Ahoi Ashtami 2023 | जानिए अहोई अष्टमी की पूजन विधि और महत्व

  • 2023-11-01
  • 0

संतान सुख एवं उसकी दीर्घायु हेतु किया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत अत्यंत ही महत्वपूर्ण पर्व है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। अहोई अष्टमी को अहोई, अहोई आठे इत्यादि नामों से भी जाना जाता है, इस व्रत को मुख्य रुप से उत्तर भारत में काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है इसी के साथ यह देश के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं इस व्रत को संतान प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना हेतु करती हैं । 

संतान सुख का वरदान 

अहोई अष्टमी का पर्व संतान सुख की प्राप्ति हेतु भी किया जाता है। इस दिन किया जाने वाला व्रत एवं पूजन निसंतान दंपतियों के लिए वरदान होता है। भक्ति भाव एवं आस्था के साथ किया गया पूजन शुभ फलदायी होता है। निसंतान दंपतियों को इस व्रत के प्रभाव से संतान का सुख प्राप्त होता है। अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के लिए अत्यंत ही शुभ एवं पावन होता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन किया जाने वाला व्रत एवं पूजन बच्चों की हर प्रकार से सुरक्षा करता है। वंश वृद्धि दायक यह व्रत बच्चों के लिए कल्याणकारी होता है। मान्यता अनुसार जिन महिलाओं को गर्भपात होता है या गर्भधारण करने में समस्या होती है, उन्हें संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी व्रत/Ahoi Ashtami vrat करना बहुत लाभदायक होता है। 

अहोई अष्टमी व्रत नियम 

निर्णय सिंधु एवं मुहूर्त शास्त्र अनुसार अहोई अष्टमी का व्रत उदय कालिक एवं प्रदोष व्यापिनी अष्टमी पर ही संपन्न किया जाना उत्तम होता है। इस दिन संतान की सुरक्षा एवं उसके सुखद भविष्य हेतु स्त्रियां व माताएं कठोर व्रत का पालन करती हैं। इस व्रत को करवा चौथ की भांति निर्जला ही रखा जाता है। माताएं पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए इस व्रत को करती हैं तथा संध्या के समय माता अहोई की विधिवत पूजा द्वारा व्रत को किया जाता है। 

अहोई अष्टमी 2023 मुहूर्त/Ahoi Ashtami 2023 Shubh Muhurat

अष्टमी तिथि प्रारंभ – 05 नवंबर 2023, रविवार प्रातः 12:59 मिनिट से 

अष्टमी तिथि समाप्त – 06 नवंबर 2023, सोमवार प्रातः 03:18 मिनिट तक 

पूजा मुहूर्त – शाम 5:33 से सांयकाल 06:51 तक 

अहोई अष्टमी कथा

अहोई पूजा बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए की जाती है, इस दिन व्रत के साथ साथ कथा सुनने का भी बहुत महत्व होता है। अहोई माता की कथा सुनना और पढ़ना अत्यंत लाभदायक होता है तथा व्रत के प्रभाव में वृद्धि करता है। 

अहोई अष्टमी की कथा इस प्रकार है:  बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी व सात बेटों के साथ सुख पूर्वक रहा करता था। दीपावली का समय नजदीक आने पर उसका परिवार घर की सफाई में लगा जाता है। अपने घर को सुंदर बनाने के लिए साहूकार की पत्नी नदी के पास एक जाकर वहां की मिट्टी द्वारा घर को लीपने का विचार करती है। मिट्टी लेने के लिए वह नदी के पास बनी एक खदान से मिट्टी लेने जाती है और कुदाल से मिट्टी खोदने लगती है। अनजाने में जिस स्थान पर वह कुदाल चलाती है उस स्थान पर सेह ने अपना घर बनाया हुआ था जहां सेही के बच्चे होते हैं, उसकी कुदाल के वार से साही के बच्चे की मृत्यु हो जाती है। यह देखकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख होता है वह दुखी मन से घर लौट आती है लेकिन साही के श्राप के कारण कुछ दिनों बाद, साहुकार की सभी संताने एक एक करके मृत्यु को प्राप्त हो जाती है और एक वर्ष में उनके सभी सात पुत्रों की मृत्यु हो जाती है। 

अपने बच्चों की मृत्यु से व्यथित साहूकार की पत्नी को अपने किए गए कृत्य की याद आती है और वह अपने पति व पड़ोसियों को उस घटना के विषय में बताती है। उसने जानबूझकर पाप नहीं किया था और सेही के बच्चे की मौत उससे अंजाने में हुई थी यह सुनकर वहां उपस्थित बुजुर्ग महिलाएं उसे दिलासा देती हैं और प्रायश्चित करने हेतु सही व उसके बच्चों का चित्र बना कर अहोई अष्टमी के दिन माता की पूजा करने को कहती हैं। साहुकार की पत्नी ने कार्तिक माह की अष्टमी के दिन अहोई माता का पूजन श्रद्धा के साथ किया और वह प्रतिवर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। उसकी भक्ति से प्रसन्न हो अहोई माता के आशीर्वाद से उसे पुन: संतान सुख प्राप्त हुआ, वह फिर से सात पुत्रों की माता बनती है, तभी से अहोई अष्टमी व्रत की परंपरा का आरंभ होता है। 

अहोई अष्टमी पर कृष्ण-राधा अष्टमी महत्व

भारत के कुछ राज्यों मुख्य रुप से मथुरा प्रदेश में इस दिन को कृष्ण अष्टमी व राधाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। राधा कुण्ड में स्नान का भी इस दिन विशेष महत्व होता है। इसलिए निःसंतान दंपतियों के लिए यह दिन महत्वपूर्ण होता है । इस अवसर पर, नव विवाहित दंपति मथुरा में स्थित  ‘राधा कुंड’ के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। देश भर से भक्त यहां आते हैं और संतान सुख प्राप्त करते हैं।

यह भी पढ़ें: क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी

Related Blogs

2023 में कब मनाई जाएगी काल भैरव जयंती | Kaal Bhairav Jayanti 2023

वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक महीने की अष्टमी तिथि के दिन मासिक कालाष्टमी व्रत किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन काल भैरव भगवान का जन्म हुआ था। इसलीए इस दिन को काल भैरव जयंती/Kaal Bhairav Jayanti के नाम से भी जाना जाता है या इसे कालाष्टमी भी कहते हैं।
Read More

2023 में कब है छठ पूजा | Chhath Puja 2023 | छठ पूजा 2023

छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय खाय से शुरू होता है। चार दिन चलने वाला इस पर्व में सूर्य और छठी मैय्या की पूजा की जाती है। इस व्रत को 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की पूजा 17 नवंबर 2023 से हो रही है, जिसका समापन 20 नवंबर को होगा। बिहार में यह पर्व विशेषतौर पर बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।  
Read More

Diwali Celebrated In USA | Diwali 2023 | Diwali Celebration in the US

Diwali is not a federal public holiday in the United States, it holds significant cultural and religious importance. In some states, the festival has gained official recognition as a holiday. For example, which state in the USA has a Diwali holiday? Then, in Pennsylvania, Diwali was officially recognized as a holiday, sending a clear message of inclusion to the state's nearly 200,000 South Asian residents. This recognition acknowledges the festival's importance and role in fostering cultural diversity and unity.
Read More
0 Comments
Leave A Comments