैं। इसके बाद वह सभी मिल कर बैल की पूजा करते हैं और पूरे गांव में जुलूस निकालते हैं। जो व्यक्ति इस पर्व को मनाता है, उनके घर में विशेष तरह के पकवान जैसे – पूरन पोली, गुझिया, वेजिटेबल करी एवं पांच तरह की सब्जी मिलाकर मिक्स सब्जी बनाए जाते हैं। इस दिन पूरा परिवार मेले में शामिल होने जाता और बहुत सारे लोग वॉलीबॉल, रेसलिंग, कबड्डी, खो-खो जैसी खेल खेलते हैं। बहुत सारे इस दिन अपनी अगली फसल की भी शुरुआत करते हैं। इस पर्व को छत्तीसगढ़ में भी बड़े धूमधाम से और पौराणिक रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
पोला का त्यौहार/Festivals हर इंसान को जानवरों का सम्मान करना सिखाता है और उनके अंदर सभी मवेशियों के लिए मान सम्मान को दर्शाता है। जैसे जैसे यह त्यौहार पास आने लगता है, वैसे वैसे सभी इस पर्व की तैयारी में लग जाते हैं।
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